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    मैं जन्मभूमि के जल संरक्षण कार्य के लिए हूं तैयार
    2015-12-04 17:13:13 cri
    30 वर्षीय श्याओ लुओका का पूरा नाम लुओका वांगत्वे है। मीडिल स्कूल पढ़ने वह तिब्बत से बाहर निकलकर भीतरी इलाके में गया। कक्षा में उससे थोड़ा बड़ा एक और सहपाठी का नाम लुओका वांगत्वे भी है। इस तरह लोग उसे श्याओ लुओका कहकर पुकारते हैं। चीनी भाषा में"श्याओ"का अर्थ"छोटा"होता है। श्याओ लुओका का नाम पुकारने का चलन अभी तक जारी है। देश के भीतरी क्षेत्र में तिब्बती मीडिल स्कूल में अपना जीवन श्याओ लुओका की याद में अभी भी ताज़ा है। उन्होंने कहा:"सौभाग्य की बात है कि वर्ष 1996 में मैंने प्राइमरी स्कूली परिक्षा पास करके भीतरी इलाके के च्यांगशी प्रांत की राजधानी नानछांग में स्थापित तिब्बती मीडिल स्कूल में दाखिला लिया। यह मेरे जिन्दगी का अहम मोड़ रहा। भीतरी इलाका तिब्बत की तुलना में प्रगतिशील है। वहां मेरी दृष्टि व सोच विशाल हुई और मेरा ज्ञान भी काफ़ी हद तक बढ़ा। एक किसान परिवार के बच्चे के रूप में पढ़ाई का खर्च माता-पिता के लिए बोझ जैसा था। लेकिन भीतरी इलाके में तिब्बती मीडिल स्कूल में पढ़ाई का खर्च निःशुल्क था। जब हम तिब्बती विद्यार्थी सर्दियों और गर्मियों की छुट्टियों में घर वापस लौटते थे, तो सफर का खर्चा भी सरकार ही देती थी। इस तरह हमारे घर में आर्थिक बोझ कम हुआ।"

    वर्ष 2000 में श्याओ लुओका ने च्यांगशी प्रांत की राजधानी नानछांग स्थित तिब्बती मीडिल स्कूल से स्नातक होकर सछ्वान जल संरक्षण व्यावसायिक और तकनीकी कॉलेज में दाखिला लिया। उन्होंने कहा कि इस कॉलेज में पढ़ाई से उन्हें बड़ी मदद मिली। श्याओ लुओका ने कहा:"सछ्वान जल संरक्षण व्यावसायिक और तकनीकी कॉलेज में एक तिब्बती कक्षा भी स्थापित हुई। लेकिन हमारे क्लास में सिर्फ़ 6 विद्यार्थी थे। इस तरह हम दूसरे हान जाति के विद्यार्थियों के साथ कक्षा लेते थे। शुरू में हम तिब्बती छात्रों के पास बुनियादी ज्ञान कमज़ोर था। दूसरे विद्यार्थियों के कदमों के साथ नहीं चल पाते थे। तो फिर हमने बहुत मेहनत की। कॉलेज में हान जाति के विद्यार्थियों से परिचित होने के अलावा, हम यी जाति, म्याओ जाति आदि जाति के छात्रों से भी परिचित हुए। उनके साथ बातचीत करने से मेरी चीनी हान भाषा बोलने और लिखने का स्तर बेहतर हुआ। उस समय हमारा कोर्स खेती योग्य भूमि में जल संरक्षण का था। कुछ बातें समझ में नहीं आने पर मैं कभी-कभार अपने दूसरे सहपाठियों के साथ विचार-विमर्श करता था। विचारों के आदान-प्रदान से मुझे जानकारी मिलती रही।"

    साढ़े तीन सालों के कॉलेज जीवन के बाद जुलाई 2003 में श्याओ लुओका ग्रेजुएट हुआ। उसके जीवन में अहम विकल्प चुनने का समय आ गया था। उस पल को याद करते हुए श्याओ लुओका ने कहा:"ग्रेजुएट हो जाने पर मेरे बड़े भाई ने मुझे उसका हाथ बंटाने के लिए व्यापार करने या परिवहन का काम करने की सलाह दी, न की जल संरक्षण से संबंधित काम करना की। लेकिन मेरा विचार था कि मैं इतने साल स्कूल में पढ़ाई की और सारा खर्च हमारे देश की सरकार ने उठाया, और अब मैं पढ़-लिख भी चुका हूं। अगर व्यापार करूंगा, तो जल संरक्षण से संबंधित जानकारी मेरे लिए सब बेकार हो जाएगी। इस तरह मैंने जल संरक्षण से जुड़े काम करने का निश्चिय किया।"

    श्याओ लुओका भीतरी इलाके से तिब्बत वापस लौटा। उनके माता-पिता पूर्वी तिब्बत के छांगतु प्रिफेक्चर में रहते हैं। वह घर से रवाना होकर एक हज़ार किलोमीटर दूर स्थित आली प्रिफेक्चर की त्साता कांउटी के जल संरक्षण ब्यूरो में कार्य करने लगा। जहां तिब्बत में जीवन स्थिति सबसे खराब मानी जाती है। उस साल श्याओ लुओका सिर्फ़ 18 वर्ष का था।

    श्याओ लुओका ने कहा कि उसे अपने विकल्प पर कभी पछतावा नहीं होता। त्साता कांउटी के जल संरक्षण ब्यूरो में काम करते हुए 12 साल हो गये हैं। श्याओ लुओका के काम को सभी सराहने लगे। वर्ष 2011 में उन्हें जल संरक्षण ब्यूरो के उप प्रधान को नियुक्त किया गया और इस वर्ष से वे ब्यूरो के प्रमुख का पद संभालने लगे। अपने कार्य की चर्चा करते हुए श्याओ लुओका ने कहा:"हमारे कार्यों में सर्वप्रथम किसान और चरवाहों के लिए सुरक्षित पेय जल सवाल का निपटारा करना है। हालांकि हमारे यहां जल संसाधन प्रचुर है, लेकिन पीने के योग्य पानी की मात्रा अपर्याप्त है। दूसरा, कृषि और पशुपालन क्षेत्र में जल सिंचाई से संबंधित संस्थापनों का निर्माण करना है। इसी दौरान खेती योग्य भूमि की सिंचाई और पशुपालन के लिए आवश्यक घास और चारे की सिंचाई पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। तीसरा, त्साता कांउटी में श्यांगछुआनहो नदी और उसकी 14 शाखाओं के लिए बाढ़-विरोधी और भूस्खलन का निपटारा करना है और चौथा, बिजली का विकास करना। जिसमें जल बिजली घर के विकास, बिजली के प्रयोग, बंटवारा और सप्लाई आदि काम शामिल है।"

    चीन में अन्य दूसरी कांउटियों से अलग त्साता कांउटी का जल संरक्षण ब्यूरो पूरी कांउटी में पानी और बिजली की सप्लाई दोनों कार्यों की जिम्मेदारी उठाता है। श्याओ लुओका कार्यों में व्यस्त हैं। इस तरह घर में अधिकांश गृहकार्य पत्नि के कंधों पर हैं। उन्होंने कहा:

    "मेरी पत्नि भीतरी इलाके में तिब्बती कक्षा में मेरी सहपाठी थी। ग्रेजुएट होने के बाद हमने एक साथ त्साता कांउटी में आने का विकल्प चुना। हम दोनों एक ही जन्मस्थान से आते हैं। हम छांगतु वासी हैं। इस तरह हमारे बीच जीवन जीने के तरीके और रीति रिवाज़ आपस में मिलते जुलते हैं। जल संरक्षण ब्यूरो में मुझे बहुत काम करना पड़ता है। आम समय में मेरे पास बच्चे और परिवार की देखभाल करना का समय बहुत कम होता है। एक ही साल में 365 दिनों में करीब 200 से अधिक दिन मैं घर के बाहर काम करता हूँ। इस तरह परिवार का बोझ मेरी पत्नि के कंधों पर है।"

    अपनी पत्नि की चर्चा करते समय श्याओ लुओका की आंखों में प्रशंसा और संतुष्टि की रोशनी नज़र आई। उन्हें लगता है कि उनकी पत्नि के पास पारंपरिक तिब्बती महिलाओं की परम्परागत सदाचार मौजूद है। दोनों के बीच गहरा सच्चा प्यार है। इसके साथ ही काम करने के दौरान वे एक दूसरे की मदद भी करते हैं।

    तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के आली प्रिफेक्चर का क्षेत्रफल 3 लाख 40 हज़ार वर्ग किलोमीटर है, जो समुद्री तल से 4500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस विशाल भूमि में कम आबादी है। ओक्सिजन कम है, मौसम ठंडा है और पानी का अभाव है। ऐसे स्थल पर जल संरक्षण कार्य करने में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। श्याओ लुओका ने परिचय देते हुए कहा कि वर्ष 2005 में त्साता कांउटी में मानव और पशु की पेयजल परियोजना शुरू हुई। पेयजल के मापदंड को उन्नत किए जाने के चलते इस परियोजना को वर्ष 2007 में सुरक्षित पेयजल परियोजना तक उन्नत किय गया। आखिरकार 2013 में पूरी कांउटी में इस परियोजना का कार्यान्वयन किया गया। श्याओ लुओका ने कहा:"पूरे त्साता कांउटी में किसानों और चरवाहों की संख्या सिर्फ़ 5 हज़ार है। लेकिन इस कांउटी का क्षेत्रफल 27.5 हज़ार वर्ग किलोमीटर है। भूमि विशाल होने के बावजूद आबादी कम है। इसके साथ ही जनसंख्या का घनत्व भी बहुत कम है। अधिकांश चरवाहे घुमंतू जीवन बिताते हैं। वे लम्बे समय तक एक ही स्थल पर नहीं ठहरते और मौसम के अनुसार इधर-उधर घूमते रहते हैं। इस तरह उनके सुरक्षित पेयजल की गारंटी के क्षेत्र में खासा मुश्किल है। इस सुरक्षित पेयजल परियोजना लागू किये जाने के दौरान हमारे पास पूंजी की कमी थी। पेयजल की सप्लाई के लिए सभी पाइप हम कर्मचारियों ने खुद लगाए। इस परियोजना का निर्माण पूरा होने के बाद स्थानीय नागरिक स्वच्छ जल पी सकते हैं। इसे देखकर हमें बहुत गर्व होता है।"

    श्याओ लुओका के मुताबिक उस समय उनके साथ भीतरी इलाके के च्यांगशी प्रांत में तिब्बती कक्षा में कुल 68 तिब्बती सहपाठी थे। उनमें से 95 प्रतिशत अब काम करने के लिए तिब्बत वापस लौट आए हैं। उस समय सछ्वान प्रांत के जल संरक्षण व्यवसायिक और तकनीकी कॉलेज में साथ-साथ पढ़ रहे सभी 6 तिब्बती सहपाठी भी तिब्बत वापस लौट आये हैं। तिब्बत में कार्य स्थिति भीतरी इलाके के दूसरे स्थलों की तुलना में ज्यादा अच्छी नहीं है। तिब्बत में ही विभिन्न क्षेत्रों के बीच फर्क भी मौजूद है। लेकिन श्याओ लुओका दूसरे सहपाठियों के बराबर अपने जन्मस्थान का निर्माण करने और देश में अपना योगदान करने को तैयार है।

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