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कूग राजवंश के सांस्कृतिक अवशेष का रक्षक---बासांग त्सीरन
2016-05-03 09:13:52 cri

चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के पश्चिम में स्थित नारी प्रिफेक्चर की च्यांगता काउंटी में सतलुज नदी के तट पर प्राचीन काल के मशहूर तिब्बती राजवंश कूग राजवंश का पुरातात्विक स्थल मौजूद है । 26 वर्षीय तिब्बती लड़का बासांग त्सीरन यहां काम करने वाले तीन कर्मचारियों में से एक है ।

हर रोज़ पौ फटते ही अपने कमरे में सोता हुआ बासांग दूर से आने वाली मोटर गाड़ियों की कर्कश आवाजों से जाग जाता है । क्योंकि सैकड़ों पर्यटक और फोटोग्रॉफर अपने-अपने कैमरों और फोटोग्राफिक उपकरणों को उठाये च्यांगता काउंटी आते हैं । वे सभी सूर्योदय की प्रथम किरण चमकते ही कूग राजवंश के पुरातात्विक स्थल की फोटो खींचने का इन्तजार करते हैं और तब से बासांग का रोजाना कार्य हर बार की भांति शुरू हो जाता है ।

कूग राजवंश का पुरातात्विक स्थल काउंटी में पहाड़ के पीछे स्थित है । पुरातात्विक स्थल के कार्यालय के तीन कर्मचारियों में से एक होने के नाते बासांग को तिब्बती विश्वविद्यालय के चित्र कला विभाग के थांगका उपाधि में उच्च अंकों से स्नातक होने के बाद इस कार्यालय में काम करने का मौका मिला । उन्होंने संवाददाता को अपने जीवन के बारे में बताया ।

   उन्होंने कहा, "विश्वविद्यालय में जब मैं श्रेष्ठ अंकों से स्नातक हुआ था , तब मुझे सरकारी नौकरी करने का अवसर था । लेकिन मुझे उम्मीद थी कि मैं जरूर नारी प्रिफेक्चर की च्यांगता काउंटी में काम करूंगा । क्योंकि मेरा उद्देश्य कूग राजवंश कापुरातात्विक स्थल ही था । बाद में मुझे आसानी से यहां काम करने का मौका मिला । च्यांगता काउंटी में पहुंचने के बाद मैंने अफसर से कूग राजवंश के पुरातात्विक स्थल के कार्यालय में काम करने का आवेदन दिया । फिर मैंने यहां काम करते हुए तीन वर्षों तक भित्तिचित्र सीखने का प्रयास किया । मेरे माता-पिता हमारी जन्मभूमि के शाननान प्रिफेक्चर में काम करते हैं । उन्हें लगता है कि मैं काउंटी की सरकार में कार्यरत हूं , पर वास्तव में मैं रोज़ यहां के मिट्टी पहाड़ और भित्तिचित्रों के साथ-साथ काम कर रहा हूं ।"

बासांग ने अभी जिसे मिट्टी पहाड़ का उल्लेख किया है , वह कूग राजवंश का पुरातात्विक स्थल ही है । इसका कुल क्षेत्रफल 7.2 लाख वर्ग मीटर है । प्राचीन काल में तिब्बती राज्य ने इस स्थल का निर्माण करवाया था और पीढ़ी दर पीढ़ी के बीसेक राजाओं ने यहां कुल सात सौ वर्षों तक शासन किया । ईस्वी 17वीं शताब्दी में इस प्राचीन राजवंश का पतन हो गया था । आज तक कूग राजवंश के पुरातात्विक स्थल में बड़ी संख्या में बुद्ध मूर्ति , भित्तिचित्र , गुफाएं आदि संरक्षित हैं । इस पुरातात्विक स्थल में आज भी असीमित कल्पनाओं और कथाओं को महसूस किया जा सकता है ।

बासांग ने कहा, " विश्वविद्यालय में जब मैं थांगका के अनुसंधान में संलग्न था , तब मुझे सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण में काफी रुचि थी । च्यांगता काउंटी में मैंने बहुत कुछ सीखा है । कूग राजवंश का पुरातात्विक स्थल ल्हासा के पोटाला भवन और जोखांग मंदिर की तुलना में बिल्कुल अलग है । ल्हासा में जो भित्तिचित्रों का ताल्लुक है , उनके सांस्कृतिक वारिस सब जीवित हैं । लेकिन यहां की स्थिति अलग है , यहां जो भित्तिचित्र मौजूद हैं , उनकी कला के वारिस जीवित नहीं है । कूग भित्तिचित्र का सिर्फ नाम ही सुरक्षित है । "

कूग राजवंश के पुरातात्विक स्थल में पाँच भवन बचे हैं । पर उनमें केवल बोधिसत्व तारा ( Bodhisattva Tara ) , सफेद भवन , लाल भवन आदि पाँच भवन पर्यटकों के लिए खुलते हैं । मिट्टी पहाड़ की चोटी पर खड़ा बृहद भवन, जहां कूग राजवंश के सदस्य रहते थे, आज भी बन्द रहता है । पहाड़ के शिखर से नीचे की तरफ देखें तो बहुत से गुफाएं बिखरी हुई नजर आती हैं , जहां भिन्न-भिन्न स्तरीय दास रहते थे ।

बासांग और उनके सहपाठी रोज पर्यटकों को इन गुफाओं और भवनों का दौरा करवाते हैं और पर्यटकों को इन भवनों में मूर्तियों और भित्तिचित्रों के पीछे की कहानियां सुनाते हैं । बासांग के विचार में कूग राजवंश के ऐतिहासिक स्थल पर तिब्बती इतिहास और दसवी शताब्दी के बाद तिब्बती वास्तु इतिहास का अभिलेख मिलता है । इसलिए इसे केवल सांस्कृतिक स्थल ही नहीं , मानव सभ्यता भी माना जाना चाहिये और इसका अच्छी तरह प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिये ।

उन्होंने कहा , "यहां गर्मियों में रोज़ सुबह नौ बजे दरवाजे खुलते हैं । अगस्त , सितंबर, और अक्तूबर तीन महीनों में जब व्यस्त समय आता है तब हर दिन कई सैकड़ो पर्यटकों का स्वागत किया जाता है । लोगों की सांसों से भित्तिचित्रों पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों को रोकने के लिए हम पर्यटकों के प्रवेश सीमित करते हैं और सांस्कृतिक अवशेषों की सुरक्षा की गारंटी के लिए हम समय-समय पर दरवाजें थपथपाते रहते हैं । पर्यटकों की सेवा में हम अकसर रात के दस बजे तक भी काम करते हैं । भित्तिचित्रों पर बुरा असर न पड़े, इसलिए यहां फोटो खींचना भी मना है , भवनों में बिजली लाइट भी जलाते और पर्यटक प्राकृतिक प्रकाश में भी सब कुछ देख पाते हैं । इसके अलावा बारिश और बर्फवारी के दिनों में पुरातात्विक स्थल बन्द रखते हैं । रात को सुरक्षा इंतजाम मजबूत के लिए हम बारी बारी से पहरा भी देते हैं । "

कूग राजवंश के पुरातात्विक स्थल के विभिन्न भवनों में प्रवेश करते समय बासांग को प्राचीन काल में वापस लौटने का एहसास होता है । बासांग अकसर प्यार और समादर की भावना से थांगका का अध्ययन करने में प्राप्त धार्मिक और सांस्कृतिक सूचनाओं का पर्यटकों को परिचय देते हैं ।

उन्होंने कहा , "भित्तिचित्रों पर जहां भी प्राकृतिक रूप से खराबी नजर आती हैं , वहां मरम्मत की जाती है । क्योंकि वे सांस्कृतिक अवशेष कार्यालय स्थापित होने से पहले ही ऐसा बना था , अब हम इनके पुराने स्वरूप का संरक्षण कर रहे हैं । कूग राजवंश के अवशेष के बौद्ध मूर्तियों की एक ही विशेषता है यानी वे सब लम्बे और पतले होते हैं , मूर्ति का आकार लम्बा और कमर से पतला होता है । यह हमारी अवशेष मूर्तियों की विशेषता है । साथ ही भवन की छत पर जो चित्र दिखाई दे रहे हैं , वे सब खनिज पदार्थों के रंग से रंगे गये हैं और भित्तिचित्रों के रंग भी बौद्धिक ग्रंथों के वर्णन के अनुसार रंगे जाने चाहिये , नहीं तो सही नहीं होता है । इसलिए चित्रकार को सर्वप्रथम साहित्यकार और सांस्कृतिक विशेषज्ञ होना चाहिए । अब बहुत से सांस्कृतिक अवशेष विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गये हैं । मेरा ख्याल है कि इसका कारण संस्कृति ही होता है । साथ ही चित्रकारों को ग्रंथ सहित बौद्धिक विचारधारा से परिचित होना ही चाहिये । मिसाल के लिए थांगका चित्र रचने के लिए बौद्धिक धर्म के श्राप तथा धार्मिक गतिविधियों के उद्धाटन रस्म आदि से भी परिचित होना चाहिए । इन सब के बिना एक सच्चा थांगका चित्रित करना असंभव होगा । और एक बात है कि कुछ लोगों का मानना है कि यह भवन बहुत पुराना है , लेकिन मैंने इन भित्तिचित्रों पर से गेलू शाखा (Gelu group) के संस्थापन के एक चित्र का पता लगाया है , इसलिए मेरा यह मानना है कि यह भवन इतना पुराना नहीं है ।"

पर्यटकों की आंखों में बासांग त्सीरन सांस्कृतिक अवेशष के विशेषज्ञ हैं । क्योंकि उनके पास हर प्रश्नों के उत्तर हैं । उनके पास मूर्तियों की विशेषताएं, समय, रंग पदार्थ आदि सबकी जानकारियां हैं । ऐसा लगता है जैसे कि उन्होंने कई सौ वर्षों पहले खुद ही इस भवन के निर्माण करवाया था । इधर के कई वर्षों में केंद्र सरकार और तिब्बती स्थानीय सरकार ने कूका राजवंश के अवशेष तथा नारी प्रिफेक्चर के दूसरे सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण में 26 करोड़ यवान की पूंजी लगाई । बासांग ने कहा कि कूग राजवंश के पुरातात्विक स्थल की मरम्मत देश की पूंजी से की जाती है , साथ ही पर्यटकों से प्राप्त होने वाली धनराशि का इस्तेमाल भवनों के जीर्णोद्धार में ही किया जाता है ।

उन्होंने कहा , " सांस्कृतिक अवशेष की बड़े पैमाने की मरम्मत देश पर निर्भर करता है । मेरा तो काम है सांस्कृतिक अवशेषों का संरक्षण करना, भित्तिचित्रों की स्थितियों को रिकॉर्ड करना और इन मूल्यवान चित्रों का अनुसंधान करना । अगर मेरा काम इनके संरक्षण में मददगार साबित होता है , तो मुझे बहुत खुशी होती है ।"

रोज़ सभी पर्यटकों को विदा करने के बाद बासांग तलहटी पर स्थित अपने छोटे कमरे में वापस आ जाते हैं । यह उनका सिर्फ छह वर्ग मीटर का एक छोटे-सा कमरा है । कमरे में एक छोटे पलंग के अलावा एक बड़ी मेज है जहां बासांग खाना भी खाते हैं और काम भी करते हैं । कमरे के कोने पर किताबों की अलमारी, एक शेल्फ और किसी अन्य से उधार मांगा एक टीवी भी रखा हुआ है । बासांग ने दीवार पर स्वयं द्वारा चित्रित थांगा रचनाएं, मशहूर गायक चाओ च्येलून का पोस्टर और किसी एक पर्यटक द्वारा उन्हें दिया एक गिटार लगा रखा हैं । बासांग का वेतन प्रति माह सिर्फ चार हजार य्वान है , पर वह अपने वेतन में से जरूरत मंद के पैसे निकालकर शेष भाग अपने माता-पिता को भेज देते हैं ।

उन्हों ने कहा , " हम सभी एकजैसे जवान हैं , मुझे भी आधुनिक जीवनशैली पसंद है । इस तरह की जगह को कौन पसंद करता हैं ? पर मुझे सांस्कृतिक धरोहर आकर्षित करते हैं, इसलिए मैं यहां रहता हूं । अवकाश के समय मैं सिर्फ किताबें पढ़ता हूं और थांगका बनाता हूं । ये सब किताबें मैंने विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के दौरान खरीदी थीं । मैं हर हफ्ते बस से काउंटी जाकर आलू और साग-सब्जी खरीदने जाता हूं और कभी कभार ज़ैनबा नाम का परंपरागत तिब्बती फल भी खरीदकर खाता हूं । मेरे कमरे में कभी कभी मोबाइल फोन का सिग्नल टूट जाता है , इसलिए मैं बाहर जाकर अपने माता-पिता और लड़की मित्र को फोन करता हूं । टीवी भी मेरा नहीं है , मैंने कार्यालय से उधार लिया है । "

तिब्बत का थांगका चित्र जानी-मानी कलात्मक रचनाएं है। थांगका चित्र रचने से उल्लेखनीय आय प्राप्त हो सकती हैं । बाजार में एक थांगका की कीमत कई हजार य्वान तक होती है । बासांग ने विश्वविद्यालय में थांगका कला को आत्मसात किया। अगर वह अपना कौशल का इस्तेमाल कर थांगका चित्रित करके बाजार में बेचे, तो यकीनन उनकी अच्छी आमदनी हो जाएगी। लेकिन बासांग ने कहा कि पैसा कमाना उनका स्वप्न नहीं है , उनका स्वप्न है सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण और अनुसंधान करने वाला बनना । पर्यटकों में कुछ सांस्कृतिक अवशेष अनुसंधानकर्ता भी शामिल हैं , जो अकसर बासांग के साथ संबंधित सवालों पर विचार-विमर्श करते हैं । उनके साथ संपर्क में बासांग को भी अपनी कमजोरी महसूस हुई है । बासांग ने कहा कि वे भविष्य में अपने अनुसंधान कार्य को गहराने का अथक प्रयास करेंगे । अपने व्यक्तिगत मामलों की चर्चा में बासांग ने कहा कि वह दो सालों के भीतर ही शादी भी कर लेंगे , लड़की भी तिब्बती है जो साग्या काउंटी में काम कर रही है ।

उन्होंने कहा, " मैं क्या करूं ? मुझे यहां का काम बहुत पसंद है , तो मैं अब वापस नहीं जा सकूंगा । मेरी लड़की मित्र मेरी स्कूलमेट थी । हम हमेशा एक साथ रहते थे । वह विश्वविद्यालय में तिब्बती भाषा पढ़ती थी , स्नातक होने के बाद वह अब साग्या काउंटी के टीवी स्टेशन में एंकर का काम कर रही है । लेकिन हम एक साल में सिर्फ एक बार ही मिल पाते हैं, क्योंकि मुझे एक साल में केवल 65 दिनों की ही छुटियां मिलती हैं, छुटियों में मैं अपनी लड़की मित्र के पास जाता हूं । हम बड़े प्यार से रहते हैं । शादी तिब्बतियों के लिए पवित्र बंधन है , और तिब्बती लोगों में तलाक लेने की बात बहुत कम होती है । मैं उसको जिन्दगी भर अपना हमसफर मानूंगा । "

बासांग हंसते हंसते अपनी कहानियां बता रहे हैं , देखने में वह कूग राजवंश के पुरातात्विक स्थल के भवन में लगाये गये थांगका में देव जैसे हैं , जो आंखें चमकाते हुए सभी पर्यटकों का स्वागत करते हैं । बासांग कूग धरोहर की रक्षा करने वाले देव की तरह ही हैं ।

    ( हूमिन )

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