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    20160531 चीन-भारत आवाज़
    2016-05-31 19:19:46 cri

    चीन-भारत व्यापार और निवेश संगोष्ठी क्वांगचो में

    चीनी व्यापार संर्वद्धन संघ, क्वांगचो की प्रांतीय सरकार और चीन स्थित भारतीय दूतावास ने 25 मई को सुबह दक्षिण चीन के क्वांगचो शहर में संयुक्त रूप से चीन-भारत व्यापार और निवेश संगोष्ठी आयोजित की। भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, क्वांगचो के गवर्नर च्वू श्याओडान, चीनी व्यापार संर्वद्धन संघ के निदेशक च्यांग जेंगवेई ने संगोष्ठी में भाषण दिए।

    मुखर्जी ने कहा कि उन्हें बहुत खुशी है कि क्वांगचो से उनकी चीन यात्रा शुरू हुई। विश्वास है कि इस यात्रा का भारत और चीन के बीच परंपरागत संपर्क मजबूत करने और विकास के नए संबंध स्थापित करने में गहरा महत्व होगा। भारत औद्योगिक गलियारे, औद्योगिक पार्क, बुनियादी संस्थापनों के निर्माण और अन्य मुख्य परियोजनाओं में हिस्सा लेने के लिए चीनी निवेशकों और उद्यमियों का स्वागत करता है। आशा है कि दोनों देशों के बीच व्यापार का विकास होगा।

    क्वांगचो के गवर्नर च्वू श्याओडान ने क्वांगचो सरकार की ओर से मुखर्जी और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि चीन और भारत के बीच सहयोग साझेदारी घनिष्ठ होती जा रही है। "एक पट्टी एक मार्ग" से जुड़ी परियोजनाओं का निर्माण भी आगे चलते रहा है। इसके चलते क्वांगचो और भारत को व्यापारिक सहयोग बढ़ाने का अच्छा मौका है। आशा है कि मुखर्जी की यात्रा से चीन और भारत के बीच सहयोग नए स्तर पर पहुंचेगा।

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    मुखर्जी ने चीन में दिया भाषण

    क्वांगचो में चीन-भारत व्यापार और निवेश संगोष्ठी में भाग लेने के बाद भारतीय राष्ट्रपति प्रणब कुमार मुखर्जी ने 26 मई की सुबह चीन के सबसे मशहूर विश्वविद्यालय पेइचिंग विश्वविद्यालय का दौरा किया और भाषण भी दिया। चीनी शिक्षा मंत्री य्वान क्वेईरन, पेइचिंग विश्वविद्यालय के प्रमुख लिन च्येनह्वा और सैंकड़ों चीनी-भारतीय अध्यापकों और छात्रों ने भाषण सुना। मुखर्जी ने भाषण में जोर दिया कि भारत और चीन को गैरसरकारी आवाजाही और सहयोग मजबूत करना चाहिए।

    26 मई को सुबह 11 बजे मुखर्जी पेइचिंग विश्वविद्यालय पहुंचे। पेइचिंग विश्वविद्यालय के प्रमुख लिन च्येनह्वा ने स्वागत करते हुए कहा कि पेइचिंग विश्वविद्यालय हमेशा से चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने में जुटा है और भारत के उच्च शिक्षा जगत के साथ सहयोग करने पर ध्यान देता है। लिन च्येनह्वा ने कहाः

    "इस साल पेइचिंग विश्वविद्यालय के पूर्वी साहित्य विभाग की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ है। पिछले 70 वर्षों में ची श्येनलिन और चिन खमू समेत व्यापक मशहूर विद्वानों ने भारत विद्या, बौद्ध धर्म, चीन-भारत सांस्कृतिक आवाजाही इतिहास और भारतीय भाषा व साहित्य आदि के क्षेत्रों में अध्ययन किया और व्यापक उपलब्धियां हासिल कीं, जिससे चीन, यहां तक कि पूरी दुनिया में भारतीय लोगों के बारे में समझदारी बढ़ाई गई।"

    लिन च्येनह्वा के स्वागत संदेश के बाद मुखर्जी ने "भारत-चीन संबंधः गैरसरकारी सहयोग को मजबूत बनाने के 8 कदम" शीर्षक भाषण दिया। उन्होंने कहा कि भारत और चीन लम्बे समय से पहले ही विस्तृत सांस्कृतिक संपर्क बरकरार रखे हुए हैं। दोनों देशों ने इस महान धरोहरों का उत्तराधिकार किया।

    "भारत के कुमारजीव और बोधिधर्म के महत्वपूर्ण योगदान और चीन के ह्वानसांग और फ़ा श्यान के अभिलेख और अनुभव के बिना, हमारे दोनों देशों के बीच आम इतिहास अकल्पनीय है। लेकिन खुशी है कि उनके महान धरोहरों का अभिवादन करने के चलते हम संतोषजनक द्विपक्षीय गैरसरकारी संबंध बहाल करने में कोशिश कर रहे हैं।"

    मुखर्जी ने कहा कि दुनिया में दो नवोदित आर्थिक शक्ति होने के नाते भारत और चीन को क्षेत्र और विश्व की समृद्धि में योगदान करने का कर्तव्य है। हमारे दोनों देशों को हाथ मिलाकर सहयोग करने के साथ साथ पुनरुत्थान साकार करना चाहिए, ताकि एशियाई सदी की रचना हो सके। मुखर्जी ने उपस्थित प्रतिनिधियों के साथ अपनी कल्पना साझा की। उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच सरकार के स्तर पर आवाजाही अपरिहार्य है। उन्होंने कहाः

    "राजनीतिक स्तर पर समझ दोनों देशों के बीच और घनिष्ठ साझेदारी बढ़ाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। राजनीतिक समझ राजनीतिक संपर्क मजबूत करना चाहिए। भारत की बहुत सी पार्टियां चीन के साथ सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुई हैं। दोनों देशों के नेताओं के बीच बराबर संपर्क और यात्रा भी इसका सबूत है।"

    अंत में मुखर्जी ने कहा कि इधर के वर्षों में दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय आवाजाही से द्विपक्षीय संबंधों का बड़ा विकास हुआ है और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार किया गया है। उन्होंने कहाः

    "चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। विकास में दोनों देशों का अनुभव मिलता जुलता है। हमने बुनियादी संस्थापनों के निर्माण, दूर संचार, ऊर्जा, विज्ञान, चिकित्सा, शिक्षा और शहरीकरण आदि के क्षेत्रों में प्रगति की, जो हमारे बीच आदान-प्रदान और सहयोग का मजबूत आधार है।"

    लेकिन मुखर्जी ने कहा कि भारत-चीन संबंध उन्नत करने के लिए सरकारों के बीच संपर्क काफी नहीं है, जनता के बीच आवाजाही और सहयोग भी मजबूत किया जाना चाहिए। इसलिए उन्होंने कई सुझाव पेश किए।

    "भारत और चीन की जनसंख्या दुनिया की कुल आबादी की एक तिहाई है। इसके बावजूद जनता के बीच संपर्क बहुत सीमित है। हमें सरकारों के बीच आवाजाही को क्षेत्रों तक विस्तृत करना चाहिए। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन की यात्रा की। दोनों पक्षों ने क्षेत्रीय सहयोग व्यवस्था स्थापित की। यह एक बहुत अच्छी शुरुआत है। अब दोनों देश क्षेत्रीय संगठनों के बीच आदान-प्रदान और सहयोग बढ़ाने में प्रयास कर रहे हैं।"

    मुखर्जी ने यह भी कहा कि भारत और चीन को युवाओं के बीच आवाजाही, आर्थिक और व्यापारिक आदान-प्रदान, पर्यटन और महत्वपूर्ण क्षेत्रीय और अन्तरराष्ट्रीय मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए। इसके साथ साथ दोनों को परंपरागत संस्कृति और वैज्ञानिक आदान-प्रदान का पुनरुत्थान भी करना चाहिए। उन्होंने कहाः

    "भारत का योग, चीन का थाईची और दोनों देशों की परंपरागत चिकित्सा शास्त्र हमारे सांस्कृतिक विरासतों का एक भाग है। उच्च शैक्षिक संस्थानों के बीच आदान-प्रदान मजबूत करने, सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन करने, सहयोग अनुसंधान करने और स्कॉलर्शिप देने से लोगों की समझदारी बदलेगी। भविष्य में लोग कभी नहीं सोचेंगे कि सिर्फ पश्चिमी देशों से विज्ञान और तकनीक सीख सकते हैं, बल्कि भारत और चीन एक दूसरे से सीख सकते हैं।"

    पेइचिंग विश्वविद्यालय में चीनी इतिहास का अध्ययन कर रहे भारतीय छात्र विकास कुमार सिंह ने मुखर्जी का भाषण सुनने के बाद आशा जताई कि मुखर्जी की चीन यात्रा के दौरान दोनों देश सांस्कृतिक आदान-प्रदान और शिक्षा में सहयोग मजबूत करेंगे।

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