27 मई को ग्यारहवें पंचन लामा अपना ल्हासा दौरा समाप्त कर शिकाज़े शहर वापस पहुंचे । शिकाज़े में तिब्बती अनुयायियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया ।
मई महीने में तिब्बत का मौसम खुशगवार रहा । 27 मई को पंचन लामा ल्हासा में अपनी सभी धार्मिक गतिविधियां समाप्त कर अपने तीर्थस्थान--- शिकाज़े स्थित जाशिलून्पो मठ वापस आए । बारह बजे पंचन लामा की ट्रेन शिकाज़े स्टेशन पहुंची। तिब्बती अनुयायी और श्रद्धालु उनके स्वागत में ट्रेन स्टेशन पहुंचे थे । स्टेशन से जाशिलून्पो मठ तक के मार्ग में हजारों लोगों ने पंचन का सत्कार किया।
जाशिलून्पो मठ तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े शहर में स्थित है। 15वीं शताब्दी में तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के गुरू चोंगखापा के शिष्य गेन्डुन ज़ुबा यानी पहले दलाई लामा ने इस मठ का निर्माण करवाया। तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के सुप्रसिद्ध मठ के रूप में जाशिलून्पो मठ चौथे पंचन लामा और उन के परवर्ती पंचन लामाओं का निवास स्थान बन गया।
27 मई को जब पंचल लामा जाशिलून्पो मठ के गेट पर पहुंचे तब मंदिर के लामाओं ने रंग-बिरंगे झंडे लहराते हुए पंचन लामा का स्वागत किया । गेट के सामने विभिन्न क्षेत्रों के अनुयायियों और श्रद्धालु पंचन की पूजा करने के लिए लम्बी कतार में खड़े हुए नज़र आये । शिकाज़े की गांगबा काउंटी से आयी 75 वर्षीय बुजुर्ग महिला केल्सांग ने कहा,"मैं पंचन लामा की पूजा करने के लिए गांगबा काउंटी से आयी हूं । मैं 75 साल की हूं । मैं हमेशा जीवित बुद्ध की पूजा करने की प्रार्थना करती हूं ।"
पंचन लामा ने मंदिर के सामने खड़े लोगों को मुबारकबाद दी । शिकाज़े शहर के सांगजू कस्बे से आयी त्सांग ज्वेइ ने हाथ जोड़कर पूजा करते हुए कहा,"आज बड़े सौभाग्य से पंचन लामा से मिलने का मौका आया है । शुभ कामनाएं और बहुत आभारी हूं ।"
आजकल बहुत से लोग देश के भीतरी इलाकों से घूमने तिब्बत आते हैं । वे तिब्बत के भव्य मंदिरों और विशेषता वाली संस्कृति से प्रभावित होते हैं । पर तिब्बत में पंचन लामा से मिलने की जैसी खुशी नहीं मिलती। पेइचिंग से आये मिस्टर वू ने बताया, "मुझे पंचन लामा से मिलने का मौका मिला, ट्रेन स्टेशन में मैंने फोटो खींची , यह बड़े सौभाग्य की बात है ।"
जाशिलून्पो मठ एक विशाल मंदिर है । मंदिर में अलग-अलग भवन बने हैं । पंचन लामा ने मठ के प्रमुख भवन में बुद्ध और तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के संस्थापक चोंखापा की प्रतिमाओं के सामने प्रार्थना पत्र समर्पित किया । पंचन लामा भवन में दूसरे साधुओं के साथ धर्मग्रंथ सुनाने के बाद अपने निवास भवन वापस गये ।
उसी दिन दोपहर बाद शिकाज़े के आसमान में सूरज़ की रोशनी देखने लायक थी । पंचन लामा ने जाशिलून्पो मठ की प्रबंधन कमेटी के सदस्यों और साधुओं के साथ भेंट की । पंचन लामा के नेतृत्व में साधुओं ने साथ साथ धर्मग्रंथ सुनाया । जाशिलून्पो मठ के साधु जूंगडा ने कहा,"धर्मग्रंथ के संदर्भ में पंचन लामा बहुत शिक्षित हैं । उन्होंने बौद्ध धर्म के सभी ग्रंथों का अध्ययन समाप्त किया है । इतिहास और संस्कृति के अलावा पंचन लामा चीनी भाषा और अंग्रेज़ी बोलने में भी निपुण हैं ।"
तिब्बती पंचांग के अनुसार प्रति वर्ष के चौथे महीने में बौद्ध अनुयायी बुद्ध के जन्म दिन, उपदेश और निर्वाण की स्मृति में भिन्न भिन्न गतिविधियों में भाग लेते हैं । 19 मई को ल्हासा शहर के मंदिर जूखां मंदिर में साधुओं ने पंचन लामा के साथ धार्मिक गतिविधि में शामिल होने का गौरव पाया । साधुओं के ग्रंथ सुनाने की आवाज में पंचन लामा ने जूखां मंदिर के अलग अलग भवनों में धर्मक्रिया समाप्त की । धार्मिक गतिविधियां समाप्त करने के बाद पंचन लामा ने साधुओं के साथ विश्व शांति, जन क्लायण और देश की समृद्धि के लिए पूजा की ।
21 और 22 मई को पंचन ने मंदिर में पचास हजार अनुयायियों को आशीर्वाद दिया । तिब्बत के विभिन्न क्षेत्रों से आये अनुयायियों ने पंचन लामा का गर्मजोशी से स्वागत किया और प्रेम की भावना व्यक्त की ।
( हूमिन )