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    20160614 चीन-भारत आवाज़
    2016-06-15 15:59:39 cri


    चीन और भारत प्रतिस्पर्द्धी हैं या मित्र हैं, पश्चिमी देशों के बीच यह बात अक्सर चर्चा का विषय रहा है। मई 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन की यात्रा की थी, पिछले महीने भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी चीन का दौरा किया था। चीन-भारत संबंध दिन प्रति दिन बेहतर हो रहे हैं, इससे फिर एक बार दुनिया को बताया गया है कि चीन और भारत रणनीतिक मित्र हैं।

    दो प्राचीन सभ्यताओं का स्रोत होने के नाते चीन और भारत की जनता का राष्ट्रीय पुनरुत्थान बढ़ाने का साझा सपना है। राष्ट्रपति मुखर्जी ने चीन आने से पहले कहा था कि चीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण साझेदारों में से एक है। भारत चीन के साथ संबंधों को और आगे बढ़ाने को प्राथमिकता देता है, साथ ही चीन के साथ आपसी विश्वास और मित्रता के आधार पर सहयोग साझेदारी मज़बूत करना चाहता है।

    एशियाई अर्थव्यवस्था के दो मुख्य इंजन होने के नाते "चीन की क्षमता" और "भारत की बुद्धिमत्ता" एक दूसरे से मिलती-जुलती है। "दुनिया का कारखाना" और "दुनिया का कार्यालय" हाथ में हाथ मिलाकर विकास की बड़ी निहित शक्ति को प्रोत्साहित करेंगे। चीन और भारत "एक पट्टी एक मार्ग" रणनीति में सहयोग करते हैं, एक साथ बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारे के निमार्ण कार्य को भी बढ़ाते हैं। चीन और भारत के सहयोग की विशाल संभावनाएं मौजूद हैं, जो क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण, संपर्क प्रक्रिया और एशियाई अर्थव्यवस्था के अनवरत विकास के क्षेत्रों में कुंजीभूत भूमिका निभाते हैं।

    चीन और भारत का साझा विकास एशिया की सुरक्षा और क्षेत्रीय शांति का मज़बूत आधार है। शांतिपूर्ण सह अस्तितव के पांच सिद्धांतों के प्रवर्तक होने के नाते चीन और भारत स्पष्ट रूप से समझते हैं कि दोनों के बीच सहमति मतभेद से कहीं अधिक है और सहयोग प्रतिस्पर्द्धा से अधिक है। पिछले 30 से अधिक वर्षों में चीन और भारत सक्रियता से सीमा वार्ता को बढ़ावा देते आ रहे हैं और सीमांत क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए हुए हैं। सीमा मुद्दे का निपटारा करने के लिए दोनों देशों ने न्यायोचित, युक्तिसंगत और दोनों के लिए स्वीकार्य समाधान ढूंढ़ने में कोशिश की और राजनीतिक मार्गदर्शक सिद्धांत पारित किया है।

    चीन और भारत का साझा विकास न सिर्फ़ दोनों देशों की जनता, बल्कि एशिया, यहां तक कि पूरी दुनिया के लिए भी लाभदायक है।

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    दूसरी दृष्टि से चीन-भारत संबंध देखें

    चीन-भारत संबंधों को और स्पष्ट रूप से समझाने के लिए भारत स्थित अस्थाई चीनी कार्यवाहक ल्यू चिनसोंग ने हाल ही में भारत के मीडिया कर्मचारियों, विद्वानों और थिंक टैंक के प्रतिनिधियों के साथ बैठक बुलाई। ढाई घंटों की बैठक में ल्यू चिनसोंग ने 20 से अधिक सवालों के जवाब दिए और उपस्थितों के साथ गहन रूप से विचारों का आदान-प्रदान किया।

    ल्यू चिनसोंग ने कहा कि भारतीय लोग चीन के प्रति रुचि रखते हैं, भारतीय मीडिया में चीन से जुड़ी रिपोर्टों की संख्या स्पष्ट रूप से बढ़ रही है। यह अच्छी बात है। लेकिन कुछ कारणों से भारतीय मित्र आसानी से पश्चिमी देशों की रिपोर्टों से प्रभावित हो जाते हैं और प्राचीन भू-रणनीति की विचारधारा पर सीमित रहते हैं। क्या भारतीय मित्र इसे छोड़कर दूसरी दृष्टि से चीन-भारत संबंधों को देख सकते हैं ?

    ल्यू चिनसोंग ने कहा कि कुछ भारतीय मित्रों ने कहा कि अब एशिया और नवोदित शक्तियों के पुनरुत्थान का कुंजीभूत समय ही नहीं, बल्कि वैश्विक और क्षेत्रीय ढांचे में समायोजन का महत्वपूर्ण चरण भी है। चीन और भारत को दीर्घकालीन और रणनीतिक दृष्टि से द्विपक्षीय संबंधों का विकास करने के साथ साथ वैश्विक और क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत बनाना चाहिए। यह विचार प्रशंसनीय है।

    चीन और भारत के बीच असंतुलित व्यापार की चर्चा में ल्यू चिनसोंग ने कहा कि केवल भारत और चीन की मुख्य भूमि के बीच वस्तु व्यापार की दृष्टि से देखा जाए, तो भारत के लिए प्रतिकूल संतुलन मौजूद है। लेकिन सेवा व्यापार और भारत और चीन के हांगकांग विशेष प्रशासनिक क्षेत्र के बीच व्यापार को शामिल करें, तो पता चलेगा कि प्रतिकूल संतुलन बहुत हद तक कम होगा। इसके साथ साथ भारत में चीन का प्रत्यक्ष पूंजी निवेश तेज़ी से बढ़ रहा है, इससे भारत के लिए न सिर्फ़ व्यापार में घाटा कम होगा, बल्कि रोज़गार के अवसर और कर-वसूली भी काफ़ी हद तक बढ़ेगी।

    कुछ भारतीय और चीनी विद्वानों का मानना है कि उद्योगों और उत्पादों के ढांचे की दृष्टि से दोनों देशों के बीच व्यापार का विस्तार करने की संभावना बड़ी नहीं है। लेकिन चतुर व्यापारी चीनी युवकों की इच्छा के अनुसार काली चाय चीन में बेचने लगे हैं। इस साल की पहली तिमाही में चीन में दार्जिलिंग चाय और असम चाय के निर्यात में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। दोनों देशों में ई-कॉमर्स भी धूमधाम से विकसित हो रहा है।

    कुछ भारतीय मित्र अकसर चीन-पाकिस्तान संबंधों पर गलत तरीके से सोचते हैं या फिर इसकी आलोचना करते हैं। उन्हें लगता है कि चीन-पाकिस्तान संबंध चीन-भारत संबंधों में बाधा डालते हैं। लेकिन दूसरी नज़र से देखा जाए, तो पाकिस्तान और भारत मूल रूप से एक परिवार के सदस्य हैं। पाकिस्तान भारत का महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है, जो आतंकवाद विरोधी संघर्ष में बड़ा योगदान करता है। महात्मा गांधी ने कहा था कि "अगर हमें याद है कि सभी ज़िंदगी सिर्फ़ एक बार होती है, तो दूसरों को दुश्मनी के साथ देखने का कोई कारण नहीं होता।" पिछले साल भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाक प्रधानमंत्री मोहम्मद नवाज़ शरीफ़ ने लाहौर में मुलाकात की थी। हाल ही में भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों ने नई दिल्ली में वार्ता की। इन सबका सक्रिय महत्व है। अगर चीन, भारत और पाकिस्तान के बीच त्रिपक्षीय संबंधों का सतत और स्वास्थ्य विकास होता, तो क्षेत्रीय शांति और समृद्धि सुनिश्चित होगी।

    ल्यू चिनसोंग ने कहा कि भारत और चीन दोनों की बड़ी जनसंख्या और लम्बा इतिहास है। लोकतंत्र और मानवाधिकार पर हमारे दोनों के अपने अपने समझदारी, अनुभव और मापदंड मौजूद हैं। पश्चिमी देशों के मोड़ और विचार हमारी वस्तुगत स्थिति के अनुरूप नहीं हैं। भारत की अपनी विशेषता वाली राजनीतिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक प्रणाली है, जबकि चीन की भी अपनी विशेषता वाली समाजवादी राजनीति है। जातीय क्षेत्रीय स्वाशासन की व्यवस्था चीन की रचना है। तिब्बत चीन का एक स्वायत्त प्रदेश है, तिब्बती लोगों का स्वाशासन, लोगतंत्र और मानवाधिकार पाने का अधिकार है।

    हाल ही में चीन की केन्द्रीय और क्षेत्रीय सरकार के नेताओं ने कई बार भारत की यात्रा की। इस महत्वपूर्ण दौरे पर उन्होंने मुख्यतः भारतीय मित्रों के साथ आर्थिक सहयोग, शासन अनुभव, कर सुधार, शहरीकरण, स्मार्ट सीटी, बिग डाटा, कृत्रिम बारिश और चीनी विशेषता वाले समाजवाद के मुद्दों पर विचार-विमर्श किया। चीन और भारत की राष्ट्रीय स्थिति मिलती जुलती है। विकास के क्षेत्र में हम एक दूसरे से सीख सकते हैं। हमारे बीच सहयोग की विशाल संभावना मौजूद है। हमें विकास को प्राथमिकता देना चाहिए और "एशियाई सदी", "चीनी सपना" और "भारतीय सपना" की स्थिति में द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देना चाहिए।

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