Web  hindi.cri.cn
    आपका पत्र मिला 2016-06-22
    2016-07-19 15:57:21 cri

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल का नमस्कार।

    हैया:सभी श्रोताओं को हैया का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिल:दोस्तो, पहले की तरह आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे। इसके बाद एक श्रोता के साथ हुई बातचीत के मुख्य अंश पेश किए जाएंगे।

    चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं। पहला पत्र हमें आया है, पश्चिम बंगाल से मॉनिटर रविशंकर बसु जी का। उन्होंने लिखा है......

    पर्यटकों के लगातार आने से मंदिरों की अपनी आय में भी वृद्धि हुई है। मंदिरों में तैनात कार्य दल मंदिर के प्रबंध मामलों को निपटाने के साथ साथ साधुओं के जीवन की कठिनाईयों को दूर करने की भी ज़िम्मेदारी निभाता है।

    नावांग छूज़ीन (Ngawang Chozin) डेपुंग मठ के मंदिर की संयुक्त प्रबंध कमेटी के उप प्रमुख हैं।वह मंदिर की वरिष्ठ भिक्षुओं में से एक हैं। उन्होंने कहा कि डेपुंग मंदिर की आय में दो भाग रहते हैं यानी श्रद्धालुओं के दान देने से और मंदिर की खुद की बिक्री से होने वाली आय से। मंदिर के अपने छोटे पशुपालन फार्म, मोटर गाड़ी, कैंटीन और दुकानें भी हैं और पर्यटकों को टिकट भी बेचने से भी कमाई होती है। कार्य दल ने मंदिर में सभी आय की गणना करके सभी साधुओं की लेखा पुस्तक प्रकाशित की जाती है। मंदिर में प्रबंधन और सेवा करने के लिए प्रति माह दो बार साधु छोटे दल में बंटकर स्वयं अध्ययन करते हैं। उन्हें अध्ययन करने में देश के संबंधित कानून और नियमावली, संबंधित कानूनों की जानकारियां प्राप्त हो सकती हैं। यही नहीं, साधु देश के रेडियो प्रसारण और टीवी कार्यक्रम से बहुत सी जानकारियां हासिल कर सकते हैं। नावांग छूज़ीन ने बताया कि कार्य दल के प्रविष्ट होने के बाद डेपुंग मठ में भारी परिवर्तन आया है। मंदिर में मकानों का जीर्णोद्धार किया गया है, सांस्कृतिक अवशेषों का अच्छा संरक्षण किया गया है और साधुओं की जीवन स्थितियों में सुधार भी किया गया है। परिवर्तन से साधुओं की देशभक्ति की भावना बढ़ी है और तिब्बत में सुस्थिरता के लिए मजबूत नींव डाली गयी है।

    तिब्बती बौद्ध मंदिरों में तैनात सरकारी कार्य दल और साधुओं के बीच सामंजस्य के संबंध को लेकर इतनी अहम जानकारी प्रदान करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

    हैया:आगे बसु जी लिखते हैं......आज "दक्षिण एशिया फोकस" प्रोग्राम में पंकज श्रीवास्तव जी ने पत्रकार उमेश चतुर्वेदी जी के साथ भारत में दलित समस्याओं को लेकर एक गुरु - गंभीर आलोचना की। यह सच है कि आजादी के 68 वर्षों के बाद भी भारत में दलितों और आदिवासियों पर उत्पीड़न जारी है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दलितों की बेहतरी के लिए जो योजनाएं लागू की जाती हैं, वे अधिकांशतः भ्रष्टाचार का शिकार हो जाती हैं। इक्कीसवीं सदी में भी भारत के हजारों दलित गांव ऐसे हैं, जहां न तो चापाकल पहुंच पाया है और न ही बिजली के तार ही लग पाए हैं। इसके अलावा और भी तमाम समस्याएं हैं, जिससे गांव का दलित रोजाना रूबरू होता रहता है। भारत में दलित वर्ग के शोषण की मुक्ति के लिए बने कई कानूनों के बावजूद दलितों का शोषण करने वाले दबंग कानूनी दांव पेचों के दम पर सजा होने से बच जाते हैं। दलित शोधार्थी रोहित वेमुला की आत्महत्या,2010 साल में मिर्चपुर में 70 वर्षीय एक दलित और उसकी विकलांग बेटी को जिंदा जलाने की घटना,1997 को लक्ष्मणपुर बाथे गांव में 58 दलितों के घरों में आग लगाना ,जादू - टोने के नाम पर दलित आदिवासी महिलाओं को निर्वस्त्र कर गांवों में घुमाना- आदि मामलों में ऐसा प्रतीत हुआ है। हाल ही में हैदराबाद यूनिवर्सिटी में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या को देखकर मुझे लगता है कि अब हमारे देश में मेक इन इंडिया के बजाय दलित डेथ इन इंडिया का अघोषित अभियान चला हुआ है। यह कौन सा भारत ,जिसका सपना महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर,सुभाषचंद्र बोस,डॉ. भीमराव अंबेडकर ,ज्योतिबा फूले, भगत सिंह इत्यादि महान नेताओं ने देखा था? क्या यह वही भारत है जिसका सपना सजाए हजारों देश प्रेमियों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था? रवीन्द्रनाथ टैगोर ने "Where the mind is without fear and the head is held high" लिखकर जब मन की व्यथा प्रकट की थी तो उनके मन में यह भाव भी था कि स्वतन्त्र भारत में लोग निर्भय होकर जी सकेंगे। न जाने कब तक दलित उच्च वर्गों के जरिए उत्पीड़ित किए जाते रहेंगे। कब दलित समुदाय दूसरी जातियों की तरह आर्थिक और सामाजिक रूप से बेहतर होंगे और वह भी समाज में उसी तरह आत्म -सम्मान के साथ निर्भय होकर जी सकेंगे जैसे समाज के उच्च वर्गों के लोग जीवन यापन कर रहे हैं।

    अनिल:बसु जी, हमें पत्र भेजने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। चलिए, अगला पत्र मेरे हाथ आया है ओडिसा से हमारे मॉनिटर सुरेश अग्रवाल जी का। उन्होंने लिखा है...... केसिंगा दिनांक 3 जून। भले ही मैं प्रतिदिन सीआरआई हिन्दी का ताज़ा प्रसारण शॉर्टवेव पर शाम साढ़े छह बजे सुनता हूँ, सीआरआई के चारों प्रसारणों में रात साढ़े नौ बजे वाला प्रसारण ही यहाँ सबसे स्पष्ट सुनाई पड़ता है। लिखते हैं कि ताज़ा अन्तर्राष्ट्रीय समाचारों के बाद पेश साप्ताहिक "चीन का तिब्बत" के तहत गत 27 मई को ग्यारहवें पंचन लामा अपना ल्हासा दौरा समाप्त कर शिकाज़े शहर वापस पहुंचे, तो शिकाज़े में तिब्बती अनुयायियों द्वारा उनका गर्मजोशी से स्वागत किये जाने सम्बन्धी समाचार सुन कर पता चला कि वहां के लोगों की अपने धर्म के प्रति कितनी गहरी आस्था है। मई महीने में तिब्बत के खुशगवार मौसम में 27 मई को पंचन लामा ल्हासा में अपनी सभी धार्मिक गतिविधियां समाप्त कर अपने तीर्थस्थान -शिकाज़े स्थित जाशिलून्पो मठ वापस आए। पंचन लामा की ट्रेन जैसे ही शिकाज़े स्टेशन पहुंची, तिब्बती अनुयायी और श्रद्धालु उनके स्वागत में स्टेशन पहुंचे और स्टेशन से जाशिलून्पो मठ तक के मार्ग में हजारों लोगों ने पंचन का सत्कार किया।

    कार्यक्रम सुन पता चला कि -जाशिलून्पो मठ तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े शहर में स्थित है। 15वीं शताब्दी में तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के गुरू चोंगखापा के शिष्य गेन्डुन ज़ुबा यानी पहले दलाई लामा ने इस मठ का निर्माण करवाया। तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के सुप्रसिद्ध मठ के रूप में जाशिलून्पो मठ चौथे पंचन लामा और उन के परवर्ती पंचन लामाओं का निवास स्थान बन गया।

    27 मई को पंचल लामा जब जाशिलून्पो मठ के द्वार पर पहुंचे तो मंदिर के लामाओं ने रंग-बिरंगे झंडे लहराते हुए पंचन लामा का स्वागत किया और द्वार के सामने विभिन्न क्षेत्रों के अनुयायी और श्रद्धालु पंचन की पूजा करने के लिए लम्बी कतार में खड़े नज़र आये। शिकाज़े की गांगबा काउंटी से आयी 75 वर्षीय बुजुर्ग महिला केल्सांग ने कहा,"मैं पंचन लामा की पूजा करने के लिए गांगबा काउंटी से आयी हूं। मैं 75 साल की हूं। मैं हमेशा जीवित बुद्ध की पूजा करने की प्रार्थना करती हूं। इसी प्रकार शिकाज़े शहर के सांगजू कस्बे से आयी त्सांग ज्वेइ ने हाथ जोड़कर पूजा करते हुए कहा,"आज बड़े सौभाग्य से पंचन लामा से मिलने का मौका आया है। इससे लगता है कि तिब्बत में पंचन लामा को भगवान की तरह पूजा जाता है।

    कार्यक्रम में जाशिलून्पो मठ के बारे में भी काफी महत्वपूर्ण जानकारी हासिल हुई। विशेषकर, पंकज श्रीवास्तव के स्वर में दी गई जानकारी साफ़-साफ़ समझ में आयी। उन्होंने बतलाया कि कोई तीन लाख वर्गमीटर क्षेत्र में फैला जाशिलून्पो मठ पोताला महल के बाद दूसरा सब से बड़ा निर्माण है। धन्यवाद इस विशेष प्रस्तुति के लिये।

    कार्यक्रम "दक्षिण एशिया फ़ोकस" के अन्तर्गत लम्बे समय बाद आज किसी सम-सामयिक विषय पर ताज़ा परिचर्चा सुन कर प्रसन्नता हुई। जी हाँ, भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की चीन यात्रा के दौरान उनके पेइचिंग विश्वविद्यालय दौरे के समय भारत और चीन के विभिन्न विश्वविद्यालयों के बीच हुये उच्च्स्तरीय शैक्षिक आदान-प्रदान समझौते पर हुये हस्ताक्षर तथा पेइचिंग विश्वविद्यालय में अध्ययनरत दो शोध छात्रों मनीष कुमार प्रियदर्शी तथा विकास कुमार सिंह से पंकज श्रीवास्तव की बातचीत काफी महत्वपूर्ण लगी। हमारे लिये यह अत्यन्त हर्ष का विषय है कि तमाम मतभेदों के बावज़ूद चीन-भारत दोनों देशों के बीच न केवल आवाजाही, अपितु शिक्षा, साहित्य-संस्कृति और तकनीकी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ रहा है। मुझे सीआरआई के पूर्व सहयोगी विकास कुमार का यह कहना बिलकुल सही प्रतीत हुआ कि भारत का सॉफ्टवेयर एवं चीन का हार्डवेयर मिल कर एक हो जायें, तो यूरोपीय देशों को भी पीछे छोड़ सकते हैं। जहाँ तक इक्कीसवीं सदी एशिया की होने की बात है -इस पर भी उनका यह कहना सही उतरता है कि दोनों देश अपने बीच का तनाव समाप्त कर सहयोग के रास्ते पर चलें, तो यह सदी निश्चित तौर पर एशिया की हो सकती है। धन्यवाद इस सारगर्भित प्रस्तुति के लिये।  

    हैया:अब सुनिए योग गुरु मृतुंजय जी के साथ हुई बातचीत।

    ---- INTERVIEW-----

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल और हैया को आज्ञा दीजिए, नमस्कार।

    हैया:गुडबाय।

    © China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
    16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040