पुत्र:पापा, अगर एक आदमी ज्यादा पैसा कमा सकता है, तो वे ज्यादा महान बन जाएंगे, क्या यह ठीक है?
पापा:हाहा, ऐसा नहीं है।
पुत्र:पर क्यों बहुत लोग अमीरों से ईर्ष्या करते हैं?
पापा:एक आदमी महान है या नहीं। इसका मापदंड संपत्ति नहीं है। पर उस का प्रभाव और मानव जाति के लिये उसका योगदान है। एक कवि अगर अपनी कविता द्वारा हम पर प्रभाव डालता है, तो हम कह सकते हैं कि वे एक महान कवि है। एक लेखक अगर अपने लेख से हम पर प्रभाव डालता है, तो हम कह सकते हैं कि वे एक महान लेखक है। और एक व्यापारी अगर अपनी क्षमता से बहुत सो लोगों को रोज़गार देता है, और अपने द्वारा प्राप्त संपत्ति को लोकोपकार में प्रयोग करता है, तो हम भी कह सकते हैं कि वे बहुत महान है।
पुत्र:लेकिन मुझे लगता है कि बहुत लोगों को पैसा पसंद है?
पापा:यह सच है कि पैसे द्वारा मानव की बहुत स्वार्थपूर्ण इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। मानव एक समूह है, यह असंभव है कि हम हर व्यक्ति से निःस्वार्थ बनने का आग्रह करें। अगर पैसे की चाहत ज्यादा है, तो स्वार्थी लोगों की संख्या भी ज्यादा होगी। हालांकि पैसे की राशि से हम एक व्यक्ति का मूल्यांकन नहीं कर सकते, बल्कि पैसे की चाहत से हम एक व्यक्ति का मूल्य समझ सकते हैं।