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    हारपीन में स्वादिष्ट रूसी भोजन का मजा
    2015-08-25 16:19:14 cri

    जैसा कि आप जानते ही हैं कि हारपिन शहर न सिर्फ पिछले सौ से अधिक वर्षों में अपनी विविधतापूर्ण विदेशी विशेषताओं के कारण बहुत नामी रहा है , बल्कि पिछले बीसेक वर्षों में सुधार व खुले द्वार की नीति लागू किये जाने के बाद इस में जमीन-आसमान का भारी परिवर्तन भी आ गया है । इधर के कुछ वर्षों में हारपीन शहर ने अपनी विदेशी विशेषताओं में और चार चांद लगाने के लिये भारत-सड़क , कोरिया-सड़क , रूसी-सड़क , हांगकांग-सड़क व मकाओ-सड़क जैसे रौनकदार बाजारों का निर्माण भी कर लिया है , जिस से देशी-विदेशी पर्यटक और अधिक आकृष्ट हो सकें । गत वर्ष में हम इसी चीन का भ्रमण कार्यक्रम में हारपीन शहर की भारत-सड़क , कोरिया-सड़क और अन्य दिलचस्प जानकारियों के बारे में कई रिपोर्टे भी पेश कर चुके हैं । पर आज  हम आप को इस शहर की एक अलग पहचान दिखाने ले चलते हैं ।

    सौ वर्षों से पहले चीन की घरेलु और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति के कारण हजारों लाखों रूसी, युरोपीय व एशियाई महाद्वीपों को पार कर वोल्गा-नदी से होकर सुंगह्वा नदी-घाटी में स्थित हारपीन शहर में आ बसे थे। सौ वर्षों के बाद आज इस प्रसिद्ध बर्फीले शहर हारपीन में सड़कों के दोनों किनारों पर रूसी वास्तु शैली में निर्मित भवन ही देखने को नहीं मिलते , अपितु अनगिनत रूसी ढ़ंग के रेस्त्रांओं ने भी इस शहर में अपना विशेष स्थान बना रखा है । 

    ये दोनों रेस्त्रां हारपीन शहर के केंद्र में मुख्य सड़क के किनारे पर स्थित हैं । जैसा कि आप जानते हैं कि मुख्य सड़क हारपीन शहर की सब से प्रमुख रौनकदार वाणिज्य सड़क है और वह गत शताब्दी के बीस वाले दशक में रूसियों द्वारा बनाई गयी थी । 1925 में निर्मित ह्वा मई पश्चिमी रेस्त्रां उक्त दो रेस्त्रांओं में से एक माना जाता है । यह रेस्त्रां हारपीन शहर में रूसी शैली का सब से प्राचीन रेस्त्रां ही नहीं , बल्कि वह इस शहर के रूसी शैली वाले सभी रेस्त्रांओं का गर्व भी है । क्योंकि तकरीबन तमाम हारपीन वासी इस रेस्त्रां में रूसी व्यंजन चख चुके हैं ।

    एक दिन हमारे सम्वाददाता ने ह्वामई रेस्त्रां में कदम रखते ही देखा कि एक सफेद बालों वाले बुजुर्ग ने बड़ी नम्रता से उन की अगवानी की । इस बुजुर्ग का नाम है वांग वन ली ,इस वर्ष उन की उम्र 75 साल की हो गयी है और उन्हें इस रेस्त्रां में काम करते हुए चालीस साल हो गये हैं । इसलिये इस रेस्त्रां के सभी सेवक आदरभाव से उन्हें दादा कहकर पुकारते हैं । वे अक्सर बड़े मजे ले कर ग्राहकों को इस रेस्त्रां की दिलचस्प कहानी सुनाते हैं । उन का कहना है

    ह्वामई पश्चिमी रेस्त्रां में बने बनाये स्वादिष्ट रूसी व्यंजन अलग ढंग के हैं और वे चीन में बेमिसाल माने जाते हैं क्योंकि एक रूसी यहूदी ने 1925 में यह रेस्त्रां स्थापित किया था।

    बुजुर्ग वांग ने आगे कहा कि ह्वामई पश्चिमी रेस्त्रां का पुराना नाम था मार्क चाय खाद्य पदार्थ दुकान । इस रेस्त्रां का संस्थापक त्सुकेर्मान था । बाद में क्रमशः रूसियों , जर्मनों , पोलिशों और चीनियों ने इस रेस्त्रां का संचालन किया । आज तक इस रेस्त्रां में एक पुराने रूसी शैली के रेस्त्रां की बहुत सी पुरानी परम्पराएं बनी हुई हैं । उदाहरण के लिये ग्राहकों की अगवानी के लिये गेट के पास एक बुजुर्ग को खड़ा करना भी उन में से एक है । श्री वांग वन ली ने कहा

    डिपार्टमेंट स्टोरों और होटलों का संचालन करने की रूसी परम्परा यह है कि वे ग्राहकों के प्रति स्नेहपूर्ण बर्ताव करने के लिये लॉबी हाल में एक बुजुर्ग को खड़ा किया जाता है। वास्तव में बहुस से ग्राहकों ने मुझे देखकर कहा है कि वे मुझ जैसे बुजुर्ग को देखकर काफी सुरक्षित महसूस करने लगते हैं , ऐसा जान पडता है कि मानो वे घर वापस लौटकर अपने परिजनों के साथ गपशप मार रहे हों ।

    ह्वामई पश्चिमी रेस्त्रां में जो व्यंजन तैयार किये जाते हैं , वे रूसी व्यंजनों के हू ब हू स्वाद की बजाए चीनियों के पसंदीदा स्वाद पर आधारित हैं । ऐसे व्यंजनों का स्वाद काफी फीका है और वे चीन में निर्मित रूसी व्यंजन के नाम से जाने जाते हैं । इस रेस्त्रां के रसोइये ने रूस की परम्परागत पाक-कला के अनुसार जो भुना हुआ समुद्री ककड़ी तैयार की है , वह बहुत स्वाद ही नहीं, मुलामय भी है , देशी-विदेशी ग्राहक उसे खाना बहुत पसंद करते हैं । इस के अतिरिक्त इस रेस्त्रां में तैयार लाल-सब्जी सूप और बर्तन झींगा मछली तो ग्राहकों को बरबस लुभा देते हैं । एक जापानी ग्राहक ने इस रेस्त्रां में खाना खाने के बाद अपना अनुभव बताते हुए कहा

    यहां की रूसी तरकारी बहुत स्वादिष्ट है । मुझे यहां का सूप और सलाद बहुत पसंद है । इतना ही नहीं , यहां के बर्तन झींगा मछली खाने में भी बड़ा मजा आया। इस रेस्त्रां का वातावरण भी बड़ा अच्छा है, 20 वीं शताब्दी की शुरूआत की शैली से युक्त, इस में हर जगह रूसी विशेषता नजर आती है ।

    ह्वामई रेस्त्रां से बाहर निकलकर मुख्य सड़क के उत्तर की ओर आगे चलें , तो सड़क के पूर्वी मोड़ पर एक दुमंजिला इमारत दिखाई पड़ती है । अब शायद किसी भी व्यक्ति को पता नहीं है कि यह पुरानी इमारत पहले हारपीन शहर के सब से रौनकदार डिपार्टमेंट स्टोर के नाम से जानी जाती थी । इस डिपार्टमेंट स्टोर की स्थापना 1914 में हुई थी । अब इस इमारत की ऊपरी मंजिल पर एक पुस्तकालय है ,जबकि नीचे लुशिया 1914 नामक रूसी शैली का रेस्त्रां है ।

    आलीशान व भव्यदार ह्वामई पश्चिमी रेस्त्रां की तुलना में यह रेस्त्रां किसी साधारण रूसी परिवार की बैठक मालूम पड़ती है । रेस्त्रां में सिर्फ सात आठ मेजें रखी हुई हैं , सामने दीवार पर एक पश्चिमी तेल चित्र लगा हुआ है , जिस में एक रूसी महिला का चित्रण हुआ है । इस तेल चित्र के दोनों ओर चीन में बसे पुराने ढंग के रूसी परिवार के फोटो सुव्यवस्थित रूप से लगे हुए हैं । इस रेस्त्रां के मालिक का नाम हू हुंग है । वे एक इंजीनियर हैं और इस साल उन की उम्र पचास वर्ष से ऊपर हो गयी है । उन के पिता चीनी थे , जबकि माता रूसी थीं । उन्हों ने बीच में लगे उस तेल चित्र में चित्रित रूसी महिला की ओर इशारा करते हुए कहा कि वह रूसी महिला उन की मा की नानी थीं । इस रेस्त्रां में सुसज्जित दूसरे फोटो और सजावट हारपीन शहर में 90 साल तक रहने वाली एक रूसी महिला का योगदान है । श्री हू हुंग ने कहा कि इस रेस्त्रां को चलाने को उस के इरादे के पीछे इसे एक पारिवारिक स्मारक बनाना है , ताकि अतीत काल में हारपीन शहर में बसे दो लाख से अधिक रूसी प्रवासियों की स्मृति जिंदा रखी जा सके ।

    संयोग की बात है कि मुझे मकान मिल गया है , मुझे ये पुरानी इमारत बहुत पसंद है। इसलिये मैंने इसे रूपांतरित कर एक रेस्त्रां का रूप दिया है । मैं चाहता हूं कि कोई भी ग्राहक यहां खाना खाते समय अतीत काल में रूसी प्रवासियों की जीवन शैलियों को महसूस करे।

    ह्वामई पश्चिमी रेस्त्रां की तुलना में लुशिया रेस्त्रां में तैयार रूसी खाने का स्वाद और अधिक शुद्ध है । कहा जाता है कि यहां के व्यंजन परम्परागत रूसी पारिवारिक पाक-कला के अनुसार बनाए जाते हैं । जिन में एक ऐसा व्यंजन है जो सब से लोकप्रिय है और जिसे बनाने का तरीका भी बिलकुल अलग है । सब से पहले कीमा और प्याज व गाजर जैसी सब्जियों को एक साथ मिलाकर बड़ी बारीकी के साथ पकाया जाता है , फिर उस में चावल को मिलाकर सब्जी के पत्तों में ठीक से लपेटा जाता है , फिर हड्डियों के सूप में उबाला जाता है । अंत में उसे मसाले के साथ खाया जाता है । कहा जाता है कि कोई भी ग्राहक जब एक बार यह व्यंजन खाता है , तो वह अपनी जिन्दगी भर इस व्यंजन का स्वादिष्ट स्वाद भुला नहीं सकता ।

    लुशिया रेस्त्रां की नोट बुक पर किसी ग्राहक ने इस की तारीफ में लिखा है कि 1914 में निर्मित मकान , घंटियों से सुसज्जित दरवाजा , ऊंचा कमरा और बड़ी खिड़कियां देखकर ऐसा जान पड़ता है कि हम किसी बाककथा में प्रविष्ट हो गये हों ।

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