जलवायु परिवर्तन की समस्या और इंसानों द्वारा पैदा की जा रही कार्बन डाई-ऑक्साइड के दुष्प्रभावों से निपटने का एक स्थायी समाधान मिल गया है। वैज्ञानिकों ने वातावरण को गर्म करने के लिए जिम्मेदार गैस कार्बन डाई-ऑक्साइड को तुरंत-फुरत एक पत्थर में बदलने का तरीका खोज लिया है। यह कामयाबी आईसलेंड के वैज्ञानिकों ने हासिल की है। दो साल की इस परियोजना को संक्षेप में कार्बन फिक्स नाम दिया गया है।
वैसे तो कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेड(सीसीएस) नामक तकनीक से भी ऐसा किया जा सकता है, लेकिन इसमें काफी लंबा समय लगता है। साथ ही ऐसा वहीं संभव है जहां कार्बन डाई-ऑक्साइड वातावरण से अलग होकर जमीन या समुद्र की तलहटी में फंस जाती है। लेकिन कोलंबिया यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ आइसलैंड और यूनिवर्सिटी ऑफ टाउलाइस ऐंड रिक्याविक एनर्जी के रिसर्चरों ने आइसलैंड के एक ज्वालामुखीय द्वीप पर किए गए प्रयोग में कार्बन डाई-ऑक्साइड और पानी को बेसाल्ट चट्टानों के नीचे 540 मीटर गहराई में मिलाया। यह एसिडिक मिश्रण चट्टान के कैल्शियम मैग्नीशियम में घुल गया और इसने लाइमस्टोन(चूना पत्थर) बना दिया।
यूनिवर्सिटी ऑफ साउथहैम्पटन के जुर्ग मेटर के अनुसार, इस प्रकार कार्बन डाई-ऑक्साइड को स्थायी रूप से और प्राकृतिक तरीके से ट्रैप कर लिया गया। इस शोध के नतीज़ों को गुरुवार को जर्नल-सायेंस में प्रकाशित किया गया है। उम्मीद है कि इससे इंसानों के द्वारा पैदा की गयी ग्लोबल वोर्मिंग से लड़ने में प्रभावी हथियार और नया हथियार मिल गया है।
इससे वातावारण में मौजूद कार्बन डाई ऑक्साइड गैस को जरूरत पड़ने पर पत्थर में बदला जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि दो साल तक चले प्रयोग में वैज्ञानिकों ने एक स्थान की 95 फीसद कार्बन डाई-ऑक्साइड गैस को पैप्चर करके उसे पत्थर में बदल दिया गया। यह काम पहले के अनुमानों के मुकाबले ज्यादा तेज़ी से हुआ। पहले माना जा रहा था कि कार्बन डाई-ऑक्साइड की कैप्चर एंड स्टोरेड प्रोसेस(सीसीएस) में हजारों वर्षों का समय लग सकता है।