Web  hindi.cri.cn
    आपका पत्र मिला 2015-04-01
    2015-04-08 16:01:29 cri

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल पांडे का नमस्कार।

    मीनू:सभी श्रोताओं को मीनू का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिलः आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे। इसके बाद एक श्रोता के साथ हुई बातचीत के मुख्य अंश पेश किए जाएंगे।

    अनिल:चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं।पहला पत्र आया है केसिंगा उड़ीसा से हमारे मॉनिटर सुरेश अग्रवाल जी का। उन्होंने लिखा है......

    दिनांक 23 मार्च को वर्षाजल की चाहत में आकाश की ओर टकटकी लगाये चातक की तरह प्रतिदिन की भांति हमारा इन्तज़ार आज भी तब समाप्त हुआ, जब हम सभी मित्र-परिजनों ने शाम ठीक साढ़े छह बजे शॉर्टवेव 9450 किलोहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर सीआरआई हिन्दी का ताज़ा प्रसारण सुना। और अब मैं उस पर हम सभी की मिलीजुली प्रतिक्रिया लिये आपसे मुखातिब हूँ। उम्मीद है कि ज़ल्द ही हमारी बात आप तक पहुँच जायेगी। बहरहाल, देश-दुनिया के ताज़ा समाचारों के बाद पेश साप्ताहिक "चीन का भ्रमण" के तहत आज चीन की कोई तीन हज़ार साल पुरानी गौरवशाली उद्यानकला पर दी गई जानकारी लाज़वाब लगी। छिंग और हान राजवंशकाल से चली आ रही चीनी उद्यानिकी पूरे विश्व में अव्वल है और उद्यानों की संरचना स्थानीय भौगोलिक एवं जलवायु को ध्यान में रख कर की गई है। दक्षिण में यानसुन नदी तटीय क्षेत्र के उद्यानों को सब से सुन्दर समझा जाता है। कार्यक्रम में दी गई चीन के दस सब से सुन्दर उद्यानों की जानकारी पाकर इच्छा हुई कि तुरन्त वहां जाकर उनका अवलोकन किया जाये। कार्यक्रम सुन कर यह भी जाना कि चीन में उद्यानों का वर्गीकरण शाही उद्यान, निजी उद्यान और मठ-मन्दिर उद्यान के तौर पर किया गया है। धन्यवाद इस रोचक प्रस्तुति के लिये।

    कार्यक्रम "मैत्री की आवाज़" के अन्तर्गत सन 1909 में स्थापित पोद्दार एंटरप्राइजेस के श्री राजीव पोद्दार से ली गई लम्बी भेंटवार्ता काफी सारगर्भित लगी। कभी राजस्थान से मुम्बई पहुँच अपने कारोबार की शुरुआत करने वाले पोद्दार अब विश्व के पन्द्रह देशों में अपनी कम्पनी का विस्तार कर चुके हैं और वर्त्तमान में अमेरिका में क्रिकेट को लोकप्रिय बनाने की क़वायद में मशगूल हैं। चीन-भारत के बीच वाणिज्यिक सहयोग की सम्भावनाओं पर उनके विचार काफी आशावादी लगे। उनकी हर बात में गहरा अनुभव झलक रहा था। धन्यवाद एक अच्छी भेंट के लिये।

    श्रृंखला "पश्चिम की तीर्थयात्रा" में आज भोज की पूरी सामग्री अकेले ही चट कर गया और फिर भी उसका पेट नहीं भरा। बाद में पता चला कि उक्त भोज का आयोजन मृत्यु प्रस्तुति भोज के रूप में किया गया था, इस बारे में महामनीषी द्वारा पूछे जाने पर भोज आयोजित करने वाले वृध्दों ने पूरी कहानी बयां की। धन्यवाद।

    मीनू:आगे सुरेश जी लिखते हैं.....

    दिनांक 25 मार्च को मुझे खेद है कि कुछ अपरिहार्य कारणों के आज अपनी त्वरित प्रतिक्रिया प्रेषित करने में कुछ विलम्ब हुआ है।मुझे ज्ञात नहीं कि रोज़ाना की मेरी यह क़वायद आपके कितने काम की है, परन्तु प्रतिदिन ऐसा कर मुझे बहुत आत्मसंतुष्टि प्राप्त होती है। बहरहाल, देश-दुनिया की अहम ख़बरों का ज़ायज़ा लेने के बाद हमने श्रोताओं की अपनी चौपाल "आपका पत्र मिला" के तहत कार्यक्रमों पर मिली बेशक़ीमती राय सुनने को मिलीं। श्रोताओं से बातचीत क्रम में सैदापुर, अमेठी (उत्तरप्रदेश) के श्रोता भाई अनिल कुमार द्विवेदी से मिल कर भारतीय जीवन बीमा की विभिन्न पॉलिसियों और उनके नवीनतम बदलाओं पर महती जानकारी हासिल हुई। अमेठी के राजनैतिक परिदृश्य और गांधी परिवार के प्रभाव पर भी अच्छी जानकारी प्राप्त हुई। वास्तव में, जहाँ रोज़गार एक बड़ी समस्या हो, वहां आप जितनी सड़कें, ट्रेनें और विश्वविद्यालय क्यों न बनावायें, आम लोगों के जीवन में उन्नति सम्भव नहीं। धन्यवाद यह बातचीत सुनवाने का।

    पत्रोत्तर के बाद तिब्बत में दस लाख भूदासों के मुक्तिदिवस पर पेश रिपोर्ट हृदयस्पर्शी लगी। विश्वास नहीं होता कि आज से महज़ 56 साल पहले तक तिब्बत में हालात ऐसे थे कि लोगों का भाग्य का निर्धारण जागीरदार, कुलीन और धर्म से जुड़े लोग किया करते थे। दासों को उपहार में दिया जाता था और उनका शारीरिक-मानसिक उत्पीड़न किया जाता था। भगवान न करें कि दुनिया कहीं भी इन्सानों पर इतना अत्याचार फिर कभी हो। हम अपने तिब्बती भाई-बहनों की खुशहाली और उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं । धन्यवाद।

    अनिल:अगला आया है पश्चिम बंगाल से रविशंकर बसु जी का। उन्हें इस साल यानी वर्ष 2015 में हमारा दूसरा मॉनिटर नियुक्त किया गया है। सबसे पहले हम मॉनिटर बनने पर बसु जी को बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में वे मॉनिटर का काम अच्छी तरह से संभालेंगे। मुझे विश्वास है कि हमारे दो मॉनिटर सुरेश अग्रवाल और रविशंकर बसु की मदद से भविष्य में सीआरआई और श्रोताओं के बीच संपर्क एवं आदान-प्रदान और घनिष्ट होगा। अच्छा, अब सुनते हैं बसु का पत्र।

    सादर नमस्कार।हर दिन की तरह 27 मार्च,2015 शुक्रवार को रात साढ़े नौ बजे मैंने आपका रेडियो प्रोग्राम सुना। आज पंकज श्रीवास्तव जी द्वारा पेश दुनिया भर के ताज़ा अंतर्राष्ट्रीय समाचारों की प्रस्तुति के बाद श्याओ थांग जी द्वारा पेश किये गए साप्ताहिक "चीन का तिब्बत" प्रोग्राम बहुत ध्यान से सुना। यह मेरा पसंदीदा प्रोग्राम है। आज "चीन का तिब्बत" सेगमेंट में पहली रिपोर्ट में वेइतुंग जी द्वारा पेश तिब्बत में दस लाख भूदासों की मुक्ति दिवस के बारे में एक खास रिपोर्ट सुनी जो अत्यन्त महत्वपूर्ण लगी। इस रिपोर्ट में आपने हमें वर्ष 1949 में चीन लोक गणराज्य की स्थापना से वर्ष 1965 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना के बारे में रूबरू करवाया। इसे सुनकर मुझे चीन का तिब्बत के बारे में ढेर सारी जानकारी मिली। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि इस रिपोर्ट की टेक्स्ट स्क्रिप्ट वेब साईट पर डालेंगे तो ज्यादातर श्रोता इसे देख पायेंगे और चीन के तिब्बत के बारे में ज्ञान प्राप्त करेंगे। मैं यहां पर उल्लेख करना चाहूंगा कि 56 साल पूर्व 28 मार्च 1959 को तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार किए गए थे। इससे तिब्बत में सामंती भू-दास व्यवस्था का अंत हुआ और दस लाख दलित भू-दासों को मुक्ति मिली थी। भूदास व्यवस्था के शिकंजे से छुटकारा पाकर नये समाज में खुद के मालिक बने और कुछ वर्षों बाद यानी 1965 के सितंबर में तिब्बत की औपचारिक स्थापना की गयी। पुराने तिब्बत में वे भू-स्वामी की सेवा करते थे।उस समय भू-दासों का जीवन बिलकुल पशु की तरह था। लेकिन लोकतांत्रिक सुधार के बाद वर्ष 1961 में तिब्बत के विभिन्न स्थलों में आम चुनाव आयोजित शुरू हुए, भूदास और गुलाम पहली बार देश के मालिक बनकर जनवादी अधिकारों का उपभोग करने लगे । सुधार व खुलेपन के बाद तिब्बती कार्यकर्ताओं की संख्या व गुणवत्ता में इजाफा हु्आ है साथ ही तिब्बत में आधुनिक उद्योगों का तेज विकास होने लगा । 56 वर्षों में तिब्बत के अर्थतंत्र, संस्कृति, सामाजिक जीवन और बुनियादी संस्थापन निर्माण आदि क्षेत्रों में दिन दोगुना रात चौगुना परिवर्तन हुआ है। मैं तिब्बती जनता के खुशहाल समाज का निर्माण के लिए चीन की केंद्रीय सरकार के सर्वांगीर्ण प्रयास और आर्थिक सहायता की सराहना करता हूं।

    आज "दक्षिण एशिया फोकस" प्रोग्राम में पंकज जी ने भारत के न्यूज़ एक्सप्रेस टीवी के वरिष्ठ खेल पत्रकार अमित जी के साथ विश्व कप क्रिकेट के सेमी फ़ाइनल में भारत की ऑस्ट्रेलिया के हाथों करारी हार के 5 कारणों पर जो विस्तृत चर्चा की,वह मुझे बहुत अच्छी लगी। आज इस प्रोगाम के तीसरे हिस्से में अनिल जी ने पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस पर एक ऑडियो रिपोर्ट सुनाई। जो अच्छी लगी।

    मीनू:आगे बसु जी लिखते हैं.....

    28 मार्च,2015 को मैडम श्याओ थांग जी द्वारा पेश तिब्बत में दस लाख भूदासों की मुक्ति दिवस के बारे में रिपोर्टों की विशेष श्रृंखला सुनी। इस रिपोर्ट में तिब्बत में भारी परिवर्तन के बारे में दी गया प्रामाणिक जानकारी सूचनाप्रद है। तिब्बत के अध्यक्ष लोसांग ग्याल्ट्सेन के बयान के अनुसार वर्तमान में तिब्बती लोगों के सुखमय जीवन को बनाए रखने के लिए 70 प्रतिशत सरकारी वित्त का प्रयोग जन जीवन सुधारने में किया गया है। मेरे विचार से चीन की केंद्र सरकार तिब्बती नागरिकों को खुशहाल आधुनिक जीवन बिताने के लिए,समृद्धि के लिए आर्थिक सहयोग देना जारी रखेगी। आज 28 मार्च तिब्बती लोगों के दस लाख भू-दासों की मुक्ति दिवस मनाने का सातवां वर्ष है। इस शुभ अवसर पर मैं सभी तिब्बती लोगों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें देता हूं!

    इस के बाद साप्ताहिक कार्यक्रम "आपकी फरमाईश,आपकी पसंद" प्रोग्राम का नया अंक सुना। इस प्रोग्राम में आज 5 हिंदी फ़िल्मी गानों के आलावा तीन आश्चर्यजनक जानकारियां सुनने को मिलीं। चीन के क्वांगतुंग प्रांत में एक नदी में पाए जाने वाले एक सालामैंडर की खोज सुनकर अच्छा लगा। पंजाब के एक 6 वर्षीय बच्चे मुंह से 175 लोगों को सांपों का जहर चूसकर बचा चुका है। यह खबर तो बिलकुल भौंचक्का कर देने वाली है। सुना है कि 6 वर्षीय तरुण पहली कक्षा का छात्र है और वह सांपों का जहर चूसने के लिए मशहूर है। कुल मिलाकर आपका प्रोग्राम से मुझे बहुत कुछ जानकारियां मिली। आपको धन्यवाद।

    अनिल:चलिए, बिहार से हेमंत कुमार ने ई-मेल के जरिए हमें एक कविता भेजी है। आइए, सुनिये, "संयुक्त परिवार"शीर्षक यह कविता।

    वो पंगत में बैठ के निवालों का तोड़ना, वो अपनों की संगत में रिश्तों का जोडना,

    वो दादा की लाठी पकड़ गलियों में घूमना,वो दादी का बलैया लेना और माथे को चूमना,

    सोते वक्त दादी पुराने किस्से कहानी कहती थीं, आंख खुलते ही माँ की आरती सुनाई देती थी,

    इंसान खुद से दूर अब होता जा रहा है, वो संयुक्त परिवार का दौर अब खोता जा रहा है।

    माली अपने हाथ से हर बीज बोता था, घर ही अपने आप में पाठशाला होता था,

    संस्कार और संस्कृति रग रग में बसते थे, उस दौर में हम मुस्कुराते नहीं खुल कर हंसते थे।

    मनोरंजन के कई साधन आज हमारे पास है, पर ये निर्जीव है इनमें नहीं साँस है,

    फैशन के इस दौर में युवा वर्ग बह गया, राजस्थान से रिश्ता बस जात जडूले का रह गया।

    ऊँट आज की पीढ़ी को डायनासोर जैसा लगता है, आँख बंद कर वह बाजरे को चखता है।

    आज गरमी में एसी और जाड़े में हीटर है, और रिश्तों को मापने के लिये स्वार्थ का मीटर है।

    वो समृद्ध नहीं थे फिर भी दस दस को पालते थे, खुद ठिठुरते रहते और कम्बल बच्चों पर डालते थे।

    मंदिर में हाथ जोड़ तो रोज सर झुकाते हैं, पर माता-पिता के धोक खाने होली दीवाली जाते हैं।

    मैं आज की युवा पीढी को इक बात बताना चाहूँगा, उनके अंत:मन में एक दीप जलाना चाहूँगा

    ईश्वर ने जिसे जोड़ा है उसे तोड़ना ठीक नहीं, ये रिश्ते हमारी जागीर हैं ये कोई भीख नहीं।

    अपनों के बीच की दूरी अब सारी मिटा लो, रिश्तों की दरार अब भर लो उन्हें फिर से गले लगा लो।

    अपने आप से सारी उम्र नज़रें चुराओगे, अपनों के ना हुए तो किसी के ना हो पाओगे, सब कुछ भले ही मिल जाए, पर अपना अस्तित्व गँवाओगे

    बुजुर्गों की छत्र छाया में ही महफूज रह पाओगे।

    होली बेईमानी होगी दीपावली झूठी होगी, अगर पिता दुखी होगा और माँ रूठी होगी।

    1 2
    © China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
    16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040