अक्सर बुजुर्ग लोग शिकायत करते हैं कि उन्हें नींद कम आती है। कम से कम आधे उम्रदराज लोग नींद की परेशानी का सामना करते हैं। एक तिहाई से एक चौथाई बुजुर्ग नींद न आने से परेशान होते हैं।
बुजुर्गों को नींद की ये दिक़्क़त दो तरह से परेशान करती है। रात होते ही वो सो जाते हैं। फिर तड़के उनकी नींद खुल जाती है। वो उनींदे से रहते हैं। मगर सो नहीं पाते। कई बार बीमारियों की वजह से उनके लिए सो पाना मुश्किल हो जाता है। लेकिन, कई बुजुर्ग लोग सेहतमंद होने के बावजूद ठीक से नहीं सो पाते।
लंबे वक़्त तक ठीक से नहीं सो पाने पर सेहत पर कई तरह से बुरा असर पड़ता है। इससे बीमारियों से लड़ने की हमारी ताक़त कमज़ोर पड़ती है। हम अच्छा नहीं महसूस करते। दिन में अलसाये से रहते हैं। इससे हमारे किसी हादसे का शिकार होने का डर बढ़ जाता है। इसलिए हमारी अच्छी सेहत के लिए अच्छी नींद ज़रूरी है।
मगर, जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, नींद की हमारी ज़रूरत कम होती जाती है। इसलिए अगर बुढ़ापे में कम नींद आती है, तो ज़्यादा परेशान होने की ज़रूरत नहीं।
वैसे ये बता पाना बेहद मुश्किल है कि उम्र के किस दौर में इंसान को कितना सोने की ज़रूरत है। लेकिन हम ये ज़रूर पता लगा सकते हैं कि लोग कितने घंटे सोते हैं। इससे ये पता चलता है कि जवान लोगों के मुक़ाबले बुजुर्ग कम सोते हैं। हां, इससे ये तो पता चलता है कि वो कम सोते हैं। मगर ये नहीं पता चलता कि क्या उन्हें कम नींद की ज़रूरत होती है!
लोग तर्क देते हैं कि बुजुर्ग रात में इसलिए कम सोते हैं, क्योंकि दिन में वो अच्छा ख़ासा वक़्त ऊंघते या कई बार झपकी लेते हुए गुज़ारते हैं। लेकिन कुछ लोग ये भी कहते हैं कि दिन में अलसाए रहने का ये मतलब नहीं कि बुजुर्गों को कम नींद की ज़रूरत है।
उम्रदराज़ लोगों में नींद न आने की बीमारी को अक्सर डॉक्टर संजीदगी से नहीं लेते। एक सर्वे के मुताबिक़ 69 फ़ीसद बुजुर्गों ने ठीक से नींद न आने की शिकायत की। मगर, उनमें से 81 फ़ीसदी की शिकायत को डॉक्टरों ने उनकी फ़ाइल में नोट तक नहीं किया।
तो कुछ वक़्त के लिए अगर हम ये मान लें कि बुजुर्गों को ज़्यादा नींद की ज़रूरत होती है। तो फिर वो आख़िर कम घंटे क्यों सोते हैं? इसकी एक वजह ये हो सकती है कि उम्र बढ़ने के साथ उनकी नींद में खलल पड़ता है और वो जल्दी उठ जाते हैं। कुछ रिसर्च ये बात सही भी साबित हुई है। बुजुर्ग रात में जल्दी सो जाते हैं और सुबह जल्दी उठ भी जाते हैं। उन्हें शायद और नींद की ज़रूरत होती है। मगर वो सो नहीं पाते हैं। कई बार वो सो भी जाते हैं, मगर उन्हें गहरी नींद नहीं आ पाती।
अभी हाल में रूस में 130 लोगों को एक लैब में दिन और रात जगाए रखा गया। बीच-बीच में उनसे पूछा जाता था कि उन्हें कितनी तेज़ नींद आ रही है। अलग अलग समय पर उन्हें नींद के झोंके अलग तरह से आ रहे थे। इसकी वजह ये थी कि दिन के अलग अलग दौर में शरीर से मेलाटोनिन नाम के हारमोन निकलने की प्रक्रिया अलग थी।
इस तजुर्बे से ये भी मालूम हुआ कि बुजुर्गों को नींद, जवान लोगों के मुक़ाबले अलग वक़्त पर आ रही थी।
रूस में रिसर्च करने वाले अर्केडी पुतिलोव का मानना है कि उम्र बढ़ने के साथ गहरी नींद लाने वाली दिमाग़ की तरंगें कमज़ोर पड़ जाती हैं। इस वजह से बुजुर्गों का सोना मुश्किल होने लगता है। इसी तरह बुजुर्गों की सिर्केडियन रिदम, या शरीर की घड़ी की रफ़्तार भी धीमी पड़ जाती है। क्योंकि शरीर का तापमान कम हो जाता है। साथ ही मेलाटोनिन नाम का हारमोन भी कम निकलता है।
अमरीका की मिशीगन यूनिवर्सिटी की एन आर्बर ने दुनिया भर के क़रीब पांच हज़ार लोगों के सोने की आदत पर सर्वे किया। इसमें एक ऐप की मदद ली गई। इसके नतीजों से पता चला कि युवाओं में कुछ जल्दी उठने वाले थे तो कुछ देर रात तक जागने वाले। वहीं बुजुर्गो में आम तौर पर सोने की आदत एक जैसी पाई गई।
ज़्यादातर उम्रदराज लोग सुबह जल्दी उठने वाले थे। वो रात में जल्दी सो भी जाते थे। इस सर्वे में ये भी पता चला कि चालीस की उम्र के लोग सबसे कम सो पा रहे थे।
इससे साफ़ है कि बुजुर्गों की बॉडी क्लॉक में बदलाव की वजह से वो कम सो पाते हैं। मगर इसका ये मतलब नहीं कि उन्हें कम नींद की ज़रूरत होती है। साथ ही दिन के वक़्त की नींद उतनी अच्छी नहीं होती, जितनी रात की नींद। ऐसे में रात की नींद अच्छी नहीं आई, तो दिन में लोग आलस और नींद महसूस करते रहते हैं।
लेकिन नींद पर ये बहस ख़त्म यहां ख़त्म नहीं होती। 2008 में अमरीका के ब्रिंघम वुमेन हॉस्पिटल में कुछ लोगों को दिन में 16 घंटे सोने का मौक़ा दिया गया। 60 से 72 साल की उम्र के लोगों ने औसतन साढ़े सात घंटे की नींद ली। वहीं 18 से 32 साल की उम्र वालों ने नौ घंटे की नींद का मज़ा लिया। आप इसका मतलब निकाल सकते हैं कि जवानों को ज़्यादा नींद की ज़रूरत थी। लेकिन ये भी हो सकता है कि वो ज़्यादा थके थे इसलिए उन्हें ज़्यादा नींद आई।
मगर, सर्वे करने वालों की इसी टीम ने जब इंग्लैंड की सरे यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर तजुर्बा किया तो उसके दूसरे ही नतीजे निकले। एक बार फिर बुजुर्ग, नींद के लिए जूझते पाए गए। उन लोगों पर ख़ास निगरानी रखी गई। रात में जैसे ही उन्हें नींद आने लगती, रिसर्च करने वाले शोर या रौशनी करके उनकी नींद में खलल डालते। अगले दिन ये थके हुए बुजुर्ग, जवान लोगों की ही तरह आराम से दिन में ऊंघते नज़र आए। मतलब ये कि बुजुर्गों के शरीर को भी जब नींद की ज़रूरत हुई तो वो सो सके।
अमरीका का नेशनल स्लीप फाउंडेशन कहता है कि वयस्कों को सात से नौ घंटे की नींद चाहिए। वहीं 65 बरस से ज़्यादा उम्र के लोगों को 7 से 8 घंटे की नींद की ज़रूरत होती है।
इससे ये मतलब मत निकालिए कि बुजुर्गों को कम नींद की ज़रूरत होती है।
हां, रात में देर तक जागने के बाद सुबह उठकर थकान महसूस करना बहुत बुरा है। ये आपकी सेहत ख़राब कर सकता है. इसको गंभीरता से लेकर सोने से जुड़ी आदतें बदलने की कोशिश करनी चाहिए। वरना आपकी सेहत और बिगड़ सकती है।