sshk
|
दूर से ही नज़र आने वाले ये पगोडा सछ्वान प्रांत के मशहूर पांगथुओ मंदिर में स्थित हैं। इस समय विश्व में संपूर्ण प्रस्तर अभिलेख त्रिपिटक यहां पर सुरक्षित रखे गये हैं। पांगथुओ मंदिर सछ्वान प्रांत के अबा तिब्बती और छ्यांग जाति स्वायत्त प्रिफेक्चर के दक्षिण-पश्चिम में रांगथांग काउंटी में स्थित है। तिब्बती भाषा में पांगथुओ मंदिर का अर्थ है घास के मैदान में बना मंदिर। मंदिर के पीछे सुंदर पहाड़ चेनबाला है। तातू नदी की सहायक नदी बहती हुई पश्चिम से पूर्व की ओर इस मंदिर के पास से होकर गुजरती है।
पांगथुओ मंदिर का निर्माण युएं राजवंश में हुआ था, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के निंगमा संप्रदाय का है। पांगथुओ मंदिर में इस असाधारण, अदभुत और शुभ सफेद रंग के पगोडा की ऊंचाई 42 मीटर है। इस पगोडा का आधार वर्गाकार है और पगोडा का मध्य भाग उल्टे कटोरे जैसा वृत्ताकार है। यह एकदम परंपरागत तिब्बती बौद्ध धर्म का पगोडा है। पगोडा पर बनाई गई नीली आंखें बुद्ध की आंखों का प्रतीक हैं।
इस छोटे मार्ग से पगोडा के पास आकर बहुत ही प्राचीन शिलाभिलेख नजर आते हैं। तिब्बती भाषा के ये शिलाभिलेख पुराने समय में धातु उपकरणों से शिला-पट्ट के दोनों पहलुओं में तराशे गये थे। तराशे जाने के बाद ये अभिलेख सूत्रों के वर्ग और पृष्ट संख्या के अनुसार रखे गये हैं, जिससे इसके चारों तरफ एक चौकोर ऊंची दीवार बन गयी है। इसी कारण इसे प्रस्तर सूत्र दीवार भी कहा जाता है। तिब्बती लोग इसलिए प्रस्तर सूत्र बनाते थे क्योंकि तिब्बतियों के विचार में पत्थर पानी और आग से नष्ट नहीं होता, जो शाश्वत काल तक बना रहेगा। बौद्धिक सूत्र पत्थरों पर तराशे जाने के बाद बौद्ध धर्म प्रकृति के साथ सदा के लिए जीवित रहेगा।
पांगथुओ मंदिर के प्रस्तर अभिलेख त्रिपिटक को केनजुर और टंगजुर दो महासूत्रों में बांटा गया है, जिसमें 5 लाख से अधिक शिला-पट्ट हैं। कहा जाता है कि 60 से अधिक शिल्पकारों ने इस अभिलेख को बनाने में 9 वर्ष का समय लगाया था ,जिसका खर्च प्राचीन समय में प्रचलित 10 हजार चांदी की मुद्राएं थीं। पूरे सूत्र की दीवार की ऊंचाई 9 मीटर, लंबाई 46 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है।
(आवाज :प्रबंधक ,क्या आप इस मंदिर के प्रबंधक हैं (सीआरआई संवाददाता), हां ,मैं प्रबंधक हूं ।उन अभिलेखों का इतिहास 500 से अधिक साल पुराना है ।शिलाभिलेख धरती के ऊपर नौ मीटर है और धरती के नीचे और तीन मीटर है ।ऊपर नौ मीटर ,नीचे तीन मीटर (सीआरआई संवाददाता) ,अब कोई भिक्षु यह सीखता है , पत्थर पर सूत्र तराशना आता है (सीआरआई संवाददाता) या सिर्फ ये पुराने समय के हैं और अब किसी को नहीं आता (सीआरआई संवाददाता) अब किसी के पास इसे बनाने का धैर्य नहीं है और किसी को ये कला अब नहीं आती है। मंदिर के प्रबंधक के साथ हुई बातचीत में हमें पता चला है कि तिब्बती परंपरा के अनुसार ये शिलाभिलेख मनमानी से नहीं बनाए जा सकते। पानी और हवा के कटाव से ये अभिलेख बचाना और पत्थर पर सूत्र तराशने की शिल्पकला संभालना अब एक कठिन समस्या है।
पांगथुओ मंदिर में मूल्यवान शिलाभिलेखों के अलावा 32 खूबसूरत सफेद पगोडा भी मौजदू हैं। पांगथुओ मंदिर तिब्बती क्षेत्रों में तीन बड़े पगोडा परिसरों में से एक है।
हर सुबह लोग पूजा अर्चना के लिए यहां आते हैं। वे चक्र घुमाते हैं और मंदिर की परिक्रमा करते हैं। पगडंडी पर नज़र आने वाले ये अनोखे पत्थर उनके लिए गिनती का सामान हैं, जो परिक्रमा की संख्या अंकित करता है। सबसे नीचे के पत्थर का मतलब 1 है , जबकि सबसे ऊपर वाले बड़े पत्थर का मतलब 100 है।
पांगतुओ मंदिर, पडोगा और चक्र घुमाने का गलियारा स्थानीय लोगों के लिए न सिर्फ पूजा और प्रार्थना करने का स्थान है ,बल्कि सामाजिक आवाजाही का अच्छा स्थल भी है।