तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा के छंगक्वान जिले में चिरी सड़क पर एक बस्ती स्थित है जो कि दूसरी बस्तियों से अलग है। जहां तिब्बती जाति के अलावा, हान जाति, ह्वेई जाति और पाई जाति के 51 परिवारों के 112 लोग आपसी मेल-मिलाप के साथ रहते हैं। जिसे बहु-जातीय आबादी वाली बस्ती कहा जाता है। रोज़ दोपहर के बाद बस्ती के बीचोंबीच खुली जगह में कुछ परिवारों के लोग आपस में गपशप करते हैं। उनके आसपास छोटे बच्चे खेलते हैं। वातावरण में बातचीत करने, हंसने और बच्चों के खेलने की आवाज़ भी सुनाई दे रही है। ऐसा दृश्य देखते ही शांत माहौल में लोगों के मन में गर्माहट आती है और उन्हें सुख की अनुभूति होती है।
ह्वई जातीय युवती रुची के पति तिब्बती जाति के हैं। इस बस्ती की स्थापना किये जाने के बाद उन्होंने यहां स्थानांतरण किया। इन्हें यहां पर रहते हुए आज छै वर्ष बीत चुके हैं। रुची ने कहा कि उन्हें बस्ती में रहना बहुत अच्छा लगता है। अगर किसी भी घर में कभी मुसीबत का समय आता है तो बस्ती के दूसरे लोग एक दूसरे की मदद करते हैं। रुची ने कहा:"हम पड़ोसी एक दूसरे की मदद करते हैं। पड़ोसी के दादा-दादी के निधन के बाद अंतिम संस्कार से संबंधित काम करने के लिए हमने उनकी सहायता की।"
रुची की पड़ोसी दादी मां च्वोमा तिब्बती जाति की हैं और उनके पति ह्वेई जाती के हैं। मिलती जुलती पारिवारिक स्थिति के कारण रुची और च्वोमा के बीच गहरी दोस्ती है। तिब्बती दादी मां च्वोमा ने कहा:"कभी-कभी वह हमारे यहां आकर बाहर रेस्त्रां में हमें खाना खिलाने आती हैं। ह्वेई जाति के कुर्बानी वाले उत्सव और रमज़ान के वक्त हम एक दूसरे यहां आते-जाते हैं और एक साथ खुशियां मनाते हैं।"
च्वोमा और रूचि का परिवार दो जातियों का मिश्रित परिवार है। ये एक छोटा सा परिवार है। लेकिन बहु-जातीय बस्ती एक बड़ा परिवार है। यहां तिब्बती जाति के परिवारों के अलावा, हान जाति, ह्वेई जाति, और पाई जाति के परिवार भी बसे हुए हैं। चाहे तिब्बती पंचांग का नववर्ष हो, चीनी पंचांग का वसंत त्यौहार और ह्वेई जाति के कुर्बानी वाले उत्सव ही क्यों न हों, बस्ती में सभी नागरिक, परिवार के सदस्यों की तरह एक साथ मिलकर खुशियां मनाते हैं। इसकी चर्चा में तिब्बती दादी मां च्वोमा ने कहा:"त्यौहार के वक्त हम एक साथ खुशियां मानते हैं। हम आपस में घर-घर जाकर एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। तिब्बती पंचांग के नए साल को मनाने के दौरान हम आटे से बने स्वादिष्ट पकवान खाते हैं। इन्हें पड़ोसियों को देते हैं। हम एक दूसरे घर में बनाए गए पकवानों का मज़ा लेते हैं।"
तिब्बत में अधिकांश जनसंख्या तिब्बती जाति की है। पिछले कुछ वर्षों में चीन की केंद्र सरकार तिब्बत के समर्थन को लगातार मज़बूत कर रही है। अधिक से अधिक लोग व्यापार करने ल्हासा आने लगे हैं। विभिन्न जातियों के लोगों के तिब्बत में आने से ल्हासा के छङक्वान बहु-जातीय आबादी वाली बस्ती की तरह ज्यादा से ज्यादा बस्तियां नज़र आने लगी हैं।
एक ही बस्ती में विभिन्न जातियों के लोग साथ-साथ रहते हैं। उनके पास भिन्न-भिन्न रीति रिवाज़ हैं और वे अलग-अलग भाषाओं को बोलते हैं। रोज़मर्रा के जीवन में उनके बीच छोटे-छोटे मतभेद और विवाद भी पैदा होते हैं। तिब्बती दादी मां च्वोमा के मुताबिक लोगों के बीच हुए मतभेदों और विवादों का आम तौर पर अच्छी तरह समाधान किया जाता है। इसका श्रेय स्थानीय नागरिक समिति को जाता है। छङक्वान जिले में चीरी सड़क की नागरिक समिति ने हर एक आवासीय इमारत में एक जिम्मेदार व्यक्ति को कार्यभार सौंपा है। हर इमारत के हरेक मंजिल के लिए प्रधान भी निश्चित किया गया है। नागरिक समिति परिवारों के बीच और व्यक्तियों के बीच पैदा हुए विवादों का समाधान करती है। समिति के प्रधान छील्ये ने कहा:"लोगों के बीच बड़े विवाद नहीं होते। हम छोटे-छोटे मसलों का समाधान करते हैं। इस बस्ती में लोगों के बीच भाईचारे वाले संबंध मौजूद हैं। वे एकजुट होकर रहते हैं।"
पड़ोसियों के बीच सामंजस्यपूर्ण रूप से रहने का एक और तरीका नियमित रूप से गतिविधियों का आयोजन करना है। नागरिक समिति गतिविधियों के आयोजन के माध्यम से पड़ोसियों के बीच दूरी को कम करने में प्रयासरत हैं। समिति के प्रधान छील्ये के अनुसार हर वर्ष 17 सितंबर को ल्हासा शहर में जातीय एकता दिवस मनाया जाता है। इसी दिन में इस बस्ती में रहने वाले सभी परिवारों के लोग एकसाथ मिलकर खाना खाते हैं और जातीय नृत्य करते है। इसकी चर्चा करते हुए छील्ये ने कहा:"हर वर्ष 17 सितंबर को जातीय एकता दिवस मनाया जाता है। हमारी बस्ती में आम तौर पर सितंबर की 23 और 24 तारीख को कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसी दिन हम एक साथ मिलकर जातीय एकता को प्रदर्शित करने के लिये एकसाथ खाना खाते हैं। सभी लोग इकट्ठा होकर एक दूसरे के घरों में बनाए गए पकवानों का आनंद उठाते हैं।"
बस्ती में बुजुर्ग लोगों और बच्चों समेत कमजो़र समुदाय की सहायता के लिए स्वयंसेवा दल स्थापित किया गया है। इन लोगों को नियमित रूप से मदद दी जाती है।
इस वर्ष 60 वर्षीय छील्ये ने हमारे संवाददाता से कहा कि उन्हें कभी कभार बुजुर्ग पीढ़ी के लोगों से पुराने जमाने में तिब्बत की खराब स्थिति की बातें सुनाई जाती थी। इस वजह से वे आज के सुखमय और जातीय एकता वाले जीवन को अधिक मूल्यवान समझते हैं। उनका कहना है कि जातीय एकता जीवन रेखा ही है। इस जीवन रेखा के आधार पर तिब्बत का विकास आगे बढ़ रहा है। छील्ये ने कहा:"पुराने जमाने में स्थिति बहुत खराब थी। लोगों का शोषण किया गया और उन्हें भूदास प्रथा का सामना भी करना पड़ता था। 28 मार्च 1959 को तिब्बत में दस लाख भूदासों को मुक्ति दी गई। इसके बाद से लेकर अब तक तिब्बत में दिन दुना रात चौगुना परिवर्तन आया है। वर्तमान में स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यटन, किसानों और चरवाहों के आवासीय मकान, चिकित्सा, पेंशन बीमा जैसे क्षेत्रों में अच्छा विकास हुआ है। विभिन्न जातियों की एकता को प्राप्त के बाद सामाजिक स्थिरता भी हासिल होगी। सामाजिक स्थिरता हासिल करने के बाद ही तिब्बत का विकास साकार होगा।"
तिब्बत की राजधानी ल्हासा में इस प्रकार की कई बहु-जातीय आबादी वाली बस्तियां मौजूद हैं। तिब्बत में विभिन्न जातियों की एकता वाला दृश्य इधर-उधर देखा जा सकता है। चीन में सामंजस्यपूर्ण विकास को बखूबी अंजाम देने के लिए एक ही जाति के लोगों का प्रयास कम है। इसे 56 जातियों के सभी लोगों के समान प्रयास की आवश्यकता है।
(श्याओ थांग)