Web  hindi.cri.cn
    आतंकवाद और औरत-पहला भाग
    2016-06-12 19:33:20 cri

    औरत और आतंकवाद का क्या रिश्ता है? कोई रिश्ता है भी या नहीं? क्या आतंकवाद केवल एक राजनीतिक स्थिति है, बस एक अस्थिर राजनीतिक हालात? इसका जवाब खोजने से पहले एक और सवाल है कि औरत है क्या? जवाब है कि औरत वो धुरी है जिसके ही चारों तरफ एक सभ्य समाज घूमता है। वो जहां जम जाती है, कोई दीवार हो या ना हो, वहां घर बन जाता है, परिवार बस जाता है। उसके चूल्हा जलाते ही मर्द और बच्चों के लिए कुदरती भूख का मसला खत्म हो जाता है। उनपर खुशहाली और संतोष छा जाता है। औरत वो पहिया है जिसके सही रहने से परिवार और समाज खुशहाल रहता है और जिसके टूट जाने से बदहाली की शुरूआत होती है। औरत अपने पुरुष और बच्चों को समेट परिवार अगोरती है और इससे समाज का गठन करती है।

    दूसरी तरफ आतंकवाद का असली निशाना, उसका पूरा लक्ष्य और ध्येय ही परिवार को बर्बाद करके समाज को तहसनहस कर देने का होता है। आतंकवाद का हर हमला, औरत के बसाए परिवार को उजाड़ देता है। ये जंग दरअसल औरत और आतंकवाद के बीच है। एक जो बसाती है, दूसरा जो उजाड़ता है। औरत की मुसीबत है कि वो केवल बसाना ही जानती है, यही उसका चरित्र है। वो सहेजना जानती है, और इसमें उसका सबसे बड़ा हथियार है उसकी उम्मीद।

    सीरिया और इराक में आइएस के कब्जे से बच भागी महिलाओं और लड़कियों की आपबीती करीब-करीब एक सी है। उनके साथ क्रूरता की सारी हदें पार करता बर्ताव हुआ। युवतियां और छोटी बच्चियां, महीनों रोजाना दर्दनाक, जानलेवा बलात्कार और हिंसा का शिकार हुईं। महीनों तक जानवरों जैसा जीवन जीने को मजबूर 19 साल की एक यजीदी लड़की ने बताया कि वो दिन भर भूखे रहती और जब एक साथ दस-दस 'जेहादी' उसपर टूट पड़ते तब वो हर क्षण ईश्वर से यही पूछती थी कि इसमें उसका क्या कसूर है? उसने ऐसा जीवन जिया कि उसे जिंदगी से ज्यादा भली मौत लगने लगी। ऐसी कई मांए हैं, जो अपने साथ अमानवीय बर्ताव केवल इसलिए होने देंती, कि उनके बच्चे बचे रहें। जख्मी होने के बाद भी वो जानलेवा हिंसा झेलती कि उन्हें अपने बच्चों के बेतहरी की फिक्र थी, उम्मीद थी। ये उम्मीद अगर औरत की सबसे बड़ी ताकत है, और यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी।

    आतंकवाद, औरत की इसी कमजोरी का शिकार करता है। आतंकवाद सुनते ही क्लाश्निकोव गन थामे एक नकाबपोश चेहरा आंखों के सामने घूम जाता है, जिसकी आँखों में नफ़रत, बेरहमी बसी हुई है। लेकिन गोलीबारी अब आतंकवाद का पुराना चेहरा हो चुका है। इसके नए संस्करण में विस्फोटक, धमाके और सब तरह के हथियारों के अलावा जो सबसे नयी चीज है, वो है क्रूरता और बर्बरता... उसमें भी खास निशाना महिलाएं और बच्चे हैं।

    आतंकवाद और स्त्रीसंहार ग्यानोसाइड ऐसे विचार हैं, जिसका इस्तेमाल तब किया जाता है, जब राजनितिक हिंसा का निशाना केवल औरते हों। यह शब्द आतंकवाद के सन्दर्भ में केवल औरतों की "टारगेट किलिंग" या दुर्दशा के लिए प्रयोग किया जाता है। गृह युद्ध हो या विश्व युद्ध जितने भी नर संहार हुए हैं, उनमें औरतों के साथ जो हुआ है वो केवल वीभत्स आकंड़े हैं। 1971 में बंगलादेश में 20 हजार हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार हुए थे, 1975-1999 के मध्य ईस्ट तिमोर में यह संख्या 2 लाख है। कम्बोडिया में 1975-1979 के दौरान, गॉटेमाला में 1981-83 के बीच और बोस्निया 1992-1995 के बीच हुई बर्बता की शिकार महिलाओं की संख्याएँ भी करीब इतनी ही हैं। मगर 1994 के दौरान अकेले रवांडा में 2,50,000 से 5,00,000 औरतें यौनहिंसा का शिकार हुईं। उत्तरी नाइजीरिया में भी यौन हिंसा की शिकार औरतों की संख्या हजारों में हैं, जिनकी अभी भी कोई खबर नहीं हैं।

    कश्मीर की जुना बेगम के दर्द में ऐसी हजारों पीड़ित महिला की कथा छिपी है। जुना का परिवार पेशे से कुम्हार है, कुछ साल पहले वो अपने पंचायत की पंच चुनी गईं। पर यह पद ही उसकी जिंदगी पर पहाड़ बनकर टूट पड़ा। एक रात टार्च की तेज रोशनी उसकी आंखों पर पड़ी और एक अनजान आवाज ने उनसे केवल यही पूछा कि आप ही जुना हो? जुना का हां कहना था कि उनपर अंधाधुंध गोलियां बरस पड़ी। जुना बेगम ने मौत को तो परास्त कर दिया, लेकिन अपनी एक आंख और मानसिक संतुलन की कीमत पर। रोजगार और परिवार का नुकसान तो हुआ ही।

    किसी भी मजहब में औरतों पर जुल्म को सही नहीं ठहराया गया है लेकिन हर बार महिलाएं ऐसी घटनाओं की शिकार होती रही हैं। कई महिलाएं ऐसी भी हैं जिनके पति लंबे समय से लापता हैं लेकिन उनकी तलाश नहीं हो पा रही है। आंतकवाद के शिकार हुए पुरुषों की विधवाएं हर पल पीड़ा भोगती रही हैं। कश्मीर घाटी में ऐसी विधवाओं की संख्या तीस हजार के करीब है। ये महिलाएं आतंकवाद का प्रत्यक्ष शिकार हैं, तो कुछ इसकी परोक्ष भुक्तभोगी भी हैं।

    30 अक्टूबर, 2008 को असम में हुए सीरियल ब्लास्ट में अतेन तिमंग नाम का एक दिहाड़ी मजदूर भी बुरी तरह जख्मी हो गया। धमाके में बुरी तरह अपंग हुए लाचार तिमंग को अपने बच्चे समेत पत्नी पिंकी को छोड़ना पड़ा क्योंकि वो परिवार पालने में असमर्थ थे। अतेन से अपने तलाक के बाद पिंकी अपना जीवन चलाने के लिए काम की तलाश में जुटी तो उसके जान पहचान लोगों ने ही उसकी मजबूरी का नाजायज फायदा उठाया। एक परिचित महिला ने 10,000 रुपये की मदद के बदले, उसे वेश्यावृत्ति के दलदल में ढकेल दिया। तीन साल के बाद एक दिन पुलिस ने पिंकी को वेश्यावृति के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया। पुर्नवास के बाद उसे उसकी मां के पास भेज दिया गया।

    ये केवल एक बानगी है। ऐसी हजारों महिलाएं आतंकवाद के अप्रत्यक्ष शिकार हैं। जिनमें से हजारों को पिंकी की तरह ही वेश्यावृत्ति जैसे कामों के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। आतंकवाद सीधे तौर पर महिलाओं के लिए विकास और आजादी की सबसे गंभीर चुनौती बन गया है। कट्टरपंथ तो महिलाओं के लिए रोजाना नई आचार संहिता गढ़ रहा है। व्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध ये एक खतरनाक परिस्थिति है। किसी भी देश में हुए आतंकी हमले से जो खौफ और दहशत का माहौल बनता है, उसका सबसे बुरा असर, हमले के शिकार परिवारों पर छाया खौफ और असुरक्षा की भावना है।

    इस लेख की लेखिका हैं स्वधा शर्मा, जो ऑल इंडिया रेडियो में कार्यरत हैं।

    © China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
    16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040