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पंकज - नमस्कार मित्रों आपके पसंदीदा कार्यक्रम आपकी पसंद में मैं पंकज श्रीवास्तव आप सभी का स्वागत करता हूं, आज के कार्यक्रम में भी हम आपको देने जा रहे हैं कुछ रोचक आश्चर्यजनक और ज्ञानवर्धक जानकारियां, तो आज के आपकी पसंद कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं।
अंजली – श्रोताओं को अंजली का भी प्यार भरा नमस्कार, श्रोताओं हम आपसे हर सप्ताह मिलते हैं आपसे बातें करते हैं आपको ढेर सारी जानकारियां देते हैं साथ ही हम आपको सुनवाते हैं आपके मन पसंद फिल्मी गाने तो आज का कार्यक्रम शुरु करते हैं और सुनवाते हैं आपको ये गाना जिसके लिये हमें फरमाईश पत्र लिख भेजा है .... मालवा रेडियो श्रोता संघ, प्रमिलागंज, आलोट से बलवंत कुमार वर्मा, राजुबाई माया वर्मा, शोभा वर्मा, राहुल ज्योति और अतुल ने आप सभी ने सुनना चाहा है बंबई का बाबू (1960) फिल्म का गाना जिसे गाया है आशा भोंसले ने गीतकार हैं मजरूह सुल्तानपुरी और संगीत दिया है सचिन देव बर्मन ने और गीत के बोल हैं ----
सांग नंबर 1. देखने में भोला है दिल का सलोना .....
पंकज - सौ करोड़ की कंपनी का मालिक बना कुली का बेटा, छठवीं कक्षा में हुआ था फेल
वायनाड के छोटे से गांव चेन्नालोड में पले बढ़े पीसी मुस्तफा की सफलता की कहानी कि हर कोई उनकी तरह मेहनत कर आगे बढ़ना चाहेगा। मुस्तफ़ा ने बचपन में ही सोच लिया था कि वो बिज़नेसमैन बनेंगे और ग्रामीण लोगों को रोज़गार देंगे। और उन्होंने जैसा सोचा वैसा कर दिखाया इसका नतीजा ये है कि आज पीसी मुस्तफ़ा की कंपनी के बने ताज़ा इडली और डोसे चेन्नई, बैंगलूरु, हैदराबाद, दिल्ली यहां तक कि दुबई के लोगों के मुंह का ज़ायका बढ़ा रहे हैं। मुस्तफ़ा इन दिनों अपनी कंपनी के सौ करोड़ के टर्नओवर की वजह से सुर्खियों में बने हुए हैं। मुस्तफ़ा ऐसे गांव से हैं जहां पर पढ़ाई के लिये सिर्फ प्राईमरी स्कूल था। इससे भी बड़ी बात ये है कि उन्हें स्कूल जाने का सफर पैदल ही तय करना पड़ता था। उनके पिता ने भी ऐसा ही किया था और चौथी क्लास तक पढ़ाई करने के बाद स्कूल छोड़ दिया था और कुली बन गए थे। उनकी मां ने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा। स्कूल के बाद और छुट्टी के समय मुस्तफ़ा अपने पिता की मदद सामान ढोने में किया करते थे। रात को पढ़ाई का कोई सवाल ही नहीं उठता था क्योंकि रात को रौशनी की कोई व्यवस्था थी ही नहीं, इसलिये वो हर विषय में सामान्य से कम थे लेकिन उनकी गणित अच्छी थी।
अंजली - वैसे माना कि हम सभी की जिंदगी सीधी सादी नहीं चलती है बल्कि हमें इस एक जिंदगी में कई आड़े तिरछे रास्ते तय करने पड़ते हैं, लेकिन जब आप इन आड़े तिरछे रास्तों को पारकर एक लक्ष्य पर पहुंचते हैं तो आपको महसूस होता है कि आपने अपने जीवन में कई तरह के अनुभवों के बाद सफलता पाई है। श्रोता मित्रों एक बात तो तय है कि हमारे सामने अपनी किस्मत बदलने का एकमात्र ज़रिया है और वो है शिक्षा का, अगर हम सिर्फ शिक्षा पर ही ध्यान दें तो हम बहुत आगे निकल सकते हैं, और आजकल तो सभी लोग समय को देखते हुए बाज़ार की मांग के अनुसार शिक्षा ग्रहण करते हैं। मित्रों इसी के साथ मैं उठा रही हूं कार्यक्रम का अगला पत्र जो हमें लिख भेजा है, शिवाजी चौक, कटनी, मध्यप्रदेश से अनिल ताम्रकार, अमर ताम्रकार, संतोष शर्मा, रज्जन रजक, राजू ताम्रकार, दिलीप वर्मा, रविकांत नामदेव, इनके साथ ही पवन यादव, सत्तू सोनी, अरुण कनौजिया, संजय सोनी, लालू, सोना, मोना, हनी, यश, सौम्या और इनके मम्मी पापा ने आप सभी ने सुनना चाहा है धड़कन (1972) फिल्म का गाना जिसे गाया है किशोर कुमार और आशा भोंसले ने गीतकार हैं प्रेम धवन और संगीत दिया है रवि ने और गीत के बोल हैं ----
सांग नंबर 2. मैंने पहली ही बार देखा गुस्सा ....
पंकज - छठीं में फेल होने के बाद मुस्तफा का मन स्कूल जाने में भी नहीं लगता था। उनके पिता ने उन्हें कुली बनने के लिये कहा। मुस्तफ़ा के पिता ने उन्हें भी कुली बनने के लिये कहा, ऐसे में उनके गणित के अध्यापक को मुस्तफ़ा का स्कूल छोड़ना पसंद नहीं आया और उन्होंने मुस्तफ़ा के पिता से उन्हें एक मौका और देने की बात कही, शिक्षक ने मुस्तफ़ा से सवाल किया कि तुम कुली बनना चाहोगे या शिक्षक, मुस्तफ़ा ने ध्यान से अपने शिक्षक को देखा और अपने कुली पिता के बारे में सोचा फिर कहा कि वो शिक्षक बनना चाहेंगे। मुस्तफ़ा जब स्कूल पहुंचे तो उन्हें अपने से छोटी क्लास के बच्चों के साथ बैठना पड़ा, उनके साथ के बच्चे उनसे ऊंची कक्षा में चलगे गए थे, मुस्तफ़ा की हिन्दी और अंग्रेज़ी भी समामान्य से कम थी ऐसे हमें उनके गणित के अध्यापक ने उनकी बहुत मदद की।
अपने कठिन परिश्रम की बदौलत मुस्तफ़ा ने सातवीं कक्षा में टॉप कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद हाईस्कूल की परीक्षा में भी वो पूरे स्कूल में अव्वल आए। इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की परीक्षा दी जिसमें उनका 63वां रैंक आया और उनका दाखिला रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया, जिसे अब नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के नाम से जाना जाता है। यहां भी मुस्तफ़ा को अंग्रेज़ी में परेशानी हुई लेकिन उन्होंने मेहनत से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली और आज वो 100 करोड़ की कंपनी के मालिक हैं।
अंजली – मित्रों अगर आज के दौर में हम पढ़ाई लिखाई करने के बाद भी किसी की नौकरी करने की बात सोचेंगे तो उससे कहीं अच्छा है कि आप अपना खुद का कुछ काम शुरु करें, भले ही छोटे स्तर पर करें लेकिन अपना काम करने में इस बात की संतुष्टि मिलती है कि हम जो कुछ भी कर रहे हैं वो अपने लिये कर रहे हैं। बाज़ार पर पैनी नज़र बनाए रखते हुए अगर हम अपना कारोबार शुरु करते हैं तो उसे आगे बढ़ाने से हम भी और तरक्की करते जाएंगे, वैसे आजकल भारत का बाज़ार बहुत गर्म है, और युवा वर्ग अपना खुद का काम शुरु करने को लेकर बहुत उत्साहित भी है। जब किसी भी देश या समाज का युवावर्ग इस तरह से आत्मनिर्भरता की तरफ़ आगे बढ़ता है तो उस समय उसका बहुत विकास होता है, क्योंकि एक सकारात्मक सोच के साथ पूरा समाज आगे बढ़ रहा होता है। मित्रों अब हम उठाने जा रहे हैं कार्यक्रम का अगला पत्र जिसे हमें लिख भेजा है धर्मेन्द्र सिंह और इनके साथियों ने मलथोने, जिला सागर, मध्यप्रदेश से आप सभी ने सुनना चाहा है सुनयना (1981) फिल्म का गाना जिसे गाया है यसुदास ने गीतकार और संगीतकार हैं रविन्द्र जैन और गीत के बोल हैं -----
सांग नंबर 3. सुनयना ....
पंकज - खास बात ये है कि मुस्तफ़ा ने नौकरी से कमाए गए पैसों से कंपनी की शुरुआत की थी। छठीं कक्षा में फेल होने के बाद उन्होंने दोबारा छठीं कक्षा को पास किया और ये सिलसिला 12वीं तक ऐसे ही चलता रहा। इसके बाद मुस्तफ़ा का दाखिला कोझीकोडे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया। कोर्स पूरा करने के बाद उन्हें अमेरिकी मोबाइल फोन कंपनी मोटोरोला में जॉब मिल गई। बेंललुरु में ज्वाइन करने के बाद कंपनी ने उन्हें लंबे वक्त के प्रोजेक्ट पर ब्रिटेन भेजा लेकिन मुस्तफा का मन वहां नहीं लगा। वहां कुछ दिनों तक नौकरी करने के बाद मुस्तफ़ा दुबई चले गए। यहां उन्होंने सिटी बैंक के टेक्नॉलजी डिपार्टमेंट में नौकरी की। इसके बाद उन्होंने सात साल रियाद और दुबई में बिताए। इसके बाद वो वापस भारत आ गए जहां पर उन्होंने बैंगलुरू आईआईएम से एमबीए किया। पढ़ाई के साथ साथ मुस्तफ़ा अपने रिश्ते के भाई की किराना की दुकान पर बैठते थे। हालांकि वो दुकान पर सिर्फ शनि और रविवार को ही बैठते थे, इस दौरान मुस्तफ़ा ने देखा कि महिलाएं दुकान से इडली और डोसे का बैटर खरीदकर ले जाती थीं। यहीं से उन्हें किसी की नौकरी करने की जगह पैकेज्ड फूड का बिज़नेस करने का आईडिया आया। मुस्तफ़ा इस बिज़नेस में कूद पड़े, अपनी नौकरी के दौरान बचाए गए 14 लाख रुपयों से उन्होंने बिज़नेस की शुरुआत की जिसमें उनके रिश्ते के भाईयों ने भी मदद की। इन सबने मिलकर बैटर बनाने, उसे पैक करने में मददगार कुछ मशीनों को खरीदा और यहीं से आईडी फ्रेश की शुरुआत हो गई। मुस्तफ़ा कहते हैं कि उनका विचार बड़ा सीधा सा था, वो लोगों के घरों तक उनकी ज़रूरत का सामान साफ सुथरे तरीके से पैक करके पहुंचाना चाहते थे। काम को शुरु हुए अभी कुछ सप्ताह ही बीते थे कि बैंगलूरू में शुरु हुआ उनका कारखाना लोगों की नज़रों में आने लगा जिससे उनके विचार को लोगों की मान्यता मिलने लगी। जल्दी ही आईडी फ्रेश ने नेचुरल ने घर में पकाने लायक नेचुरल भोजन सामग्री उपलब्ध कराने के इरादे से एक बड़ा कारखाना खोला इनका इरादा एक बड़ी कंपनी शुरु करने का है। अब इनका इरादा एक बड़ी खाद्य कंपनी खोलने का है।
अंजली – श्रोता मित्रों अब बारी है एक और फिल्मी गाना सुनने की जिसके लिये हमें फरमाईशी पत्र लिख भेजा है ग्राम महेशपुर खेम, ज़िला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश से तौफ़ीक अहमद सिद्दीकी, अतीक अहमद सिद्दीकी, मोहम्मद दानिश सिद्दीकी और इनके मित्रों ने आप सभी ने सुनना चाहा है हाउस नंबर 44 फिल्म का गाना जिसे गाया है लता मंगेशकर ने गीतकार हैं साहिर लुधियानवी और संगीत दिया है सचिन देव बर्मन ने और गीत के बोल हैं -----
सांग नंबर 4. फैली हुई है सपनों की बाहें .....
पंकज - मुस्तफा कहते हैं कि हमने शुरुआत में ही तय किया था कि हमारे उत्पादों की गणवत्ता उच्च कोटि की रहे और पैकेजिंग भी अच्छी रहे। बैंगलुरु में 65 हज़ार खुदरा दुकानें हैं जिनमें 12 हज़ार के पास रेफ्रिजरेशन की सुविधा उपलब्ध है, उन्हें अपनी पहुंच को विस्तार देने के लिये अपने उत्पादों को अधिक से अधिक स्टोर पर पहुंचाने की ज़रूरत थी। कुछ वर्षों बाद मुस्तफा को अपनी कंपनी को और विस्तार और निवेश का विचार आया। कंपनी ने 2014 में हेलियन वेंचर्स पार्टनर्स से 35 करोड़ रुपये का निवेश पाने में सफलता पाई।
वर्तमान में आईडी फ्रेश अपने सात कारखानों और आठ कार्यालयों के साथ अपने 1 हज़ार स्टाफ के साथ काम कर रहा है। मुस्तफ़ा कहते हैं कि अब हम रोज़ाना 50 हज़ार किलो का इडली और डोसे का घोल तैयार करते हैं जिससे प्रतिदिन 10 लाख इडली तैयार की जा सकती है।
मुस्तफ़ा ने कहा कि इडली डोसा घोल के बाद अब मालाबार पराठा इनका सबसे लोकप्रिय उत्पाद है जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया है, इसके साथ ही आईडी फ्रेश अब कई तरह की चटनियों को भी बना रही है, दक्षिण भारत में सबसे कम समय में आईडी फ्रेश घर घर में एक जाना माना नाम बन गई है। उन्होंने आगे कहा कि इडली डोसे का घोल सुबह पांच बजे तक सील पैक कर के चिलर वैन में लोड कर देते हैं। इसके बाद बैंगलुरु और इसके आस पास के शहरों में इसकी आपूर्ति की जाती है। हमने कई खुदरा स्टोरों के साथ हाथ मिलाया हुआ है और सभी स्टोरों तक हम दिन के दो बजे तक आपूर्ति कर देते हैं।
अंजली – आप काम चाहे कोई भी शुरु करें लेकिन पहले आप बाज़ार की मांग को देखें, पहले आप ये देखें कि बाज़ार में आपके उत्पादन की खपत कहां पर और कितनी होगी, इसके बारे में पहले आप एक शोध ज़रूर कर लें, उसके बाद ही आप कोई काम शुरु करें, जैसे मुस्तफा का ही उदाहरण लीजिये अगर इन्होंने ये काम बैंगलुरु के उपनगर के बजाय किसी गांव ये बहुत छोटे कस्बे में शुरु किया होता तो वहां पर इतनी मांग नहीं होती, क्योंकि बैंगलुरू बड़ा शहर है वहां पर लोगों के पास समय कम रहता है और समय बचाने के लिये लोग डोसा और इडली का घोल खरीदते हैं उस तैयार मांग को देखते हुए इन्होंने अपना कारखाना लगाया, यानी जहां पर मांग है और लोग पैसा खर्च करने को तैयार हैं वहीं पर आप इस तरह का काम शुरु कर सकते हैं, नहीं तो हो सकता है कि आपका निवेश बेकार चला जाए। मित्रों हमारे अगले श्रोता हैं कलेर बिहार से आसिफ़ ख़ान, बेगम निकहत परवीन, सदफ़ आरज़ू, बाबू अरमान आसिफ़ इनके साथ ही मदरसा रोड कोआथ से हाशिम आज़ाद, दुर्गेश दीवाना, डॉक्टर हेमन्त कुमार, पिंटू यादव और बाबू साजिद आप सभी ने सुनना चाहा है संघर्ष (1999) फिल्म का गाना जिसे गाया है कुमार शानू ने गीतकार हैं समीर, संगीत दिया है जतिन ललित ने और गीत के बोल हैं ----
सांग नंबर 5. नाराज़ सवेरा है ....
इस समय मुस्तफा की कंपनी उस स्थान पर पहुंच चुकी है जहां पर हर स्टोर अपनी ज़रूरत के मुताबिक उन्हें ऑर्डर कर अपना सामान स्टॉक करवा सकता है। ये खाद्य पदार्थों में सबसे कम समय पर बुलंदियों को छूने वाली ऐसी कंपनी बन गई है जिसका उदाहरण हर जगह दिया जा रहा है। कंपनी ने बिग बास्केट और ग्रोफर्स ऑनलाइन रिटेलर्स के साथ भी अनुबंध किया है हालांकि मुस्तफा मानते हैं कि अभी हमारे बिज़नेस में ऑनलाइन रिटेल का हिस्सा बहुत कम है। वो बताते हैं कि सभी चैनल्स हमारे उपभोक्ताओं के लिये इस मामले में मददगार हैं कि वो कभी भी अपनी ज़रूरत के मुताबिक हमें ऑर्डर कर सकते हैं। मुस्तफा कहते हैं कि वर्ष 2020 तक हमारा इरादा 1 हज़ार करोड़ की कंपनी स्थापित करने का है। आज उनकी कंपनी दक्षिण भारत के सात शहरों में दो सौ गाड़ियों के साथ सामान पहुंचाने का काम कर रही है और इनके एक हज़ार कर्मचारी रोज़ दस हज़ार स्टोर्स के साथ संपर्क में रहते हैं।
अंजली – मित्रों अब वक्त हो चला है कार्यक्रम का अगला गीत सुनने का जिसके लिये हमें पत्र लिखा है बाबू रेडियो श्रोता संघ, आबगिला गया से मोहम्मद जावेद खान, ज़रीना खानम, मोहम्मद जमील खान, रज़िया खानम, शाहिना परवीन, खाकशान जाबीन, बाबू टिंकू, जे के खान, बाबू, लड्डू, तौफीक उमर खान, इनके साथ ही केपी रोड गया से मोहम्मद जमाल खान मिस्त्री, शाबिना खातून, तूफानी साहेब, मोकिमान खातून, मोहम्मद सैफुल खान, ज़रीना खातून आप सभी ने सुनना चाहा है फिल्म उसने कहा था (1960) का गाना जिसे गाया है तलत महमूद और लता मंगेशकर ने गीतकार हैं शैलेन्द्र और संगीत दिया है शलिल चौधरी ने और गीत के बोल हैं ----
सांग नंबर 6. आहा रिमझिम के ये प्यारे प्यारे गीत लिये ....
पंकज – तो मित्रों इसी के साथ हमें आज का कार्यक्रम समाप्त करने की आज्ञा दीजिये अगले सप्ताह आज ही के दिन और समय पर हम एक बार फिर आपके सामने लेकर आएंगे कुछ नई और रोचक जानकारियां साथ में आपको सुनवाएँगे आपकी पसंद के फिल्मी गीत तबतक के लिये नमस्कार।
अंजली - नमस्कार।
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