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    आपका पत्र मिला 2015-09-16
    2015-09-18 11:12:31 cri

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल पांडे का नमस्कार।

    मीनू:सभी श्रोताओं को मीनू का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिलः आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे। इसके बाद एक श्रोता के साथ हुई बातचीत के मुख्य अंश पेश किए जाएंगे।

    अनिल:चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं। पहला पत्र हम पढ़ते हैं ओड़िशा से हमारे मोनिटर सुरेश अग्रवाल जी का। उन्होंने लिखा है.....दिनांक 9 सितम्बर। प्रतिदिन की तरह सीआरआई हिन्दी के ताज़ा प्रसारण ने आज भी शाम ठीक साढ़े छह बजे हम सभी के लिये ज्ञान का झरोखा खोला और अपनी सूक्ष्म तरंगों के ज़रिये 9450 किलोहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर देश-दुनिया का ताज़ा हाल हमारे सामने रखा। पूरे कार्यक्रम का लुत्फ़ उठाने के बाद अब मैं उस पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया के साथ आपके समक्ष उपस्थित हूँ। बहरहाल, ताज़ा समाचारों के उपरान्त तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना की पचासवीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में प्रस्तुत ख़ास रिपोर्ट में यह जान कर सुखद अनुभूति हुई कि तिब्बत के सोगो (नाम जैसा समझ में आया) नामक गाँव में अपनी प्राचीन परम्परा से चिपके लोग आज भी आधे लकड़ी और आधे पत्थर से बने पारम्परिक तिब्बती शैली के जीर्ण-शीर्ण मकानों में रहते हैं। विशेषकर, चोमा नामक महिला द्वारा 420 साल पुराने मकान में रहना आश्चर्यचकित करने वाली बात है। अपनी परम्पराओं से प्यार करना अच्छी बात है, परन्तु परम्परा के नाम पर ख़तरनाक हालत में पहुँच चुके घरों में रहना जीवन उत्सर्ग करने जैसा है और इस पर शासन / प्रशासन द्वारा तुरन्त ध्यान दिया जाना आवश्यक है, क्यों कि इससे लोगों के जीवन को ख़तरा हो सकता है। कार्यक्रम सुन यह भी पता चला कि सोगो का मतलब झील का उद्गम होता है। सबसे अच्छी बात यह लगी कि परम्परा से जुड़े सोगो वासियों ने शराब और तम्बाकू को छोड़ दिया। धन्यवाद एक अच्छी प्रस्तुति के लिये।

    श्रोताओं के अपने मंच साप्ताहिक "आपका पत्र मिला" के तहत आज मुझे सबसे अच्छा पत्र रायपुर, छत्तीसगढ़ के श्री अशोक बजाज का लगा, जिसमें उन्होंने गत बीस अगस्त को आयोजित अखिल भारतीय रेडियो सम्मेलन पर अपनी रिपोर्ट भेजी थी। वास्तव में, एक रेडियो प्रेमी होने के नाते मैं हर उस प्रयास का स्वागत करता हूँ, जो कि रेडियो के वर्चस्व के लिये होता है।

    श्रृंखला "पश्चिम की तीर्थयात्रा" की कड़ी में आज दैत्यांगना को बन्धनमुक्त कर दिये जाने के बाद वह भी मुस्कुराती हुई सान चांग और उसके शिष्यों के साथ चल पड़ी। वानर महान की निगाह निरन्तर दैत्यांगना पर लगी हुई थी। तभी चलते-चलते उन्हें एक ऊँचा मकान दिखाई पड़ा, सान चांग ने शिष्यों से कहा रात को यहीं विश्राम करने की सुविधा मिल सके तो अच्छा है और वह शिष्यों को मुख्यद्वार के बाहर ही छोड़ पता लगाने वहां चला गया। वह एक जीर्ण-शीर्ण मठ था। अन्दर जाने पर उसे एक सेवादार मिला, जो उसे मठ के भीतर बने एक भव्य मठ के अन्दर ले गया, जहाँ उसकी मुलाक़ात एक लामा से हुई और रात्रि-विश्राम के आग्रह के बाद लामा ने बाहर खड़े शिष्यों को भीतर बुला लाने दो छोटे लामाओं को भेजा, जो शिष्यों का डरावना रूप देख डर गये और उन्होंने भीतर जाकर रिपोर्ट दी कि बाहर कोई भिक्षु नहीं, तीन दैत्य खड़े हैं। अब कहानी में आगे क्या होगा, देखना है। धन्यवाद।

    मीनू:सुरेश अग्रवाल जी, हमें पत्र भेजने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। चलिए, आगे पेश है उत्तर प्रदेश से सादिक आज़मी जी का पत्र । उन्होंने लिखा है.....

    काफी लम्बे अंतराल के बाद एक बार फिर हम आपकी सेवा में उपस्थित हैं आशा है हमारी मजबूरी को ध्यान मे रखते हुए हमें दुबारा सेवा का अवसर दिया जाएगा, इन दिनों क्लब के कई सदस्यों की विदेशों से स्वदेश वापसी हुई है और सभी लोगों की क्लब भवन में उपस्थिति और cri hindi के कार्यक्रम को सुनने एवं दूसरे लोगों में इससे परिचित कराने का क्रम जारी है, जो भविष्य में लगातार जारी रहेगा।

    दिनांक 6 सितम्बर की प्रातःकालीन सभा मे समाचारों के बाद अंजलि जी और पंकज जी द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम आपकी पसंद सुना जो काफी ज्ञानवर्धक रहा हिंदी गीतों के बीच रोचक जानकारी के क्रम में वर्तमान मे खेलों के प्रति विज्ञान के बढ़ते योगदान पर आपकी समीक्षा सटीक लगी। नित नए प्रयोग से खिलाड़ियों के प्रदर्शन में सुधार वाकई सराहनीय है, और हाइपरटेन्शन के शिकार फुटबॉल के खिलाड़ी किस कदर मौत के शिकार हो रहे हैं इसकी जानकारी काफी लाभदायक रहेगी, हर बार की भॉति मैं पंकज जी का आभार व्यक्त करता हूं वह हर बार नई खोज और प्रयोग से हमें अवगत कराते हैं और इस बार अंजलि जी ने भी बड़ी सुंदरता से नए एवं पुराने गीत का सही कॉम्बिनेशन तय्यार मन मोह लिया एक मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक प्रस्तुति पर दोनों को बधाई, धन्यवाद

    अनिल:सादिक आज़मी जी, काफी लम्बे अंतराल के बाद आपका पत्र पाकर हमें बहुत खुशी हुई। उम्मीद है कि आने वाले समय में आप हमसे यूं ही जुड़े रहेंगे। चलिए, अगला पत्र मेरे हाथ आया है पश्चिम बंगाल से विधान चंद्र सान्याल जी का। उन्होंने लिखा है.....

    सेतु संबंध का अगस्त-अक्टूबर, 2015 अंक प्राप्त हुआ। वाकई में "सेतु संबंध " सचमुच राष्ट्रॉ के बीच शांति और सौहार्द बढ़ाने का सेतु है। इसमें प्रकाशित " भारत -चीन सहयोग का अनंत आकाश " स्टोरी बहुत अच्छी लगी। इसके लिए आपको धन्यवाद। सेतु संबंध के इस अंक की बाकि सभी लेख जैसे" भारत और चीन के बीच कूटनीति का नया मॉडल " , "एशिया मेँ चीन की नई पहल " , "व्यापमं घोटाले से हिला पूरा देश " , "मैगी को महंगा पड़ा स्वास्थ्य से खिलावाड़ " , " पीएम के तौर पर मोदी का एक साल " , " चीन मेँ बढ़ता योग का जुनून " , "ड्रोन पत्रकारिता के युग में " , " आधुनिक तकनीक से संपन्न हुई चीनी काउंटी " , " कोटनिस का योगदान नहीं भूलेंगे चीनी " आदि लेख बहुत अच्छे लगे। लेकिन यह श्रोता वाटिका की तरह नहीं है। क्योंकि सेतु संबंध में सी आर आई हिन्दी सेवा के श्रोताओं को स्थान नहीं दिया गया है। कम से कम श्रोता और पाठकों के सुझाव और टिप्पणी प्रकाशित नहीं की जा रही। इस पर ध्यान देने की अपील पहले भी की गई, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। साथ ही एक अनुरोध करता हूँ आप हमें कम से कम पांच कॉपी सेतु संबंध भेजने की कष्ट करें। धन्यवाद।

    207 देशों और क्षेत्रों के 1931 खिलाड़ियों को लेकर 2015 अन्तरराष्ट्रीय एथलेटिक्स चैपियनशिप राजधानी पेइचिँग के नेशनल स्टेडियम मेँ उद्घाटित हुई। यह खेल समारोह बहुत रोचक रहा। धन्यवाद।

    मीनू:आगे विधान चंद्र सान्याल जी ने लिखा है.....दिनांक 30 अगस्त को सण्डे की मस्ती कार्यक्रम में दूरबीन के बारे मेँ रोचक जानकारी अच्छी लगी । सुन्दर प्रस्तुति के लिए सण्डे की मस्ती टीम को बधाई।

    प्राचीन चाय घोड़ा मार्ग पर चीन-भारत व्यापार का नया केन्द्र खोलने के संवाद से मैं बहुत खुश हूँ। इतिहास में नाथुला दर्रे के जरिए चीन भारत व्यापारिक मार्ग प्राचीन चाय घोड़ा मार्ग का हिस्सा था। 6 जुलाई वर्ष 2006 में चीन और भारत ने नाथुला दर्रे सीमावर्ती व्यापारिक बंदरगाह को फिर से खोलने की घोषणा की। लेकिन दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के चलते 40 सालों तक बंद रहा यह रास्ता एक बार फिर खोला गया। आशा है कि इससे दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ेगा।

    पिछले 20 अगस्त की भारतीय तीर्थ यात्रियों का एक दल नाथुला दर्रे से भारत वापस लौटा। इससे पहले 22 जून को पहले बैच के भारतीय तीर्थयात्रियों ने नाथुला दर्रे से तिब्बत मेँ तीर्थयात्रा शुरू की। इस नए मार्ग से तीर्थयात्रा करने में 8 से 10 दिन कम समय लगता है। साथ ही साथ सुविधाजनक और सुरक्षित भी है। इस चीन सरकार और चीनी जनता को बहुत बहुत धन्यवाद।

    इसके अलावा, विधान चंद्र सान्याल ने रक्षा बंधन के मौके पर भी हमें पत्र भेजा है। उन्होंने लिखा है....रक्षा बंधन के मौके पर सभी को शुभकामनाएं। भारतीय संस्तृति में भाई-बहन का पवित्र रिश्ते बहनों के मानसम्मान की सुरक्षा और भाइयों के सुदीर्घ जीवन की मंगल कामना का पर्व है।

    अनिल:विधान चंद्र सान्याल जी, हमें पत्र भेजने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। चलिए आगे आप सुनेंगे राजीव शर्मा कोलसिया का मैसेज, लेकिन उन्होंने पत्र में अपनी जगह का उल्लेख नहीं किया है। उन्होंने लिखा है....

    सीआरआई हिंदी वेबसाइट लगातार और बेहतर तथा सुंदर बन रही है। मेरे दिन की शुरुआत इस वेबसाइट के साथ ही होती है। इस पर तिब्बत के संबंध में दिए गए चित्र मुझे बहुत पसंद हैं। मेरी ओेर से सीआरआई के सभी मित्रों को शुभकामनाएं।

    मीनू:राजीव शर्मा कोलसिया जी, हमें पत्र भेजने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आशा है कि भविष्य में आप लगातार हमारे साथ संपर्क करते हुए पत्र भेजते रहेंगे। चलिए अंत में आपको सुनाया जा रहा है पश्चिम बंगाल से हमारे मोनिटर रविशंकर बसु जी का पत्र। उन्होंने लिखा है......

    दिनांक 6 सितंबर,2015 रविवार को रात साढ़े नौ से साढ़े दस बजे तक शार्ट वेव 7395 किलोहर्ट्ज (kHz) पर आपका रेडियो प्रोग्राम सुना। पंकज श्रीवास्तव जी द्वारा पेश किये गए दुनिया भर के ताज़ा समाचार सुनने के बाद अखिल जी और लिली जी द्वारा पेश साप्ताहिक कार्यक्रम "सन्डे की मस्ती" प्रोग्राम बहुत ध्यान से सुना।

    प्रोग्राम की शुरुआत में मैडम श्याओ थांग जी ने "चीन में टैगोर दिल" शीर्षक किताब को लेकर एक ख़ास रिपोर्ट पेश की, इसे सुनकर मन बेहद प्रसन्न हो गया । इस रिपोर्ट में दूसरी "मेरे दिल में टैगोर " लेखन प्रतियोगिता संबंधी जानकारी अच्छी लगी। दक्षिण चीन के क्वांगतुंग प्रांत के शेनचेन विश्वविद्यालय के भारत अध्ययन केंद्र में "चीन में टैगोर का दिल" शीर्षक लेखन प्रतियोगिता का आयोजन सार्थक और सराहनीय है। आशा है कि इस आयोजन से चीनी विद्वानों, छात्रों ,साहित्य प्रेमियों और आम नागरिकों को महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर की विश्व बंधुत्व की भावना और उनके साहित्य को समझने का अवसर मिलेगा। यह कथन अक्षरसः सत्य है कि चीन और भारत के पुराने मैत्रीपूर्ण आवाजाही के इतिहास में रवीन्द्रनाथ टैगोर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

    अनिल:आगे बसु जी लिखते हैं.....हम सब जानते है कि रवीन्द्रनाथ टैगोर मूलतः बंगला के कवि हैं लेकिन वे भारत और पूरे हिंदुस्तान की एक बड़ी सांस्कृतिक हस्ती हैं। उनकी प्रतिभा अद्भुत रूप है। वे देश के महान कवि,कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार, चित्रकार ,दर्शनशास्त्री और विचारक रहे हैं। टैगोर को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। उनके साहित्य और व्यक्तित्व में अद्भुत साम्य है। वर्ष 1913 में उनकी कविताओं की पुस्तक "गीतांजलि" के लिए वे नोबेल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित पहले भारतीय तथा प्रथम एशियाई व्यक्ति थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर के विचार व उनकी रचनाओं ने आधुनिक साहित्य पर भारी प्रभाव डाला है। भारत के एक अभूतपूर्व साहित्यकार,विचारक होने के नाते उनकी रचनाएं सन 1915 में चीन में गयी, जिसने उस समय चीन के नयी संस्कृति आन्दोलन में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी और चीन के बहुत से आधुनिक लेखकों की रचनाओं में उनकी विलक्षण रचनाओं ने भारी प्रभाव छोड़ा था। चीन में रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाओं का अनुवाद करने वाले पहले सज्जन, चीन के वरिष्ठ बुद्धिजीवी छन तू श्यो ने रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविता गीतांजलि की चार कविताओं को चीनी में अनुवाद किया था और 1915 में खुद अपनी संपादित पत्रिका "नये युवा" के 10वें संस्करण में इन कविताओं को प्रकाशित भी किया। तब से चीनी पाठकों में इस महान साहित्यकार रवीन्द्रनाथ टैगोर की पहचान बनी, उनकी अनेक रचनाएं बाद में चीनी में अनुवाद होने लगी और चीन के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। चीन के जाने माने कवि व लेखक को मो रो, पिन सिंग और श्वी ची मों आदि साहित्यकारों की रचनाओं में रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाओं ने अपना गहरा असर छोड़ा है।

    रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सन् 1924 में चीन की यात्रा की थी और एक मान्यता प्राप्त शिक्षक होने के नाते उन्हें चीन की शिक्षा प्रणाली बहुत पसंद आई थी और उन्होंने विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन की स्थापना करने के लिए इस शिक्षा प्रणाली की कई बातों को भी ग्रहण किया था। शिक्षा के क्षेत्र में गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की साहित्यिक और संगीत रचनाएं और कार्य-गतिविधियां चीनी शोधकर्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। अपनी 50 दिन की चीन यात्रा में उन्होने चीन और भारत के संबंध का एक नया अध्याय खोला , दोनों देशों की हजार साल पुरानी मित्रता में नयी जीवन शक्ति का प्रसार किया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने हांगचओ, नानचिंग, पेइचिंग और हानखओं आदि शहरों में चीन के अनेक जाने माने विद्वान, लेखक, साहित्यकार व छात्रों से भी मुलाकात की । पेइचिंग विश्वविद्यालय के पूर्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर चांग क्वांग लिंग का मानना है कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर न केवल चीन के पाठकों में एक लोकप्रिय विदेशी लेखक ही नहीं हैं बल्कि चीनी जनता के घनिष्ठ मित्र भी हैं।

    मीनू:आगे बसु जी ने लिखा है.....रवीन्द्रनाथ ने दो-दो विश्वयुद्धों से उत्पन्न त्रासदी को महसूस किया। युद्ध का दौर उनके लिए सर्वाधिक पीड़ादायी था। वे युद्ध के खिलाफ किसी राजनीतिक नफे-नुक्सान की गणना करके नहीं थे, बल्कि युद्ध को वे मानव-संस्कृति के विनाशक के तौर पर देखते थे।1937 में जापानी साम्राज्यवाद ने चीन के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर फिर एक बार चीन के पक्ष में खड़े हुए और अपनी कविताओं व रचनाओं से उन्होंने जापानी साम्राज्यवाद की कड़ी निन्दा की और चीन के न्यायपूर्ण संघर्ष के प्रति समर्थन व्यक्त किया।उन्होने अपने चीनी दोस्तों से कहा कि मुझे विश्वास है कि आप जरूर विजय होगे। रवीन्द्रनाथ की कविता में साम्राज्यवाद का सबसे क्रूर और स्पष्ट चेहरा नजर आता है।

    "वह लड़ाई ईश्वर के खिलाफ लड़ाई है,जिसमें भाई भाई को मारता है।

    जो धर्म के नाम पर दुश्मनी पालता है,वह भगवान को अर्घ्य से वंचित करता है।

    जिस अंधेरे में भाई-भाई को नहीं देख सकता,उस अंधेरे का अंधा तो स्वयं अपने को नहीं देखता।

    जिस उजाले में भाई भाई को देख सकता है,उसमें ही ईश्वर का हँसता हुआ चेहरा दिखाई पड़ सकता है।

    जब भाई के प्रेम में दिल भीग जाता है,तब अपने आप ईश्वर को प्रणाम करने के लिए हाथ जुड़ जाते हैं।"

    मेरे ख्याल से कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ टैगोर सचमुच एक बहुत महान कवि थे। न केवल उन्होंने बहुत प्रसिद्ध कविताएं व कहानियां रची हैं। बल्कि उन्होंने चीन-भारत की मित्रता को बढ़ाने में बड़ा योगदान भी दिया है। उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि चीन व भारत की जनता को मिल-जुलकर सहयोग करना चाहिए। यह दोनों देशों के लिये लाभदायक होगा।उम्मीद है कि हम सब ही लोग " चीन -भारत मैत्री पुल के निर्माता " रवीन्द्रनाथ टैगोर की इच्छा पूरी करने के लिये पूरी कोशिश करेंगे।

    अनिल:अंत में बसु जी ने लिखा है....आज प्रोग्राम सुनकर पता चला कि चीन के एक चिड़ियाघर में एक सफ़ेद अमरीकी पेलिकन की टूटे हुए चोंच को चीनी जीवविज्ञानियों ने 3डी-प्रिंटर की मदद से ठीक कर दिया जो काबिल-ए-तारिफ है। आज आपने एक ऑस्ट्रेलियाई लड़की के बारे में हमें बताई। सुना है कि वह लड़की केलों की शौकीन बन गई। अपनी फिटनेस को बनाये रखने के लिए यह लड़की रोज 51 केले खा जाती है। हे भगवान ! लोग शौक को पूरा करने के लिए क्या से क्या कर बैठते है पता नहीं।

    आज आपने हमें एक सच्चे प्रेमी की कहानी सुनाई जो वाकई दिल को छू जाने वाली लगी। दस साल पहले गरीब कह कर जिस प्रेमी को प्रेमिका ने ठुकराया, 10 साल बाद उस लड़की को जब पता चला कि उनका पति उस लड़के का नौकर है तब लड़की के होश उड़ गए। अपनी प्रेमिका को पाने के लिए उस लड़के ने आज तक शादी नहीं की है। इश्क की ये दास्तां मुझे फिल्म स्टोरी जैसा लगी। "ओ साथी रे कभी बंधन जुड़ा लिया कभी दामन छुड़ा लिया/ कैसा सिला दिया ये वफ़ा का कैसा सिला दिया/ ओ साथी रे/ तेरे वादे वो इरादे/ओ साथी रे/सब कुछ भुला दिया ये वफ़ा का कैसा सिला दिया।"

    आज आपने हमें पश्चिमी अफ्रीकी देश बेनिन में रहने वाली फॉन जनजाति की एक अजीबोगरीब परंपरा के बारे में बताया। सुना है कि वहां जुड़वां बच्चों की मौत के बाद उनकी पुतले बनाकर परवरिश की जाती है।

    आज अखिल जी द्वारा पेश प्रेरक कहानी "बदलाव" मुझे बहुत शिक्षाप्रद लगी। इस प्रेरक कहानी से यह सीख हमें मिलती है कि दुनिया बदलने से पहले हमें खुद को बदलना होगा साथ ही हमारे नेगेटिव मनोभाव को बदलना होगा। इसके साथ महाभारत धारावाहिक की भगवान श्री कृष्ण की महत्वपूर्ण वाणी मुझे काफी प्रेरणात्मक लगी। आज के जोक्स मुझे थोड़ा मामूली लगे। धन्यवाद।

    मीनू:अब सुनिए हमारे श्रोता  सुब्रत कुमार के साथ हुई बातचीत।

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल पांडे और मीनू को आज्ञा दीजिए, नमस्कार

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