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    चीनी अल्पसंख्यक जातियों में से एक तुंग जाति के कस्बे का दौरा
    2016-01-04 14:54:24 cri

    दोस्तो, आप जानते ही हैं कि चीन की कुल 56 जातियों में हान जाति के अलावा अन्य 55 अल्पसंख्यक जातियां हैं। इनमें से अधिकतर चीन के सीमावर्ती क्षेत्रों में बसी हुई हैं। चाओ शिंग कस्बा क्वेचाओ प्रांत में बसी अल्पसंख्यक तुंग जाति बहुल क्षेत्रों में से एक माना जाता है । दूर से देखा जाये , तो सीढीनुमा लहलहाते खेत सुव्यवस्थित रूप से ढलानों पर दिखाई देते हैं और कतारों में खड़ी झूलती इमारतें धुंधले कोहरे के बीच से झांकती हुई दिखाई पड़ती हैं ।

    जब हम चाओ शिंग कस्बे के छोर पर पहुंचे , तो हमारी अगवानी में शानदार तुंग जातीय पोषाकों में सजे-धजे युवक व युवतियां खड़े हुए दिखाई दिए । युवक बड़े मजे़ से बांसुरी बजाते हुए नाच रहे थे , जब कि सुंदर युवतियां बड़ी विनम्रता से हमारे सम्मान में चावल मदिरा पेश करने के लिए आगे आयीं। तुंग जाति की परम्परा के अनुसार किसी भी मेहमान को कस्बे में प्रवेश करने पर चावल मदिरा पिलाना आवश्यक होता है । इसलिये हम ने भी उन के रीति-रिवाज़ का पालन करते हुए बेहिचक चावल मदिरा पी ।

    फिर हम ने तुंग जाति के चाओ शिंग कस्बे में प्रवेश किया । तुंग जाति की झूलती इमारतें बहुत व्यवस्थित रूप से छोटी नद-नदियों के तटों पर खड़ी हुई दिखाई पड़ीं। इन इमारतों के बीच लहलहाते खेत, तालाब, बांस के जंगल और सब्जी की क्यारियां बिखरी हुई नज़र आईं । तालाब में सफेद हंसों के झुंड क्रीड़ा कर रहे थे और नदी में कुछ महिलाएं कपड़े धो रही थीं। हरेक परिवार से पत्थर चक्की और करघा चलाये जाने और हुनर द्वारा चांदी आभूषण बनाये जाने की आवाज़ विशेष ग्रामीण वातावरण का आभास दे रही थी । सुना जाता है कि इस क्षेत्र में और चार इसी प्रकार वाले तुंग जातीय कस्बे उपलब्ध हैं ।

    हम कस्बे में बड़ी दिलचस्पी दिखाते घूम रहे थे कि अचानक केंद्रीय चौक से किसी के गाने की आवाज सुनाई पड़ी। तुंग जाति का यह कस्बा बहुत बड़ा नहीं है। आम तौर पर ऐसे कस्बे में सौ से दो सौ परिवार रहते हैं। पर हरेक कस्बे के केंद्र में चौक होना अनिवार्य है। चौक के एक ओर ढोल इमारत होती है और दूसरी ओर एक बड़ा रंगमंच। जब कस्बे में कोई महत्वपूर्ण आयोजन होता है, तो समूचे कस्बे के निवासी यहां इकट्ठे होते हैं। जी हां, यह युवकों व युवतियों के प्रेमालाप का स्थल भी है।

    ढोल इमारत तुंग जाति के कस्बे का प्रतीक भी है। तुंग जाति के कस्बों में खड़ी ऐसी पैगोडे रूपी ढोल इमारत चार, छः या आठ कोनों वाली होती हैं। उल्लेखनीय है कि इस प्रकार की बहुमंजिली लकड़ी की इमारतों के निर्माण में एक कील तक का प्रयोग नहीं किया जाता। यह तुंग जाति की विशेष भवन निर्माण शैली को जाहिर करता है। इस कस्बे के युवक लू ल्यु छंग ने ढोल इमारत की चर्चा में कहा

    हमारी तुंग जाति का सब से महत्वपूर्ण भवन ढोल इमारत ही है । हमारे इस कस्बे के सभी निवासी लू वंश के हैं । बहुत पहले यहां पर सिर्फ एक ही लू परिवार था , बाद में वंशवृद्धि के चलते पांच वंश शाखाएं हो गयी हैं । हरेक वंश शाखा के पास अपनी प्रतीकात्मक ढोल इमारत है और इस वंश शाखा के वंशज इसी ढोल इमारत के इर्द-गिर्द बस जाते हैं ।

    जब हम एक ढोल इमारत के पास पहुंचे , तो देखा कि दसेक युवतियां और युवक पांतों में खड़े होकर गायन प्रतियोगिता कर रहे थे । तुंग जाति नाचने-गाने में बड़ी निपुण है। दिन भर के परिश्रम के बाद उसके लोग अपनी थकावट दूर करने के लिए समूहगान गाते हैं या गायन प्रतियोगिता आयोजित करते हैं। तुंग जाति का संगीत बहुत मधुर व मर्मस्पर्शी होता है। पर तुंग जाति का स्वभाविक गायन तो अलग ढंग का है ।

    चंद्रमा नामक एक तुंग जातीय युवती ने हमें बताया कि तुंग जाति का स्वभाविक गायन सिर्फ महत्वपूर्ण त्यौहारों या दूर से आने वाले आदरणीय मेहमानों के सम्मान में ढोल इमारत के भीतर गाया जाता है ।

    उस ने कहा कि तुंग जाति का स्वभाविक गायन ऊंचे व नीचे दो स्वरों के दायरों से गठित है और आम तौर पर इस में पक्षियों की चहक जैसी प्राकृतिक आवाज की नकल की जाती है , इसलिये इस गायन को आकाश की आवाज़ की संज्ञा दी गयी है ।

    यह मधुर विशेष गायन सुनते-सुनते दिन ढल गया । ढोल इमारत से स्वभाविक गायन की जगह प्रतियोगिता गायन की आवाज सुनाई पड़ने लगी। हंसी मजाक और सुरीली आवाज सुन कर हम भी बहुत प्रभावित हुए ।

    ढोल इमारत के पास हम ने अनेक तुंग जातीय दस्तकारी की दुकानें देखीं। इन दुकानों में चांदी की पालियां , हार , कंकन और चित्र-विचित्र कसीदाकारी की वस्तुएं बेची जाती हैं । 50 वर्षीय दुकानदार लू शू ह्वाई ने हमें बताया कि इधर के सालों में चाओ शिंग के दौरे पर आने वाले पर्यटकों की संख्या अधिक हो गयी है। इसे ध्यान में रखकर उस ने तुंग जातीय दस्तकारी दुकान खोल ली है और काफी मुनाफा भी कमाया है । अब उस ने नया मकान बनवा लिया है , और अनेक नये घरेलु विद्युत उपकरण भी खरीद लिये हैं । उस का मानना है कि अपनी जातीय कला कृतियों को बेचने से आर्थिक लाभ ही नहीं , तुंग जातीय संस्कृति को लोकप्रिय बनाना ज़रुर लाभदायक है ।

    तुंग जाति को खट्टी चीजों से बहुत लगाव है। वे खट्टी मछली, खट्टी बत्तख, खट्टा मांस व खट्टी सब्जियां खाना पसंद करते हैं। जब भी कस्बे में कोई अहम गतिविधि आयोजित होती है, तो समूचे कस्बे के निवासी अपने यहां पकी सब से बढ़िया खट्टी मछली और खट्टे मांस आदि विभिन्न प्रकार के व्यंजन चौक पर लाकर लोगों को खिलाते हैं। इस दौरान लोग खुशी से खाना खाते हैं और मदिरा पीते हैं और समूचे गांव के निवासी देर रात तक हर्षोल्लास के साथ नाचते-गाते हैं।

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