हाल ही में हमारी विशेष संवाददाता मीरा ने तिब्बत का दौरा किया और तिब्बत की राजधानी ल्हासा में स्थित परंपरागत तिब्बती कालीन का उत्पादन करने के एक कारखाने में इटरव्यू लिया। अब सुनिये उनके द्वारा किया गया तिब्बती कालीन का कुछ परिचय।
प्रिय मित्रों, कुछ दिन पहले मैंने तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा समेत कुछ क्षेत्रों का दौरा किया। वहां मंगलमय जीवन बिताने वाले तिब्बती लोग, उनके रंगबिरंगे रिती-रिवाज़ों, सुन्दर और कुशलतापूर्ण हस्त शिल्पियों ने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी है। तिब्बत के परंपरागत हस्त शिल्पियों में से तिब्बती कालीन विश्व भर में मशहूर है। तिब्बती कालीन याक और पहाड़ी बकरे के ऊन से बनाई जाती है। तिब्बती पठार के विशेष मौसम के कारण वहां उत्पादित ऊन भी बढ़िया है। इसलिए तिब्बती कालीन का गुण भी देश के दूसरे स्थानों में बनाये कालीन की तुलना में अधिक श्रेष्ठ होता है। लेकिन आजकल अधिकांश तिब्बती कालीन मशीन निर्मित होने लगे हैं, परंपरागत वस्तुओं का अस्तित्व दिन प्रति दिन परिसीमित होता जा रहा है। मैंने ल्हासा में एक ऐसे कारखाने का पता लगाया जहां परंपरागत कौशल से तिब्बती कालीन का उत्पादन किया जाता है।
गीत गाते हुए ल्हासा गावाचेन तिब्बती कालीन कारखाने के मज़दूर अपना रोज़ाना काम शुरू कर रहे हैं। वे हाथ में हथौड़े लिये बुनाई मशीन से अभी निकाले हुए कालीन को पीट पीटकर मजबूत बना रहे हैं। तिब्बती कालीन के निर्माण दर्जनों कदमों में किया जाता है। यह देखकर मुझे मालूम होने लगा कि सुन्दर सुन्दर तिब्बती कालीन हस्त शिल्पीकारों के हाथों से बनाया जाता है।
फूबू ड्वनचू गावाचेन तिब्बती कालीन कारखाने के तकनीशियन हैं। वे बचपन से ही अपने मां-पाप के साथ तिब्बती कालीन की बुनाई में लगे हुए हैं। अभी तक उन्हें तिब्बती कालीन का निर्माण करने में 23 वर्ष बीत चुके हैं। अनेक वर्षों के लिए काम करके उन्हें यह अनुभव प्राप्त है कि तिब्बती कालीन का गुण ऊन की गुणवत्ता पर निर्भर होता है।
उन्हों ने कहा, " तिब्बती कालीन की विशेषता है कि इसे बनाने वाली सामग्री ऊंचे पठार से निर्मित ऊन की होती है। दुनिया में तरह तरह के बकरे हैं , कुछ पठार पर रहते हैं और कुछ कम ऊँचाई वाले मैदान में । तिब्बती कालीन ऊंचे पठार के बकरों के ऊन से बनाता है। और यही उसके बढ़िया होने का कारण है। "
कच्चे ऊन की छंटनी के बाद मजदूर चुने हुए बढ़िया ऊन की बुनाई करते हैं। इसके बाद ऊन को कई अलग अलग रंगों में रंग कर मजदूरों की करघा मशीनों पर रखा जाएगा। दो मजदूर एक महीने तक बहुत कष्ट के बाद आम आकार वाला एक तिब्बती कालीन बनाने का काम समाप्त कर सकते हैं।
तिब्बती कालीन के तीन तरीके हैं। पहला, याक और पहाड़ी बकरे के ऊन से बनाया जाता है , जो मुलायम और हल्का होता है , और चमकीले रंग व जटिल पैटर्न से सुसज्जित है। दूसरा, भेड़ के ऊन से बनाया जाता है , जिसका रंग और पैटर्न सीधा सादा है और जिसपर कभी कभी रंगीन धागों से बूटेदार डिज़ाइन बनाते हैं। तीसरा यानी "खा-डियन" नाम की मैट भी है। "खा-डियन" मैट यानी दरी तिब्बती पठार के मौसम और वातावरण से मेल खाती है, और सभी तिब्बती परिवारों में दिखती है। संवाददाता ने अपने तिब्बती मेजबानों के घरों में अनेक ढंग तरीके के "खा-डियन"देखा , ऐसी विशेष स्टाइल वाली कालीन सिर्फ दैनिक उपयोग की वस्तु नहीं, बल्कि तिब्बती लोगों के घरों में सजावट के लिए भी प्रयोग होती है। तिब्बती कालीन का दो हजार वर्षों का लंबा इतिहास है। इसकी कौशल में कताई, रँगाई ट्रिमिंग और धुलाई आदि शामिल हैं । तिब्बती कालीन का रंग इतना मज़बूत है जो पानी में धोने के बाद भी बना रहता है । तिब्बती कालीन के पैटर्न भी जातीय विशेषताओं से सुरक्षित हैं। तिब्बती कालीन अपने बढ़िया गुण, विशेष पैटर्न और सुन्दरता से विश्व बाजार में लोकप्रिय होता है और इसे विश्व के तीन सर्वश्रेष्ठ कालीनों में से एक माना जाता है।
लेकिन आजकल हस्तशिल्पीयों द्वारा निर्मित तिब्बती कालीन दिन प्रति दिन कम होते जा रहे हैं। बहुत से कारखानों ने बिजली से संचालित आधुनिक मशीनों से तिब्बती कालीन का उत्पादन करना शुरू किया है। इसी तरह परंपरागत तिब्बती कालीन का उत्पादन विलुप्त होने की कगार पर जा पहुंचा है। आधुनिक मशीन, हस्त शिल्पीकारों के हाथों से परंपरागत कला छीनने लगती है । ल्हासा के गावाचेन तिब्बती कालीन कारखाने के वर्कशॉप के प्रधान निमा त्साशी इस कारखाने में करीब बीसेक वर्षों तक काम कर चुके हैं। हाथ से तिब्बती कालीन बनाने में बहुत अधिक श्रम लगता है और ये कठिन काम है, यहां काम करने वालों को वेतन भी कम मिलता है। निमा त्साशी ने भी एक समय अपनी नौकरी को छोड़ना चाहा था, लेकिन परंपरागत कला का वारिस बनने की कल्पना से वह ल्हासा तिब्बती कालीन कारखाने में अपने काम में व्यस्त हैं।
उन्होंने कहा , " तिब्बत में जो परंपरागत कालीन बनाने का कौशल मालूम है , आज बहुत कम हो चुका है। अगर मैंने भी इसे छोड़ दिया, तो हमारे परंपरागत कला का कोई उत्तराधिकारी नहीं रहेगा। क्योंकि एक दिन इस शिल्प कौशल से परिचित होने वाले भी विलुप्त हो जाएंगे। "
ल्हासा गावाचेन तिब्बती कालीन कारखाने के संस्थापक कसांग त्साशी भी परंपरागत कला का पुनरुत्थान करने में कृतसंकल्प हैं। 1986 में कसांग त्साशी ने ल्हासा शहर में जो बुनाई और रंगाई करने वाले शिल्पकार हैं, उन्हें खोजकर इकट्ठा किया, इनके साथ गावाचेन बुनाई कला केंद्र स्थापित किया, और तिब्बती कालीन का उत्पादन करने की नयी पीढ़ी के शिल्पकारों को प्रशिक्षण दिया।
गावाचेन तिब्बती कालीन कारखाने में पहले पाँच सौ कर्मचारी कार्यरत थे। कारखाने में उत्पादित तिब्बती कालीन अमेरिका और जापान में भी निर्यातित किये गये। वर्ष 2001 में गावाचेन कारखाने में उत्पादित तिब्बती कालीन अमेरिका के न्यूयॉर्क में आयोजित प्रदर्शनी में भी शामिल हुआ था।
आज ल्हासा शहर में गावाचेन कारखाना ऐसा एकमात्र कारखाना है, जो परंपरागत हस्तशिल्पी ढंग से तिब्बती कालीन का उत्पादन करता है। लेकिन अभी तक कारखाने में सिर्फ तीसेक मज़दूर बाकी हैं। गावाचेन कारखाने के प्रमुख दोर्जी त्सैइरांग गानसू प्रांत के दक्षिणी क्षेत्र से आये हैं। वह भी बचपन से ही पशुपालन क्षेत्रों में रहते थे, मिडिल स्कूल में से स्नातक होने के बाद वह ऊन के व्यापार में जुटे हुए थे। तिब्बती कालीन की सुन्दरता ने उसके मन को पकड़ा, वह विशेष रूप से तिब्बती कालीन की खरीद-बिक्री में संलग्न होने लगे। तिब्बती कालीन बनाने का खर्च उन्नत है, तिब्बती कालीन की सौदेबाज़ी में दोर्जी त्सैइरांग को पर्याप्त मुनाफा नहीं मिल पाया , उधर कारखाने के मजदूरों की आय भी बहुत कम रही, पर दोर्जी त्सैइरांग फिर भी अपना व्यापार जारी रखना चाहते हैं, और वह हमेशा उन मजदूरों को, जो कारखाने को छोड़ने का मन बना चुके हैं, कारखाना नहीं छोड़ने के लिये समझाते-बुझाते रहे हैं।
उन्होंने कहा, " तिब्बती कालीन हमारी परंपरागत जातीय वस्तु है, हमें इसे छोड़ना नहीं चाहिये और इसे विलुप्त नहीं होना चाहिये। पैसा और लाभ नहीं मिलने पर भी हमें हस्तशिल्पी कालीन के उत्पादन पर डटे रहना चाहिये। मुझे भी ऊनकी सौदेबाज़ी में बीसेक वर्ष हो चुके हैं। मैंने इसे क्यों नहीं छोड़ा क्योंकि यह हमारे पूर्वजों के द्वारा हमारे लिये सुरक्षित की गयी कलात्मक वस्तु है। "
तिब्बती जातीय व्यक्तियों के अलावा कुछ परदेसी भी तिब्बती कालीन की परंपरागत कला को जारी रखने का प्रयास किया करते हैं। पूर्वी चीन के शानतुंग प्रांत के वांग ज़-छिआंग ने कुछ ही दिनों पहले विदेशी आयरलैंस में अपनी ऊंची पगार वाले पद से विदाई लेकर ल्हासा के गावाचेन कारखाने में विक्रेता का पद सँभाला। वह भी ल्हासा शहर में लंबे समय तक काम करना और तिब्बती हस्तशिल्पी कला की विरासत को सुरक्षित करने में योगदान देना चाहते हैं। तिब्बत की परंपरागत संस्कृति के संरक्षण के बारे में उन्हों ने मुझे अपना विचार बताया ।
उन्होंने कहा , " तिब्बती संस्कृति का जोरों पर संरक्षण करना चाहिये। तिब्बती कालीन बनाने का कौशल मूल्यवान है, इसलिए हमें इस के निरंतर विकास को भी जोर देना चाहिये। यह एक आवश्यक काम ही है। हम अभी जो प्रयास कर रहे हैं कि तिब्बती संस्कृति की विरासत को बनाये रखा जाएगा, इसका विलुप्त होना असहनीय है।"
हस्तशिल्पी कालीन भी तिब्बती संस्कृति का एक उत्कृष्ट नमूना भी माना जाता है। इसका आगे विकास करने से तिब्बती संस्कृति विकसित करने की दिशा दिखाई जाएगी। प्राचीन हस्तशिल्प का अपना विशेष आकर्षण मौजूद है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तशिल्पियों को आकर्षित करके उन्हें अपने पास खींचता है। गावाचेन कारखाने की महिला डिज़ानर वू ची भी परंपरागत हस्तशिल्पी की वफादार प्रशंसक है । उनका मानना है कि परंपरागत हस्तशिल्पी कला के पुनरुद्धार की लहर आज नज़र आ रही है। तिब्बती कालीन भी इस लहर से छुटकारा नहीं पा सकेगी।
उन्हों कहा , " आजकल लोगों का जीवनस्तर निरंतर उन्नत होता रहा है। सुंदर और कलात्मक वस्तुओं के प्रति लोगों की रुचि भी बढ़ती जा रही है । लोगों को परंपरागत और प्राकृतिक उत्पाद वस्तुएं अधिकाधिक तौर पर पसंद आने लगी हैं। ऐसी स्थिति में हम देख पाते हैं कि परंपरागत तिब्बती कालीन की स्थिति का अवश्य ही सुधार पा रहेगा "
तिब्बती कालीन का गुण बढ़िया है क्योंकि वह तिब्बत के याक या बकरे के ऊन से बनता है। तिब्बती पठार के ऊंचे ऊंचे पहाड़ों और मैदानों के मौसम से पशुओं के ऊन भी दूसरे स्थानों से अधिक मजबूत और रंगीन होते हैं। तिब्बती कालीन पठार के बहुत से क्षेत्रों में उत्पादित हैं, पर राजधानी ल्हासा और शिगाज़े प्रिफेक्चर के ग्यानत्से क्षेत्र में उत्पादित कालीन सबसे जाने माने हैं। ग्यानत्से में "खा-डियन"का छह सौ वर्षों का इतिहास है और वहां हरेक सड़क के किनारे कालीन के कारखाने दिखते हैं। ग्यानत्से में उत्पादित कालीन की भी अपनी विशेषताएं हैं। कालीन को रंगने वाली सामग्री पेड़ के पत्ते, घास की जड़ और खाद्य पदार्थों से बनी है। ऐसी प्राकृतिक सामग्रियों से रंगने वाले कालीन देखने में अधिक सुन्दर हैं और प्रयोग में भी चिरस्थाई प्रसिद्ध हैं। ग्यानत्से में उत्पादित "खा-डियन"कालीन देश में लोकप्रिय है और इसे भारत, नेपाल और भूटान के बाजारों में भी व्यापक स्वागत मिलता है।
समाज के विकास के चलते प्राचीन काल के तिब्बती कालीन को नयी जीवनी शक्ति मिली है। पहले तिब्बती कालीन केवल कमरे की सजावट में, कमरे को गर्म रखने या नीचे बिछाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। आज तिब्बती कालीन की डिज़ानिंग में परंपरागत कौशल में आधुनिक तत्वों को शामिल करवाया गया है। इस तरह तिब्बती संस्कृति का विकास करने का वाहक भी बना है। तिब्बत के हस्त शिल्पीकार अपने हाथों से इस सांस्कृतिक विरासत को बनाये रखने का अथक प्रयास करेंगे।
पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने तिब्बती कालीन के उत्पादन को विशेष महत्व दिया है और इसके देसी विदेशी बाजारों को तलाशने का भारी प्रयास किया है। तिब्बत के दो हज़ार से अधिक परंपरागत हस्तशिल्पी उत्पादों में से तिब्बती कालीन को प्राथमिकता भी मिलती है। तिब्बती कालीन का परंपरागत बाजार दक्षिणी एशिया में ही था, लेकिन आज अमेरिका, जर्मनी, कनाडा सहित यूरोप और पश्चिमी देशों, और दक्षिणी एशिया भी तिब्बती कालीन का गर्म बाज़ार है। तिब्बती स्वायत्त प्रदेश की सरकार प्रति वर्ष विशेष खर्च से तिब्बती कालीन बनाने के 80 हस्त शिल्पीकारों का प्रशिक्षण करती है, ताकि इस दुर्लभ परंपरागत कौशल का संरक्षण किया जा सके। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 में तिब्बती कालीन का उत्पादन मूल्य 35 करोड़ युआन तक रहा और नियार्त की मात्रा तीन करोड़ अमेरिकी डॉलर रही। तिब्बती कालीन का उज्जवल भविष्य साबित हो जाएगा।