ल्हाग्यारी भवन प्राचीन काल में ल्हाग्यारी लामा द्वारा इस क्षेत्र का शासन करने तथा धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख स्थल था । सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से यह तिब्बती भवनों का एक महत्वपूर्ण प्रतिनिधि है, जिसका काफी सांस्कृतिक महत्व है । वर्ष 2001 में चीन की केंद्र सरकार ने ल्हाग्यारी भवन को राष्ट्र स्तरीय महत्वपूर्ण सांस्कृतिक अवशेष संरक्षण की सूची में शामिल किया । एक साल तक चले जीर्णोद्धार के बाद ल्हाग्यारी भवन वर्ष 2011 के अंत में औपचारिक तौर पर पर्यटकों के लिए खोला गया । पर्यटक तिब्बत के इतिहास और सांस्कृतिक जानकारी लेने के लिए ल्हाग्यारी भवन का दौरा करते हैं।
ल्हाग्यारी भवन के बारे में जानने के लिए चीनी फिल्म " तिब्बत का संसार " देखनी चाहिए। फिल्म में फूर्बू और थेन्जिन दो लड़के, बचपन से एक ही जगह खेलते खेलते बड़े हुए । लेकिन दोनों में बहुत अंतर था, फूर्बू जागीर के मालिक का दास था जबकि थेन्जिन जागीर के मालिक का बेटा। बचपन में दोनों लड़के एक-दूसरे के साथ खेलते थे , पर दोनों का स्तर अलग-अलग होने के चलते बड़े होने के बाद वे एक दूसरे का मुकाबला करने वाले दुश्मन बने । लेकिन वर्ग के भारी परिवर्तन के बाद फूर्बू और थेन्जिन एक बार फिर घनिष्ठ दोस्त बनने लगे । फिल्म " तिब्बत का संसार " में इन दो पुरूषों के झगड़े व भाईचारे की कहानियों का वर्णन किया गया है । इस फिल्म में बार-बार दिखने वाली ऊंची इमारत छूसम कांउटी में स्थित ल्हाग्यारी भवन था ।
ल्हाग्यारी भवन के सामने के मैदान पर बैठे हुए 86 वर्षीय बुजुर्ग दोर्जी ने कहा, " तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति से पहले आम लोगों को ल्हाग्यारी लामा को देखे पर घुटनों के बल बैठने की जरूरत तो नहीं थी, पर महिलाओं को ल्हाग्यारी लामा के आगे अवश्य ही बांडेन नामक लम्बा पोशाक पहनने के साथ-साथ अपने बाल सजाने पड़ते थे । और पुरूषों को भी लामा को देखते हुए टोपी उठाकर सलाम करना पड़ता था और अपनी तिब्बती पोशाक को अच्छी तरह पहनना होता था । "
पुराने समय में दोर्जी ल्हाग्यारी लामा के भवन में लकड़ी की चीज़ों की खुदाई और रंगीन चित्रण के जिम्मेदार थे। दोर्जी ल्हाग्यारी भवन की सभी चीज़ों की सजावट के बारे में अच्छी तरह जानते थे। ल्हाग्यारी भवन के जीर्णोद्धार के बाद दोर्जी ने एक बार फिर भवन का दौरा किया और उन्होंने देखा कि जीर्णोद्धार वाला भवन पहले की तरह हो गया है। सिर्फ इतना फर्क है कि भवन में सभी फर्नीचर यहां से स्थानांतरित किए गए हैं।
ल्हाग्यारी भवन छूसम कांउटी के दक्षिण के पठार पर स्थित है । ल्हाग्यारी भवन पांच मंजिली सफेद इमारत और चार मंजिली एक लाल रंग वाली इमारत से जुड़ता है। ल्हाग्यारी लामा पहले पश्चिम के सफेद भवन में शासन से जुड़े मामले निपटाते थे , और वह लाल रंग वाले भवन में धार्मिक गतिविधियां चलाते थे। क्योंकि ल्हाग्यारी लामा सिर्फ धार्मिक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि राज शासनिक भी । भवन के बाहर के सामने कुछ उपभवन भी हैं जहां प्रदर्शन मंच , भंडार , रसोई घर और अस्तबल यानी घुड़साल आदि निर्मित हैं । भवन का प्रमुख द्वार अब नहीं है । ल्हाग्यारी भवन की दो इमारतों का रिहाईशी क्षेत्रफल पाँच हजार वर्ग मीटर है , और भवन का कुल क्षेत्रफल एक लाख 60 हजार वर्ग मीटर विशाल है । ईसवीं 15वीं शताब्दी में निर्मित ल्हाग्यारी भवन पांच सौ साल पुराना है । ल्हाग्यारी लामा जो इस भवन के मालिक थे, एक हजार साल पहले प्राचीन काल में तिब्बती राजाओं की संतान होने की भी पुष्टि हुई।
सन 842 में प्राचीन तिब्बत के राजा गल्दार्मा ने बौद्ध धर्म को हटा देने का आदेश दिया था , तब साधु ल्हालूंग पालग्ये दोर्जी ने गल्दार्मा की हत्या कर दी । गल्दार्मा के मरने के बाद उसके दो बेटों यूमबर्टन और वोदस्रूंग ने सिंहासन के लिये संघर्ष में युद्ध छेड़ा, जिससे दो सौ साल तक चला तिब्बती राजवंश समाप्त हुआ। लेकिन आपेक्षाकृत कमजोर वोदस्रूंग युद्ध में जीत हासिल नहीं कर पाया और शाननान क्षेत्र छोड़ना पड़ा । उसने तिब्बत के नारी क्षेत्र जाकर इतिहास में मशहूर गूग राजवंश की स्थापना की। 12वीं शताब्दी में एथसन सेनपो के नेतृत्व वाले तिब्बती राज-वंशों ने शाननान क्षेत्र में वापस जाकर ल्हाग्यारी सत्ता कायम की थी । क्योंकि नारी क्षेत्र की जमीन उनके पुराने आवासीय क्षेत्र के बराबर थी , इसलिए उन्होंने यहां अपना नया प्रदेश स्थापित किया था और इसे ल्हाग्यारी का नाम दिया था । " ल्हा " का मतलब है भगवान है और " ग्यारी " का मतलब है एक किस्म का घास । तब से ल्हाग्यारी राजा ने यहां का सात सौ वर्षों के लिए शासन किया था ।
सन 1951 में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति और सन 1959 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना के बाद ल्हाग्यारी भवन खाली किया गया था । कई वर्षों तक खाली रहने और बरसात व हवा के कारण ल्हाग्यारी भवन और उसका मैदान सुनसान स्थल बन गया। इमारतों के ढह जाने का खतरा भी मौजूद था। ऐसे में इसका समय पर जीर्णोद्धार करने की बड़ी आवश्यकता थी । सन 2010 में सरकार ने औपचारिक तौर पर ल्हाग्यारी भवन के जीर्णोद्धार की परियोजना शुरू कर दी थी ।
शाननान क्षेत्र के सांस्कृतिक अवशेष ब्यूरो के उप निदेशक कूंडो ग्याट्सो ने ल्हाग्यारी भवन की जीर्णोद्धार योजना लागू करने के बारे में बताया कि , " वर्ष 2001 में ल्हाग्यारी भवन की ऊपरी मंजिल ढह चुकी थी , प्रमुख इमारत की ऊंचाई सिर्फ तीन मंजिल तक थी । इसके ऊपर के चौथी और पांचवीं मंजिल ढह गयी । भवन से जुड़े अस्त बल और भंडार आदि भी नष्ट होने लगे थे । पूरे भवन का मलबे में तब्दील होने का खतरा पैदा हो गया था। "
क्योंकि ल्हाग्यारी भवन ऐतिहासिक, कलात्मक और वैज्ञानिक महत्व का है, ऐसे में इसका जीर्णोद्धार करते समय भवन के मूल स्वरूप को बरकरार रखने की चुनौती थी । सितंबर 2010 से नवंबर 2011 तक सांस्कृतिक अवशेष के कार्यकर्ताओं, शिल्पकारों और मजदूरों ने ल्हाग्यारी भवन की मरम्मत करते समय पुरानी सामग्री के इस्तेमाल , पुराना कौशल अपनाने तथा पुराने स्वरूप दिखाने की पूरी कोशिश की । शाननान क्षेत्र के सांस्कृतिक अवशेष ब्यूरो के उप निदेशक कूंडो ग्याट्सो ने बताया
उन्होंने कहा , " सांस्कृतिक अवशेषों का जीर्णोद्धार करते समय पुरानी सामग्री के इस्तेमाल , पुराना कौशल अपनाने तथा पुराना स्वरूप दिखाने की चुनौती थी । ल्हाग्यारी भवन के संरक्षण और मरम्मत करते समय हमने इन चीज़ों पर ध्यान दिया ।"
ल्हाग्यारी भवन की मरम्मत का काम हो जाने के बाद शाननान क्षेत्र के सांस्कृतिक अवशेष ब्यूरो ने तीन स्तरीय संरक्षण क्षेत्र रेखांकित किये । सांस्कृतिक अवशेष ब्यूरो की पुष्टि के बिना कोई भी व्यक्ति या संस्था ल्हाग्यारी भवन के आसपास नया वास्तु निर्माण नहीं कर सकती। सांस्कृतिक अवशेष ब्यूरो ने संरक्षण क्षेत्र में गार्ड भी लगाए हैं , जो ल्हाग्यारी भवन की रक्षा करते हैं । ताकि इस भवन को कोई नुकसान न पहुंचे।
मरम्मत के बाद ल्हाग्यारी भवन पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र बना है। चीन के दूसरे क्षेत्रों से तमाम पर्यटक ल्हाग्यारी भवन देखने आते हैं। मध्य चीन के वू हान के चांग श्यांग-छी अपने दो मित्रों के साथ दो महीने में पूरे तिब्बत का दौरा करने की सोची । चांग श्यांग-छी को तिब्बत के सांस्कृतिक अवशेषों में बड़ी रुचि है। ल्हाग्यारी भवन के बारे में इतिहास के बारे में पढ़ने के बाद चांग श्यांग-छी अपने दोस्तों के साथ साथ गाड़ी चलाकर छूसम कांउटी पहुंचे ।
चांग ने कहा, " मुझ लगता है कि यहां पर प्रकृति की मूल शैली कायम रखी गयी है, यह बहुत अच्छा लगता है । मैंने यहां पर देखा कि इसके साथ ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की गयी है। ऐसे में इतिहास का मूल स्परूप नजर आता है और इसे देखकर मन में कई विचार उठते हैं "
ल्हाग्यारी राज्य के पुराने मालिक सब इतिहास में बिखरते चले गए। लेकिन ल्हाग्यारी राज्य में कुछ सदस्य आज भी जीवित हैं । ल्गाग्यारी भवन की मरम्मत के बाद अंतिम ल्हाग्यारी लामा नमग्याल ग्याथ्सो के चौथे छोटे भाई खेलज़ांग नोर्बू ने भी ल्हाग्यारी भवन का दौरा किया , जहां से वे पचास वर्ष पहले जा चुके थे । खेलज़ांग नोर्बू इस भवन में बीस साल रहे थे, बचपन में समय बिताए हुए महल के प्रति उन्हें लगाव है। सांस्कृतिक संरक्षण में उन्होंने दूसरों को बताया ।
उन्होंने कहा, " किसी भी जाति या देश के लिए संस्कृति का संरक्षण करना आवश्यक है । संस्कृति और सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण का लाभ मिलता है । उन्होंने भवन की मरम्मत में बहुत योगदान दिया है , यह सब देखकर मुझे खुशी हुई । यह सिर्फ ल्हाग्यारी भवन के लिए ही नहीं , क्योंकि यह सब देश और जनता की संपत्ति है , इनका अच्छी तरह संरक्षण होते देखकर मुझे बहुत खुशी हुई । "
बताया जाता है कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के मुताबिक चीन सरकार तिब्बत के विभिन्न क्षेत्रों में बिखरे हुए 46 महत्वपूर्ण सांस्कृतिक अवशेषों तथा संग्रहालयों की मरम्मत करने के लिए एक अरब युआन की राशि आवंटित करेगी।
ल्हाग्यारी भवन के बारे में एक और ही कहानी है और वह है जीवित बुद्धा लोगसांग छ्यांगबा की कहानी । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर 74 वर्षीय जीवित बुद्धा लोगसांग ने संवाददाता से इंटरव्यू कर लिया । लोगसांग छ्यांगबा भी ल्हाग्यारी राजवंश के संतान में से एक है ।
उन्हों ने कहा कि अमीर होना सुखमय जीवन का सिर्फ एक ही भाग है । समानता, धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता और सामाजिक स्थायीत्व आदि भी सुखमय जीवन का स्रोत है । पाँच साल के समय उन्हें जीवित बुद्धा तय किया गया था । बचपन के समय लोगसांग अपने मां-पाप के साथ साथ ल्हाग्यारी भवन में रहते थे । उन के पास हमेशा तीन चार परिचारक थे , अपना जीवन स्वतंत्र नहीं लगता था । उस समय वह अकसर खिड़की के सामने बाहर की दुनिया देखते रहे । मैदान पर दूसरे बच्चे फूटबाल आदि खलते देखकर लोगसांग के दिल में अभिलाषा की भावना जन्म उठी । तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति होने के बाद लोगसांग के जीवन का परिवर्तन हुआ । उन्हें लगता है कि आज का जीवन पहले की तुलना में अच्छा रहता है । उन्हों ने कहा कि आज के तिब्बत में लोगों को समानता मिलती है । इसलिए यह कहा जा सकता है कि तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति सिर्फ दास के लिए नहीं , तिब्बत के कुलीन वर्ग को भी मुक्त कराया गया है । मैं खुद भी नये काल में आ चुका हूं । मैं भी पुराने समाज के पदक्रम की कड़ी व्यवस्थाओं में से मुक्त हुआ था ।
आज लोगसांग छ्यांगबा चीनी राष्ट्रीय बौद्ध धर्म सोसाइटी के उपाध्यक्ष और तिब्बती बौद्ध धर्म सोसाइटी के उप प्रधान का काम करते हैं । वे रोज़ धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों से व्यस्त रहते हैं । लेकिन व्यस्त होने पर भी वे रोज दो घंटे धार्मिक प्रार्थना करते रहते हैं । उन्हों ने कहा कि आज तिब्बत में सभी धार्मिक गतिविधियों की अच्छी तरह गारंटी हो पायी है । तिब्बत के 1787 धार्मिक स्थल हैं जहां 46 हजार भिक्षु और भिक्षुणी रहते हैं । आधुनिक काल में भिक्षु और भिक्षुणी को पहले से अधिक गुणवत्ता दिखानी चाहिये । लोगसांग छ्यांगबा ने कहा कि आज तिब्बत में भिक्षुओं और भिक्षुणियों को सिर्फ बौद्धिक ग्रेंथ नहीं , चीनी व अंग्रेज़ी भाषाएं , आईटी तकनीक आदि बहुत सी जानकारियां हासिल होती रही हैं । व्यापक ज्ञान प्राप्त होने के बाद उन का जीवन भी अधिक समृद्ध होता रहा है ।
( हूमिन )