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    तिब्बती बौद्ध धर्म के जीवित बुद्ध का स्वप्न
    2014-12-07 09:16:02 cri

    तिब्बती लोग तिब्बती बौद्ध धर्म में विश्वास करते हैं। कई लोगों की नज़र में तिब्बती बौद्ध धर्म के भिक्षु दीन दुनिया पर ध्यान नहीं देते और मात्र संन्यासी जीवन व्यतीत करते हैं। लेकिन छिंगहाई प्रांत में जीवित बुद्ध कङचांग निमा एक ऐसे संन्यासी हैं, जो दीन दुनिया में रहते हुए संन्यासी जीवन का पालन करते हैं। तो आज के इस कार्यक्रम में हम आप को ले चलेंगे इस जीवित बुद्ध के पास, नज़दीक से देखेंगे उनके जीवन को और महसूस करेंगे उनके विचारों को।

    छिंगहाई प्रांत के हाईनान तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर की कोंगहे कांउटी में छ्यापोछ्या नाम का एक छोटा सा पहाड़ी कस्बा स्थित है। पर्वत की तलहटी में पहाड़ी रास्ते से कदम दर कदम चढ़कर एक दो मंजिले भवन दिखाई देने लगे। तिब्बती शैली के इस भवन के आसपास और पीछे पर्वत पर रंगबिरंगी सूत्र झंडियां हवा में फहरा रही हैं।

    सूत्र पढ़ने की आवाज़ सुनाई दे रही है। भवन के मालिक कङचांग निमा कमरे में शांत और लगन से सूत्र पढ़ रहे हैं। इसके बाद उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि यह सूत्र लोगों की सुरक्षा और शांति की प्रार्थना के लिये है। सूत्र पढ़ना उनका रोजमर्रा का काम है।

    कङचांग निमा तिब्बती बौद्ध धर्म के न्यिंगमा संप्रदाय के धर्म-राजा तुनचू के तीसरी पीढ़ी के अवतार हैं। तिब्बती भाषा में "न्यिंगमा"का अर्थ"प्राचीन"होता है। तिब्बती बौद्ध धर्म में गेलुग संप्रदाय, साग्या संप्रदाय, गेग्यु संप्रदाय और न्यिंगमा संप्रदाय शामिल हैं। जिनमें न्यिंगमा संप्रदाय का इतिहास सबसे पुराना है। छिंगहाई प्रांत के तिब्बती बहुल क्षेत्रों में 135 न्यिंगमा संप्रदाय के मठ मौजूद हैं।

    जीवित बुद्ध कङचांग निमा ने कहा कि वे हर दिन घर में संन्यास लेते हैं। कभी कभार स्थानीय श्रद्धालुओं को सूत्र पढ़ाते हैं और साल में मठ में कई बौद्ध सभाओं की अध्यक्षता भी करते हैं। जीवित बुद्ध ने कहा:

    "तिब्बती बौद्ध धर्म में चाहे जीवित बुद्ध हो, या आम भिक्षु। हम सब विश्व के लोगों की सेवा करने के लिये संन्यासी जीवन व्यतीत करते हैं। क्षितिगर्भ बोधिसत्व के सूत्र में कहा गया है कि'नरक को खाली करने के बाद बुद्ध बन जाएगा'। मुझे लगता है कि नरक में पीड़ित सभी लोगों को बचाने के बाद ही मैं बुद्ध बन जाऊंगा। दीन दुनिया के लोगों के दर्द हम ले लेते हैं। यह बौद्ध दलायु है।"

    जीवित बुद्ध जो कहते हैं, वह वैसा करते भी हैं। वर्ष 2010 में छिंगहाई प्रांत के यूशू तिब्बती प्रिफेक्चर में जबरदस्त भूकंप आया था। जीवित बुद्ध कङचांग निमा भूकंप ग्रस्त क्षेत्र में गए और भूकंप में बचे हुए व्यक्तियों के लिये बौद्ध सूत्र पढ़ते और प्रार्थना करते थे। उन्होंने कहा कि वे आमतौर पर श्रद्धालुओं की मानसिक कठिनाईयों को दूर करने में सहायता देते हैं। उनका कहना है:

    "आज समाज बहुत प्रगतिशील है। लेकिन लोगों के मन में किसी न किसी तरह का दवाब मौजूद रहता है। वे आम तौर पर हम जैसे जीवित बुद्ध और भिक्षु के पास सहायता मांगने आते हैं। तो हम उन्हें समझाते हैं।"

    जीवित बुद्ध कङचांग निमा का जन्म 1978 में हुआ था। जन्म लेने के पूर्व न्यिंगमा संप्रदाय के कुछ महाचार्यों ने उन्हें पहली पीढ़ी के जीवित बुद्ध का अवतार माना था। जब ये 6 वर्ष के थे तब उनके पिता, जो चिकित्सीय कार्य में लगे हुए थे, का देहांत हो गया। कङचांग निमा घर से मठ में भिक्षु बना और उन्होंने कुछ जीवित बुद्धों और बौद्ध महाचार्यों से धार्मिक सूत्र सीखे। वर्ष 1992 में वे कोंगहे कांउटी स्थित थांगकेमू कस्बे के पनखांग मठ में मठाधीश बने। वर्ष 2006 में छिंगहाई प्रांत के धार्मिक मामला ब्यूरो ने औपचारिक तौर पर उनके जीवित बुद्ध का स्थान माना और उन्हें जीवित बुद्ध प्रमाण-पत्र दिया।

    जीवित बुद्ध कङचांग निमा के साथ संक्षिप्त बातचीत करने के बाद हम उनके साथ घर से बाहर आए। रास्ते में जो लोग उनसे मिले, वे उन्हें नमस्कार कर उनका सम्मान करते हैं। गोद में अपने नन्हें बच्चे को लिए एक तिब्बती महिला ने जीवित बुद्ध से बातचीत करते हुए अपनी इच्छा व्यक्त की।

    महिला:क्या रात को आप घर में रहते हैं?

    जीवित बुद्ध:जी हां। क्या बात है?

    महिला:इन दिनों मेरे बच्चे की तबियत ठीक नहीं है। मैं आपसे उसके लिए सूत्र पढ़वाना चाहती हूँ।

    जीवित बुद्ध:ठीक है। रात को तुम घर आओ।

    युवा तिब्बती मां आभार व्यक्त करते हुए खुशी के साथ चली गई। इसके बाद एक गांववासी पीले रंग का एक रेशम का पट्टा हाथ में लेकर जीवित बुद्ध के सामने आया। जीवित बुद्ध सूत्र पढ़कर पट्टे को कांठ बनाया। उन्होंने परिचय देते हुए कहा कि इसे वज्र कांठ कहा जाता है, जिसे नए मकान के द्वार पर रखा जाता है। कहते हैं इस वज्र कांठ से घर में सुरक्षा की गारंटी दी जा सकती है।

    यह है जीवित बुद्ध के रोजमर्रा के जीवन का एक हिस्सा। यहां वे एक सम्मानित व्यक्ति हैं। रास्ते में उन्होंने तिब्बती दादी मां को आशीर्वाद दिया, दादी मां ने इन्हें सम्मान और श्रद्धा भाव से देखा। इसी वक्त हम महसूस कर सकते हैं कि तिब्बती बौद्ध धर्म तिब्बती लोगों के मन में कितना महान स्थान रखता है।

    जीवित बुद्ध के घर के नज़दीक कस्बे के पूर्वी पर्वत पर तिब्बती बौद्ध धर्म का एक रंगबिरंगा और शानदार वास्तु निर्माण खड़ा हुआ है। बताया गया है कि यह निर्माणाधीन वास्तु-निर्माण तिब्बती बौद्ध धर्म और तिब्बती परंपराओं से जुड़ा एक सांस्कृतिक केंद्र है। जिसका क्षेत्रफल 8700 वर्गमीटर है। इस केंद्र में बुद्ध की मुर्तियों के अलावा, तिब्बती बौद्ध धर्म का अनुसंधान विभाग, तिब्बती जाति का प्राचीन इतिहास संग्रहालय, तिब्बती बहुल क्षेत्रों में आधुनिक संस्कृति और जीवन प्रदर्शनी हॉल, तिब्बती बहुल क्षेत्रों में नर्सिंग होम और तिब्बती ऑपेरा मंडली जैसी संस्थाएं शामिल होंगी। ऐसे बड़े पैमाने वाली परियजोना बनाने की कल्पना जीवित बुद्ध कङचांग निमा ने की थी। उल्लेखनीय बात यह है कि इस परियोजना के निर्माण में कुल 1 करोड़ 40 लाख युआन की राशि जीवित बुद्ध द्वारा इक्ट्ठी की गयी है। इसके लिए उन्होंने पूर्वी चीन के नानचिंग शहर, दक्षिण-पश्चिमी चीन के सछ्वान प्रांत, दक्षिणी चीन के क्वांगतुंग प्रांत और तिब्बत स्वायत्त प्रदेश समेत विभिन्न तिब्बती बहुल क्षेत्रों का दौरा किया था।

    इस शानदान वास्तु निर्माण के सामने खड़े होकर जीवित बुद्ध कङचांग निमा ने अपने स्वप्न के बारे में बताते हुए कहा कि बौद्ध धर्म में दया भाव पर ज़ोर दिया जाता है। वे दीन दुनिया में लोगों के खुशहाल जीवन के लिए प्रयास करने को तैयार हैं।

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