अल जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार उत्तरी तंजानिया में लड़कियों का अपहरण, रेप व माता पिता द्वारा तय किया गया विवाह आदि स्थिति बहुत सामान्य है। यहां तक कि स्थानीय लोग ऐसी कार्रवाई को एक शब्द "कुपुला" बोलते हैं। कुपुला का मतलब है लड़की स्कूल जाने के रास्ते पर अपहृत की जाती है। हालांकि यह शब्द बहुत सरल है, लेकिन इसमें लंबे समय तक लड़कियों का शारीरिक व यौन उत्पीड़न होता है।
तंजानिया के उत्तर-पश्चिम में स्थित शिनेअंगा कस्बे में कुपुला वैध है। स्थानीय पुरुषों के बीच एक कहावत प्रचलित है कि शराब, मांस व महिला जन्म से पुरुषों के मज़े के लिए होती हैं। वहां के एक गैरसरकारी संगठन के महिला मामला कार्यालय के अधिकारी के अनुसार यह कहावत खून की तरह स्थानीय पुरुषों के शरीर में बह रही है। यह उनके जीवन बिताने का तरीका है। उनके ख्याल से यह पुरुषों का जन्म से विशेष अधिकार है।
अगर एक पुरुष किसी लड़की को पसंद करता है। तो वह इधर-उधर उस लड़की के पते व हमेशा उसके जाने के बारे में पूछने लगता है। जब वह पुरुष ऐसी जानकारियां प्राप्त करता है, तो वह लड़की के रास्ते पर इंतजार करता है, और लड़की को अपहृत करके उसका रेप करता है। कुपुला वहां बहुत प्रचलित है। लड़की के मां-बाप बच्ची के लापता होने की बात जानकर पुलिस को नहीं बुलाते हैं। और वे अपहरण करने वाले पुरुष को ढूंढ़ते हैं। ऐसा वे अपनी बेटी को बचाने के लिये नहीं करते, बल्कि उस पुरुष के साथ सौदा करने के लिए करते हैं। स्पष्ट रुप से कहा जाएं, तो वे पुरुष के साथ इस बात की चर्चा करते हैं कि उनकी बेटी के बदले कितनी गायें चाहिये?
तंजानिया के गरीब गांवों में बेटी का पालन-पोषण एक अल्पकालिक पूंजी-निवेश माना जाता है। लड़कियों को स्कूल भेजना, और उन्हें स्वस्थ रखना उन्हें बेचने के लिए होता है। ताकि घर की आर्थिक स्थिति सुधर सके। अगर बेटी के पीछे कोई पुरुष नहीं भागता, तो मां-बाप बेटी को लेकर डाकिनी डॉक्टर के पास जाते हैं। डाकिनी डॉक्टर दुर्भाग्य को भगाने के लिये चाकू से लड़की की छाती व हाथ पर क्रॉस का निशान करती है।
बाल-दुल्हन ग्रेस का अनुभव एक प्रमुख उदाहरण है। जब ग्रेस 12 साल की थी, तब उसके पिता ने उसकी इच्छा के खिलाफ़ एक बड़ी उम्र के पुरुष को उसे देने के बदले 12 गाय देने का एक सौदा किया। हालांकि ग्रेस हर रोज छिपकर शादी से इनकार करती रही। इस पर उसके पिता हर दिन उसे बेल्ट से मारते थे। अंत में वह व्यक्ति जबरन उसे उठा ले गया। इसके बाद 11 महीने उस 12 साल की मासूम को हिंसा और उत्पीड़न सहना पड़ा।
ग्रेस ने कहा कि हर बार जब भी मैं अपने परिजनों को देखती हूं, तो मैं बहुत दुःखी होती हूं। क्योंकि मुझे एक गाय की तरह बेचा जा सकता है। कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी जिन्दगी जानवरों से भी बदतर है।
वास्तव में तंजानिया के कई प्रस्तावों में बाल विवाह का समाधान करने का विषय शामिल हुआ है। लेकिन संबंधित नियम स्पष्ट नहीं है। साथ ही वह रिवाज़ कानून से मेल नहीं खाता। इसलिये कारगर नहीं है। शिनेअंगा जैसे क्षेत्रों में अब तक लगभग 60 प्रतिशत लड़कियों को विवश होकर बाल विवाह करना पड़ता है। सबसे कम उम्र केवल नौ साल की है। इसके अलावा वर्ष 1998 में तंजानिया ने कानून जारी कर ख़तना की प्रथा को खत्म करने की घोषणा की। लेकिन वर्ष 2010 में सरकार द्वारा की गयी जांच में पता चला कि दूरस्थ क्षेत्रों में अब तक 40 प्रतिशत से अधिक लड़कियों का ख़तना किया जाता है।
यहाँ तक कि कुछ दूरस्थ क्षेत्रों में पुलिस रिश्वत लेकर बाल-विवाह को नज़रअंदाज करती है। और कुछ पुलिस कर्मी बाल दुल्हन के लिये जन्म प्रमाण पत्र भी नकली बनवाते हैं। जब पुलिस बाल विवाह मुकदमे की जांच करती है, और अगर दूल्हे का घर दुल्हन के घर को कई गाय दे दे, तो दुल्हन के परिजन जांच रुकवाने के लिए अपना बयान बदल देते हैं। वे अकसर कहते हैं कि लड़की बीमार हो गयी, इलाज के लिये दूसरे गांव में चली गयी है। यहां तक कि कुछ परिजन लड़की मर चुकी है, जैसे बयान भी देते हैं।
गत वर्ष सितंबर में इस गैर सरकारी महिला संगठन ने पुलिस को एक बाल विवाह रिपोर्ट दी। दुल्हन केवल 13 वर्ष की थी। संगठन के कर्मचारियों की पूरी कोशिश से पुलिस ने विवाह स्थल पर पहुंचकर बाल विवाह रोका। लेकिन दूसरे दिन दूल्हा बरी कर दिया गया। सूचना के अनुसार पुलिस द्वारा दूल्हे को पकड़ने के ठीक उसी दिन की रात को इस गांव के नेता पुलिस ब्यूरो में गये। उन्होंने दुल्हन के घर से पैसे ले लिये, और पुलिस से शादी करने का आग्रह किया।
ग्रेस का पति एक सड़क दुर्घटना में मारा गया। अब 13 वर्षीय ग्रेस अपने घर वापस लौट चुकी है। वह अपने बेटे के साथ अपेक्षाकृत बेहतर जीवन बिता रही है। स्थानीय गैरसरकारी महिला संगठन के बारे में पता चलते ही उसने इस संगठन द्वारा आयोजित प्रशिक्षण में भाग लिया। उसे आशा है कि वह इस संगठन की एक सदस्य बन सकेगी। यह संगठन लड़कियों के लिये भिन्न-भिन्न प्रशिक्षण व रोजगार के मौके देता है। इस तरह न सिर्फ़ लड़कियों को आय का स्रोत मिल सकता है, बल्कि उनके परिवार को भी आर्थिक सहायता मिल सकती है, ताकि उनके मां-बाप केवल गायों के लिये अपने बेटी न बेचें।
ग्रेस के पिता को भी अपने किए पर पछतावा हुआ। उन्होंने कहा कि बाद में वे ग्रेस के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे। लेकिन ग्रेस को चिंता है कि उसकी शादी के समय पिता को दी गयी 12 गायों में से अब सिर्फ छह बाकी हैं। अगर किसी दिन घर में एक भी गाय नहीं बची, तो पता नहीं उसकी चार साल की बहन का क्या होगा ?
गौरतलब है कि तंजानिया को छोड़कर भारत, यमन व अफ़गानिस्तान आदि देशों में भी बाल विवाह की स्थिति देखी जा सकती है। भारत के कुछ दूरस्थ गांवों में लगभग दस वर्षीय लड़कियों को विवश होकर शादी करनी पड़ती है।
राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में हर वर्ष अप्रैल में छोटे बच्चों के सामूहिक शादी की रस्म आयोजित की जाती है। परंपरा के अनुसार ये बच्चियां शादी के बाद लगातार अपने घर में रहती हैं। 11 या 12 वर्ष की उम्र होने पर, वे पति के घर जाती हैं। इसके बाद उनका भाग्य उनके पति के हाथ में होता है। वे हर दिन अपनी उम्र के अनुचित कामकाज करती हैं। उन्हें शिक्षा लेने का मौका नहीं मिलता। और उनके पति अकसर उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं। कुछ लड़कियां केवल दस से अधिक वर्षों की उम्र में मां बन गयीं।
बाल विवाह की परंपरा ने गंभीर रूप से भारतीय समाज की प्रगति में बाधा डाली, जो भारत में एक गंभीर सामाजिक मामला है। भारत सरकार ने वर्ष 1929 में बाल विवाह विरोधी कानून पारित किया , लेकिन वह कारगर रुप से लागू नहीं किया गया। वर्ष 1978 में भारत सरकार ने लड़के व लड़की की शादी उम्र को क्रमशः 21 व 18 साल निश्चित की। लेकिन बाल विवाह लगातार प्रचरित है। वर्ष 2005 से 2006 तक भारत में आयोजित एक राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य रिपोर्ट के अनुसार 22.6 प्रतिशत लड़कियों ने 16 वर्ष की उम्र से पहले शादी की। 44.5 प्रतिशत लड़कियों ने 16 से 17 वर्ष तक की उम्र में शादी की हैं। और 2.6 प्रतिशत लड़कियों ने 13 वर्ष से कम उम्र में शादी की हैं। हालांकि भारत सरकार ने कानून में शादी की उम्र निश्चित की, लेकिन इसे सख्ती से लागू नहीं किया गया। इस कानून का उल्लंघन करने वालों को केवल 15 दिनों की सज़ा और एक हजार रुपये का जुर्माना वसूला जाता है। पर भारत सरकार ने इस समस्या को समझकर कई बार स्पष्ट रूप से बाल विवाह की रोकथाम करने का संकल्प जताया है।