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च्येन मू छुअ हाइपेइ तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर की हाइ येन काउंटी के कानजी ह कस्बे के तायू गांव में रहता है। वह छिंगहाई झील के पास प्रजवालस्की का गैजेल नाम के एक दुर्लभ जाति के हिरन की सुरक्षा के लिए स्वयंसेवा करता है और छिंगहाई प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र का एक सुरक्षाकर्मी भी है। रोज तड़के वह कैमरे ,टेलीस्कोप ,आपात बचाव बैग और प्लास लेकर प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र में गश्त लगाने के लिए चला जाता है।
प्रजवालस्की का गेजेल सुनहरा रंग वाला हिरन है। अब वे सिर्फ छिंगहाई झील के पूर्व ,पक्षी द्वीप और युएं च तीन क्षेत्रों में ही दिखाई देते हैं। प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार इन तीनों क्षेत्र में इस तरह के दुर्लभ हिरन सिर्फ 800 के आसपास ही बचे हैं। च्येन मू छुअ ने हमें बताया कि पिछली सदी के 60 के दशक से पहले ऐसे हिरन बहुत बड़ी संख्या में मौजूद थे। लेकिन 80 के दशक के बाद स्थानीय पशुपालन उद्योग के तेज विकास और छिंगहाई झील क्षेत्र में कृषि के विस्तार से हिरनों के रिहाईशी इलाके में कमी आयी। अब यहां बसे हिरन अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण संघ के द्वारा विश्व के अत्यंत दुर्लभ जीवों की सूची में शामिल हो चुके हैं।
सीआरआई के हिंदी विशेषज्ञ अनिल आज प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र के सुरक्षाकर्मी के जीवन के एहसास के लिए आज च्येन मू छुअ के घर जाएंगे।
जलवायु परिवर्तन के कारण स्थानीय घास मैदान रेगिस्तानीकरण का सामना कर रहा है। स्वच्छ जल वाली नदी धीरे धीरे सूखती जा रही है। इसलिए हर सुबह और रात को च्येन मू छुअ एक सरल ,लेकिन बहुत महत्वपूर्ण काम करते हैं यानी वह अपने घर के कुएं से मोटर के माध्यम से पानी निकालकर एक टैंक में भर देते हैं। हिरन तड़के और शाम के समय यहां आकर पानी पीते हैं।
पिछली सदी के नब्बे के दशक में छिंग हाई झील क्षेत्र में पारिवारिक ठेके पर घास मैदान बांटे गये थे। चरवाहों ने आम तौर पर बाड़ से अपने घर के घास मैदान घेर लिया है। यहां के हिरनों का कद छोटा है। वे 1.5 मीटर ऊंची बाड़ के ऊपर छलांग नहीं लगा सकते। उनके प्राकृतिक रिहाईशी क्षेत्र इस बाड़ से विभाजित हो गए हैं और उनका मुक्त चलन बाधित हुआ है। च्येन मू छुअ ने बताया कि कई हिरण कांटेदार तारों की बाड़ में फंसकर मर गये, जिसका दृश्य अत्यंत दुखद था। कुछ लाशें सड़ गयीं और कुछ लाशों को भेडिये ले गये। हिरन की सुरक्षा के लिए च्येन मू छुअ और उनके साथियों का एक महत्वपूर्ण काम ऊंची कांटेदार बाड़ ढूंढना है ताकि बाड़ के कांटे दूर किये जाएं और बाड़ की ऊँचाई को कम किया जा सके।
दोपहर को च्येन मू छुअ और अनिल दोपहर का खाना खाने लगे। गश्ती का ढायरा काफी बड़ा है, रास्ता भी बहुत दूर है और काम भी ज्यादा है, इसलिए च्येन मू छुअ खाना खाने के लिए घर वापस नहीं जा सकते। रोटी और फास्ट नूडल उनका लंच है। कभी कभी उनको सरल लंच खाने का समय भी नहीं मिलता। परंपरागत चीनी स्नैक खाने के साथ साथ च्येन मू छुअ अनिल को अपने काम के बारे में कुछ फोटो के द्वारा परिचय दे रहे हैं।
करीब बीस वर्षों में वर्षा और तेज़ हवा के दिनों में भी च्येन मू छुअ अपने काम पर डटे रहते हैं। च्येन मू छुअ जैसे लोगों के परीश्रम से स्थानीय दुर्लभ हिरन खुशी खुशी घास मैदान पर जीवन बिताते हैं।