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    छिंगहाई-तिब्बत रेलवे ने बदला तिब्बती लोगों का जीवन
    2016-07-02 14:24:59 cri

    दस साल पहले चीन ने दुनिया में सबसे ऊंचे और विशाल पठार पर छिंगहाई-तिब्बत रेलवे का निर्माण किया था । छिंगहाई-तिब्बत मार्ग यानी विश्व के सबसे ऊंचे और सबसे लंबे पठार पर दस साल पहले रेल लाइन शुरू होने के बाद तिब्बती लोगों के जीवन में व्यापक बदलाव आया है।

    जैसा कि हम जानते हैं कि 'छिंगहाई-तिब्बत पठार'को 'विश्व की छत'के रूप में जाना जाता है। जहां पहले बाहरी लोगों के लिए पहुंचना बहुत मुश्किल होता था।

    लेकिन रेल लाइन चालू हो जाने के बाद, बड़ी संख्या में पर्यटक और छुट्टियां मनाने के शौकीन तिब्बत पहुंचते हैं। तिब्बत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, उक्त स्वायत्त क्षेत्र में वर्ष 2015 में 20 मिलयन से अधिक पर्यटक पहुंचे। यह रेल मार्ग शुरू होने से पहले की तुलना में 11 गुना अधिक है।

    छन यौवथी, तिब्बत की बांग काउंटी में शिक्षा विभाग में काम करते हैं। वह कहते हैं कि, छिंगहाई-तिब्बत रेलवे ने मेनलैंड चायना से तिब्बत की यात्रा का समय बहुत कम कर दिया है। इसके साथ ही यात्रा खर्च में भी कमी आयी है।

    छन यौवथी कहते हैं, "आप कल्पना नहीं कर सकते कि उस वक्त तक मेरे लिए तिब्बत आना और यहां से बाहर जाना कितना मुश्किल भरा होता था। मुझे युन्नान प्रांत में अपने घर से यहां आने में चार दिन लगते थे। लेकिन छिंगहाई-तिब्बत रेलवे का संचालन शुरू होने के बाद मुझे सिर्फ छंगदू में ट्रेन बदलनी पड़ती है। इसके चलते यात्रा का समय 90 घंटे से घटकर 60 घंटे हो चुका है। "

    रेलमार्ग शुरू होने का सबसे अधिक लाभ स्थानीय तिब्बती लोगों को मिला है। साठ वर्षीय ताशी त्सरिंग को शिकाज़े से ल्हासा अपना वेतन लेने के लिए ट्रेन से जाना होता है, ऐसे में रेल ने उनके जीवन को बदल दिया है।

    उन्हों ने कहा,"छिंगहाई-तिब्बत रेलवे ने हमारे लिए बहुत सुविधा कर दी है। तिब्बती लोगों को इससे बहुत फायदा हुआ है, यह मेरी कल्पना से बाहर था। रेल से यात्रा करना न केवल सुरक्षित है, बल्कि तेज़ और सस्ता भी। रेल मार्ग के चालू होने के बाद मैं शिकाज़े से ल्हासा दस बार यात्रा कर चुका हूं। "

    इसके चलते तिब्बत में लोगों के रोजमर्रा के खर्च में भी कमी आयी है। नागछ्यू लॉजिस्टिक सेंटर के प्रमुख चिंग चान चिए, सामान सस्ता होने की वजह छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग को बताते हैं।

    उन्हों ने कहा,"छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग के शुरू होने के बाद वस्तुओं का परिवहन बहुत सुविधाजनक हो गया है। इसकी वजह से लोगों के रोजमर्रा के खर्च में भी कमी आ चुकी है। मसलन, चावल, तेल, आटा और अन्य खाद्य सामग्री के दाम कम हो गए हैं।"

    इसके साथ ही चिंग चान चिए कहते हैं कि, सड़क मार्ग की तुलना में रेलवे से बिल्डिंग निर्माण की सामग्री, जिसमें स्टील, सीमेंट और लकड़ी आदि शामिल है, ले जाना सस्ता होता है। ध्यान रहे कि नागछ्यू में रेलवे मार्ग से लगते हुए कई नए कस्बे हैं।

    तिब्बत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, तिब्बत का जीडीपी, 2015 में 100 अरब युआन पहुंच चुका है। जबकि, 2005 में यह महज 25 अरब युआन था। जिसमें 10 फीसदी की सालाना बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।

    छिंगहाई-तिब्बत रेल कर्मियों के बारे में

    छिंगहाई तिब्बत रेलवे लोगों को आश्चर्य में डाल देती है। चीन की मुख्य भूमि से रेल के रास्ते तिब्बत के जुड़ने के बाद हर साल लाखों की संख्या में यात्री ट्रेन से सफर करते हैं। जहां आम लोगों के लिए रेल से यात्रा करना रोमांच भरा होता है, वहीं ट्रेन के कर्मचारियों के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी भी होती है। सीआरआई संवाददाता को छिंगहाई-तिब्बत ट्रेन में काम करने वाली चांग याली से मिलने का मौका मिला। चांग याली नाम की कंडक्टर, जो कि ट्रेन संख्या ज़ेड 166 में काम करती हैं।

    "जब मैं उससे मिली, उस वक्त वह ट्रेन में अपने काम में व्यस्त थी, चांग याली के लिए जॉब का सबसे मुश्किल समय परिवार से दूर रहना होता है ।"

    चांग याली कहती हैं,"हमें वीकेंड की छुट्टी कभी नहीं मिलती, हमें हर वक्त दूसरे कर्मचारियों के स्टैंडबाय के तौर पर हमेशा तैयार रहना होता है। कभी-कभी हमें नए साल की पूर्व संध्या पर भी काम करना पड़ता है। मैं अपने परिवार के साथ चीनी नव वर्ष तीन साल पहले मनाया था। मैं अपने दादा-दादी और मां-बाप का ख्याल नहीं रख पाती हूं, उनके बीमार होने पर भी नहीं। जब कभी ऐसा होता है, मुझे बुरा लगता है, लेकिन मुझे अपनी जिम्मेदारी निभानी होती है।"

    चांग याली अपने परिवार की अकेली व्यक्ति नहीं है, जो रेलवे सेक्टर में काम करती है। उसके पिता भी रेलवे में इंजीनियर के तौर पर पिछले 30 सालों से काम कर रहे हैं। वह कहती है कि, उसका परिवार उसके काम करने का पूरा सपोर्ट करता है, विशेषकर उसकी मां, उसे परेशानी के वक्त ढांढस बंधाती है।

    गौरतलब है कि छिंगहाई-तिब्बत रेल लाईन, ऊंचे पठार चलती है, जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 5100 मीटर है। पठारीय रोग और परेशानी चांग याली और उसके साथियों के लिए काम को और भी मुश्किल बनाती है।"मुझे बहुत तेज़ सिर दर्द होता है, और मैं नींद न आने की बीमारी से भी त्रस्त हूं, ट्रेन में काम करने वाले किसी भी क्रू मेंबर को जुकाम या बुखार होने पर, ट्रेन में काम करने की अनुमति नहीं होती। क्योंकि ऊंचे पठार पर जुकाम या बुखार से इम्फीसीमा नामक बीमारी होने का खतरा रहता है। ट्रेन में आपात स्थिति के लिए दो ऑक्सीजन सिलेंडर रखे होते हैं।"

    पर्यावरण को बचाने के मकसद से छिंगहाई-तिब्बत रेलवे में चलने वाली ट्रेने बंद होती हैं, जब ट्रेन गोलमुड पर पहुंचती है, तो वहां ट्रेन के शौचालय आदि का वेस्ट हटाया जाता है। गौरतलब है कि गोलमुड से छिंगहाई-तिब्बत रेलवे के दूसरे भाग की शुरुआत होती है।

    यहां बता दें कि ट्रेन के जरिए यात्रा करने वाले लोग या तो पर्यटक होते हैं, अन्यथा स्थानीय तिब्बती नागरिक। जब कभी तिब्बत का नया साल, 'लोसार' आता है, तब चांग याली और उसके सहकर्मी तिब्बती संस्कृति की झलक लिए प्रोग्राम पेश करते हैं।"तिब्बती नव वर्ष के मौके पर क्रू मेंबर्स को गाना, नाचने के अलावा कविता पाठ आदि प्रोग्राम प्रस्तुत करने पड़ते हैं। हम स्लीपिंग कोच से यात्रियों को हार्ड सीट वाले कोच में बुलाते हैं। क्योंकि यहां ज्यादा जगह होती है। लोगों को हमारे प्रोग्राम बहुत पसंद आते हैं।"

    बताया जाता है कि, पिछले साल तिब्बत में 20 मिलयन से अधिक पर्यटक घूमने पहुंचे, यह रेल लाइन शुरू होने से पूर्व की तुलना में 11 गुना अधिक है। पहली जुलाई को दो हज़ार किलोमीटर लंबे रेल मार्ग को दस साल पूरे हो गए।

    (अनिल आजाद पांडेय)

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