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    160328 आर्थिक विकास और सांस्कृतिक संरक्षण दोनों पर जोर
    2016-03-28 19:18:25 cri

    आर्थिक विकास और सांस्कृतिक संरक्षण दोनों पर जोर दिया जाए

    चीन एक बहु जातीय देश है। हर एक जाति की अपनी विशेष संस्कृति और रीति रिवाज़ होते हैं। लेकिन आर्थिक भूमंडलीकरण और शहरीकरण के तेज विकास से कुछ अल्पसंख्यक जातियों की संस्कृति और रीति रिवाज़ धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं। इन दिनों पेइचिंग में आयोजित चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की 12वीं राष्ट्रीय समिति के चौथे सम्मेलन में भाग ले रहे सीपीपीसीसी के सदस्यों ने अल्पसंख्यक जातीय संस्कृति के विकास पर बड़ा ध्यान दिया। उनके विचार में अल्पसंख्यक जातियों की संस्कृति पहले शानदार थी, आर्थिक सामाजिक विकास की वजह से ये यूं ही लुप्त न हों। इन्हें बचाने के लिए उन्हें कुछ न कुछ करना होगा।

    तेंगर इन्टरव्यू देते हुए  

    चीन में सुप्रसिद्ध गायक, मंगोलियाई जाति के सीपीपीसीसी सदस्य तेंगर भीतरी मंगोलिया के घास के मैदान के रहने वाले हैं। पेइचिंग में कई साल काम करने और जीवन बिताने के बावजूद वह अपनी जन्मभूमि के विकास और परिवर्तन पर बड़ा ध्यान देते हैं। तेंगर की नज़र में जन्मस्थान का आर्थिक विकास हुआ है और समाज प्रगतिशील हो गया है। लेकिन पूर्वजों द्वारा छोड़े गए जातीय रीति रिवाज़ में भी परिवर्तन आया है। उन्होंने कहा:" मंगोलिया में घास के मैदानों में बने विशेष आकृति के युर्ट का उदाहरण लें, सामाजिक विकास के चलते भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश में कई जगहों, खासकर पर्यटन क्षेत्रों में युर्ट सीमेंट से बनाये जाने लगे हैं। कभी कभार मैं दोस्तों के साथ वहां यात्रा पर गया। दोस्तों ने मुझ से पूछा कि क्या यह सचमुच मंगोलियाई युर्ट है?इसका जवाब मैं नहीं दे सकता। मैं भी मन में सोच रहा था कि क्या यह सचमुच मंगोलियाई युर्ट है?इसके अंदर आधुनिक होटल की जैसी सुविधाएं हैं। टीवी, एसी जैसे इलेक्ट्रोनिक उपकरण उपलब्ध हैं। शौचालय है और नहाने की जगह भी है। लेकिन असली मंगोलियाई युर्ट के निर्माण के दौरान एक भी ईंट और कील या पेंच का प्रयोग नहीं किया जाता। इस तरह जातीय दृष्टि से देखा जाए, तो यह वास्तविक मंगोलियाई युर्ट नहीं है। लगता है कि जातीय रीति रिवाज़ धीरे-धीरे समाज के विकास के चलते लुप्त हो रहे हैं। यह खेद की बात है।"

    इस वर्ष चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की 12वीं राष्ट्रीय समिति के चौथे सम्मेलन के दौरान सीपीपीसीसी के सदस्य के रूप में तेंगर ने सम्मेलन के सामने भीतरी मंगोलिया के पशुपालन क्षेत्र में सांस्कृतिक संरक्षण और जातीय संस्कृति को विरासत के रूप में लेते हुए आगे विकास से जुड़ा प्रस्ताव पेश किया। उनके विचार में संस्कृति और रीति रिवाज़ एक जाति का प्रतीक हैं। यह किसी हद तक एक जाति की जड़ भी मानी जा सकती हैं। तेंगर ने कहा:"एक बार मैं कुछ मित्रों के साथ शराब पीने बार में गया। मित्रों में एक हान जाति का है। मेरे सम्मान में उसने मुझे शराब पिलवायी। उसने मुझ से कहा कि मैं तुम्हारे लिए एक मंगोलियाई गीत गाऊंगा। मैं बहुत खुश हुआ और मैंने उससे कहा कि गाओ। लेकिन उसने इस तरह गाया कि।......इसे सुनते हुए मुझे बहुत हैरानी हुई। हमारा जातीय गीत इस प्रकार कैसे हो गया है?संगीतकार और गायक के रूप में मुझे बेहद दुख हुआ। अगर स्थिति ऐसी आगे बढ़ेगी, तो शायद एक दिन हान जाति के लोग इस प्रकार के मंगोलियाई गीत गाएंगे, तों मैं अपनी जाति का कोई गीत नहीं गाऊंगा।"

    तेंगर की नज़र में एक जाति की संस्कृति और रीति रिवाज़ के संरक्षण और विकास की कड़ी बच्चों पर आधारित है। लेकिन अनुसंधान में पता चला है कि आजकल के बच्चे पहले के बच्चों से बिल्कुल अलग हैं। तेंगर ने कहा:"पहले, बचपन में हमारे यहां पशुपालन क्षेत्र में व्यस्त सीज़न में स्कूलों में बच्चों को छुट्टियां मिलती थीं। हम घर वापस लौटकर भेड़ों का ऊन निकालते थे। यह हमारी जाति की एक परम्परा है। लेकिन आज, बच्चे साल भर शहरों में रहते हैं। स्थिति कैसी हो गई?असली चरवाहे को भी स्पष्ट तौर पर बकरी के बच्चा या भेड़ के बच्चे में फर्क पता नहीं होता है।"

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