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    शरणार्थी शिविर में फ्रीडम थिएटर
    2016-05-03 17:58:05 cri

    जोर्डन नदी के पश्चिमी तट पर स्थित चेनिंग शहर के शरणार्थी शिविर में एक खास थिएटर है। 2006 में इजराइल के मशहूर अभिनेता, निर्देशक और सामाजिक कार्यकर्ता चुलिआनो मेर खामिस ने इसकी स्थापना की। फ्रीडम नामक इस थिएटर ने पिछले 10 सालों में इजराइल के कब्जे में फिलिस्तीनी युवक पीढ़ी की निराशा और कब्जे का विरोध करने की आशा का प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा, चेनिन फ्रीडम थिएटर के एक हॉल में 9 से 14 की उम्र वाले कुछ फिलिस्तीनी बच्चे अपने द्वारा अभिनीत एक ऑपेरा का प्रदर्शन कर रहे हैं। 12 साल का मोहम्मद लाहलोह इस ऑपेरा का संपादक है। कहानी में फिलिस्तीनी जनता के दैनिक जीवन के बारे में बताया गया है। यहां के लोग रोज मुठभेड़, हमला और मौत से सहते हैं। इजराइली सैनिक फिलिस्तीनियों को मार रहे हैं। फिलिस्तीन में इसी तरह की कहानी रोज होती हैं।

    फ्रीडम थिएटर का पुराना नाम था पत्थर थिएटर, जिसे इजराइली मानवाधिकार कार्यकर्ता एना खामिस द्वारा स्थापित किया गया। वे आशा करती थी कि कला शिक्षा से प्रथम फिलिस्तीनी विद्रोह में क्षति पहुंचाने वाले फिलिस्तीनी बच्चों का उपचार किया जा सके। लेकिन यह थिएटर 2002 के चेनिन युद्ध में इजराइली रक्षा सेना द्वारा नष्ट हो गया। एना खामिस के कुछ छात्र भी युद्ध में मारे गये।

    कई सालों के बाद एना खामिस के बेटे चुलिआनो मेर खामिस ने नयी पीढ़ी के फिलिस्तीनी युवकों के लिए एक थिएटर का निर्माण करने की योजना बनायी। 2006 में चेनिन शरणार्थी शिविर के छोटे मकानों में फ्रीडम थिएटर की स्थापना की गयी।

    लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि 2011 के 4 अप्रैल को चुलिआनो मेर खामिस फ्रीडम थिएटर के आसपास एक गोलीबारी में मारा गया। अभी तक हमलावर का पता नहीं चला है। खामिस के मरने के एक साल में इजराइली सेना ने फ्रीडम थिएटर की मौत की जांच करने के बहाने से थिएटर के करीब आधे कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया।

    हालांकि परिवर्तन एक ही दिन में नहीं हो सकता, फिर भी फ्रीडम थिएटर के कलाकार मेहनत से अपनी कलाकृतियों से शरणार्थी शिविर में रहने वाले लोगों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। फ्रीडम थिएटर के अभिनेता अला शहादा ने बताया कि हम एक दिन में लोगों के विचारों को नहीं बदल कर सकते हैं। एक कलाकार होने के नाते हमें लोगों को एक सही व पूरा समाज दिखाना चाहिए, ताकि लोग हमारे नाटक देखकर सोचने लगेंगे। तो हम आशा देख सकेंगे और परिवर्तन भी हो सकेगा।

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