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    चीन का तिब्बत
    2014-11-04 08:58:41 cri

     


    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल पांडे का नमस्कार।

    वनिता:सभी श्रोताओं को वनिता का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिलः आज के प्रोग्राम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे। इसके बाद एक श्रोता के साथ हुई बातचीत के मुख्य अंश पेश किए जाएंगे।

    दोस्तो, आज का पहला खत भेजा हैं एसबीएस वर्ल्ड श्रोता क्लब से एस बी शर्मा ने। लिखते हैं कि समुद्र की सतह से 4000 मीटर की औसत उचाई पर 12 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले छिडंहाई तिब्बत पठार पर स्थित तिब्बत स्वायत प्रदेश के विषय में चीन का तिब्बत कार्यक्रम में विस्तार से जानकारी देने के लिए आपका धन्यवाद। आपने तिब्बत के बारे में कई रोचक जानकारिया दी। साथ ही बताया की तिब्बत में 7000 मीटर से ऊंची 50 पर्वतचोटियां हैं और 8000 मीटर से ऊंची दस से अधिक चोटियां है तिब्बत में कुल मिलाकर 1500 छोटी-बड़ी झीलें बिखरी हुई हैं, जिनका क्षेत्रफल चीन की समस्त झीलों के कुल क्षेत्रफल का एक तिहाई है। समुद्र की सतह से 4000 मीटर उचाई पर तिब्बत के मछली का भण्डार कहे जाने वाला मशहूर याडंच्वोयुडं स्थित है। तिब्बत में सिर्फ अनोखे भूदृश्य ही नहीं बल्कि मूल्यवान प्राकृतिक संसाधनों की भरमार भी है। तिब्बत चीन के पांच बड़े चरागाहों में से एक माना जाता है। यह मांस, दूध, ऊन व चमड़े का मुख्य उत्पादन क्षेत्र

    है। तिब्बत में 4000 किस्मों के खनिज भंडार की निहित मात्रा दुनिया में

    पहले स्थान पर है। वहां समृद्ध प्राकृतिक ऊर्जा स्रोत भी मौजूद है। जल

    शक्ति की निहित मात्रा 20 करोड़ किलोवाट है और भूताप ऊर्जा की क्षमता चीन

    में प्रथम स्थान पर है, साथ ही सौर ऊर्जा व वायु क्षमता का स्रोत भी बहुत

    समृद्ध है।

    वनिता:वे आगे लिखते हैं कि तिब्बत स्वायत प्रदेश चीन की तिब्बती जाति के लोगों का एक मुख्य निवास स्थान है। तिब्बती लोग बौद्ध धर्म यानी लामाधर्म में विश्वास करते हैं। पूरे स्वायत प्रदेश में मंदिर ही मंदिर दिखाई पड़ते हैं। विश्वविख्यात पोताला महल ल्हासा के हुडंशान पहाड़ पर स्थित है। बाहर से इस शानदार महल की 13 मंजिलें दिखती हैं, पर वास्तव में अन्दर सिर्फ 9 मंजिलें हैं। 1000 कमरों के इस महल का कुल क्षेत्रफल 130000 वर्गमीटर है। महल में बड़ी मात्रा में मूल्यवान वस्तुएं सुरक्षित रखी हुई हैं। इनमें मिडं व छिडं राजवंशों के राजाओं द्वारा दलाई व पंचन लामा तथा अन्य दूसरे तिब्बती बौद्धों व अफसरों को प्रदान किए गए राजाज्ञा, आदेशपत्र, मुहरें, उपहार तथा धार्मिक पुस्तकें, बौद्ध मूर्तियां, वाद्ययंत्र व पूजा-पात्र आदि शामिल हैं। इस सुंदर प्रस्तुति के लिए आपका एक बार फिर धन्यवाद।

    अनिलः आज के प्रोग्राम में दूसरा पत्र हमें भेजा है आरा बिहार से राम कुमार नीरज ने। लिखते हैं कि दुनिया के बदलते घटनाक्रम में आपकी साइट पर लगी यह खबर बौद्ध धर्म चीनी संस्कृति के रक्त में बहता है बेहद दिलचस्प और मनोरंजक है। वैश्विक बौद्ध धर्म फैलोशिप का 27वां सम्मेलन 16 अक्टूबर को चीन के शानशी प्रांत की पाओची शहर के फ़ामन मंदिर में आयोजित इस सम्मलेन के माध्यम से चीन में बौद्ध धर्म की लोकप्रियता का अंदाजा मिल जाता है। यह रिपोर्ट इसलिय भी बेहद महत्वपूर्ण है कि बौद्ध धर्म से भी जयादा भारत और चीन के संबंधों का इतिहास है। बहुत पहले कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि "मानव सभ्यता के इतिहास की मुख्य समस्या है किसी अंधविश्वास , किसी मूढता के कारण मनुष्य-मनुष्य में विभेद हो जाना. मानव समाज का एक प्रमुख तत्व है। विश्व आज एक गाँव में बदल गया है परन्तु हमारी सोच दिन पर दिन संकुचित दायरे में स्थानीय होती जा रही है जिसका परिणाम क्षेत्रवाद या भाषायी संघर्ष के रूप में उभरा है. बौद्ध धर्म की अपनी विशेषतायें है। जो सदियों से दुनिया में भाईचारे और सद्भाव का निरंतर सन्देश दे रहा है.

    वनिता:दोस्तो, अगला खत भेजा है पश्चिम बंगाल से बिधान चंद्र सान्याल ने। वे लिखते हैं 13 अक्तूबर को चीन का भ्रमण कार्यक्रम के तहत चीनी वास्तुशिल्प की विशेष शैली व उसकी प्राचीन परम्परा के बारे मेँ विस्तृत जानकारी मिली जो मुझे बहुत अच्छा लगा । प्रतिवेदन से पता चला कि वास्तु निर्माण के आरंभिक दौर मेँ मनुष्य ने अधिकांशतः काष्ठ का प्रयोग किया । काष्ठ के बाद बास्तु निर्माण मेँ ईट पत्थरॉ का प्रचलन हुआ । विश्व के सबसे बड़े वास्तु आफाड़ शाही भबण , युडनिडं मंदिर मेँ निर्मित 137 मीटर ऊंची मीनार आग लगने से भस्म हुई । इडंश्येन काउन्टी मेँ निर्मित 67.3 मीटर ऊंचा काष्ठ पगोडा बिश्व की सबसे ऊंची व पुरानी काष्ठ इमारत है । पुननिर्माण की शैली आकर्षक बी नहीँ , आश्चर्य का विषय था, जैसे शाही निषिद्ध नगरी । प्राचीन वास्तु निर्माण शैली का इतना सुंदर परिचय देने के लिए श्याओयांग और सी आर आई हिन्दी सेवा की सभी को बहुत बहुत धन्यबाद ।

    अनिलः दोस्तो, नेक्स्ट लेटर हमें भेजा है, पश्चिम बंगाल से रविशंकर बसु ने। लिखते हैं कि मैडम रूपा जी द्वारा प्रस्तुत साप्ताहिक कार्यक्रम "चीन का भ्रमण" के माध्यम से चीन की राजधानी पेइचिंग के रौनकदार शहरी क्षेत्र में संरक्षित सबसे प्राचीन मठ "फा य्वान" के बारे में दी गई जानकारी काफ़ी रोचक और दिल को छूने वाली थी। मैं यहां पर हजार वर्ष पुराने फा य्वान मठ बारे में दो चार बात शेयर करना चाहता हूं। यह सच है कि चीन में मंदिर और मठ वास्तु कला इतिहास का मूक साक्ष्य होती है।यह उल्लेखनीय बात है कि फा य्वान मठ देखने में बड़ा भव्य और गांभीर्य होता है,साथ ही उसमें असाधारण प्राकृतिक सौंदर्य और गहन चेत भाव व्यक्त होता है।इसकी संरचना चतुर्कोण है। फा य्वान मठ दक्षिण पेइचिंग शहर के श्वान ऊ जिले में स्थित है। उसका कुल क्षेत्रफल 6 हजार सात सौ वर्गमीटर है और उस का निर्माण आज से एक हजार तीन सौ वर्ष से पहले थांग राजवंश के काल में हुआ था। इस मठ की समूची वास्तु शैली चीन की प्राचीन राजमहल की शैली से मिलती जुलती है।फा य्वान मठ की दयालु मंच नामक भवन में बेशुमार प्राचीन बुद्ध मूर्तियां और मूल्यवान नक्काशीदार कृतियां सुरक्षित हैं। इसके अलावा फा य्वान मठ के बोधिसत्व भवन में कांस्य से तैयार आधा मीटर ऊंची सहस्र हाथों व सहस्र आंखों वाली बोधिसत्व मूर्ति देखने में भी बहुत जीवंत है।इस मूर्ति की शिल्प कला तत्कालीन मिंग राजवंश काल व नेपाल की शिल्प कला का निचोड़ है। वहां बड़ी तादाद में मूल्यवान ऐतिहासिक अवशेष और प्राचीन धार्मिक सूत्र सुरक्षित हैं।मैं इस पुराने फा य्वान मठ को अपनी आंखों से देखना चाहता हूं।

    वनिता:अगला खत भेजा है केसिंगा ओड़िशा से सुरेश अग्रवाल ने। वे लिखते हैं साप्ताहिक "चीन का तिब्बत" के तहत सितम्बर के अन्त में तिब्बत की राजधानी ल्हासा में आयोजित पहले त्रिदिवसीय तिब्बत संस्कृति अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन मेले पर प्रस्तुत रिपोर्ट अत्यन्त सूचनाप्रद लगी। मेले में अन्य लोगों के अलावा नेपाली मन्त्री परमानन्द झा भी मौज़ूद थे। कार्यक्रम में बतलाया गया कि मेले में अन्य गतिविधियों के अलावा राजकुमारी वनछन पर भी एक नृत्यनाटक पेश किया गया। मैंने राजकुमारी वनछन के त्याग की कहानी सीआरआई पर अनेक बार सुनी है, इसलिये मैं उनको सदैव नमन करता हूँ। कार्यक्रम के अगले भाग में भाई पंकज श्रीवास्तव द्वारा तिब्बती मठों पर जानकारी दिये जाने के क्रम में आज सन 1416 में निर्मित गेलुग सम्प्रदाय के मशहूर ड्रेपुंग मठ के बारे में दी गई जानकारी इतनी आकर्षक लगी कि तुरन्त उसका अवलोकन करने की इच्छा हुई। ग्यारहवीं सदी से प्रारम्भ साल के छठे महीने की तीस तारीख़ को होने वाले श्वेतुन (दही त्यौहार) पर दी गई जानकारी बेहद ज्ञानवर्धक लगी। तिब्बत पर इतनी अहम जानकारी प्रदान कर हमें उसके और करीब लाने हेतु हार्दिक साधुवाद।

    अनिलः दोस्तो, अब पेश है उ॰प्र॰ से अनिल कुमार द्विवेदी का खत। वे लिखते हैं कि कैलाश सत्यार्थी और मलाला युसूफजई को मिला नोबेल पुरस्कार। कैलाश और मलाला जैसे सैकडोँ लोग हैँ जो पूरी कर्मठता से समाज सेवा मेँ लगे हुऐ हैँ उन लोगोँ को इस नोबेल पुरस्कार से भारी प्रेरणा व पहचान मिलेगी। दोनोँ विजेताओँ को मिला पुरस्कार उनके कार्य और मेहनत का उचित मूल्यांकन है। नोबेल पुरस्कार जीतने की दोनोँ को हार्दिक बधायी।

    वनिता:दोस्तो अनिल कुमार द्विवेदी जी ने हमें एक कविता भेजी, जिसका विषय इस प्रकार है--

    जब मैं छोटा था,

    शायद दुनिया

    बहुत बड़ी हुआ करती थी..

    मुझे याद है

    मेरे घर से "स्कूल" तक का

    वो रास्ता,

    क्या क्या

    नहीं था वहां,

    चाट के ठेले,

    जलेबी की दुकान,

    बर्फ के गोले

    सब कुछ,

    अब वहां

    "मोबाइल शॉप",

    "विडियो पार्लर" हैं,

    फिर भी

    सब सूना है..

    शायद

    अब दुनिया

    सिमट रही है...

    अनिलः

    जब मैं छोटा था,

    शायद

    शामें बहुत लम्बी

    हुआ करती थीं...

    मैं हाथ में

    पतंग की डोर पकड़े,

    घंटों उड़ाया करता था,

    वो लम्बी

    "साइकिल रेस",

    वो बचपन के खेल,

    वो

    हर शाम

    थक के चूर हो जाना,

    अब

    शाम नहीं होती,

    दिन ढलता है

    और

    सीधे रात हो जाती है.

    शायद

    वक्त सिमट रहा है..

    जब

    मैं छोटा था,

    शायद दोस्ती

    बहुत गहरी

    हुआ करती थी,

    दिन भर

    वो हुजूम बनाकर

    खेलना,

    वो

    दोस्तों के

    घर का खाना,

    वो

    लड़कियों की

    बातें,

    वो

    साथ रोना...

    अब भी

    मेरे कई दोस्त हैं,

    पर दोस्ती

    जाने कहाँ है,

    जब भी

    "ट्रैफिक सिग्नल"

    पर मिलते हैं

    "हाय" हो जाती है,

    और

    अपने अपने

    रास्ते चल देते हैं,

    होली,

    दीवाली,

    जन्मदिन,

    नए साल पर

    बस SMS आ जाते हैं,

    शायद

    अब रिश्ते

    बदल रहें हैं..

    .

    जब

    मैं छोटा था,

    तब खेल भी

    अजीब हुआ करते थे,

    छुपन छुपाई,

    लंगडी टांग,

    पोषम पा,

    टिप्पी टीपी टाप.

    अब

    इण्टरनेट आफिस,

    से फुर्सत ही नहीं मिलती..

    शायद

    ज़िन्दगी

    बदल रही है.

    .

    जिंदगी का

    सबसे बड़ा सच

    यही है..

    जो अकसर क़ब्रिस्तान के बाहर

    बोर्ड पर

    लिखा होता है...

    "मंजिल तो

    यही थी,

    बस

    जिंदगी गुज़र गयी मेरी

    यहाँ आते आते"

    .

    ज़िंदगी का लम्हा

    बहुत छोटा सा है...

    कल की

    कोई बुनियाद नहीं है

    और आने वाला कल

    सिर्फ सपने में ही है..

    अब

    बच गए

    इस पल में..

    तमन्नाओं से भर

    इस जिंदगी में

    हम सिर्फ भाग रहे हैं.

    कुछ रफ़्तार

    धीमी करो,

    और

    इस ज़िंदगी को जियो।।

    वनिता:दोस्तो, आज के प्रोग्राम का अंतिम खत हमें भेजा है राजीव शर्मा ने। वे लिखते हैं कि अगर हम जमाने को बड़े गौर से देखें तो यह भीड़, आवाजाही, अफरा-तफरी, शोर-शराबा और उसके बीच खामोशी मेले जैसी लगती है। एक ऐसा मेला जिसके शुरू और खत्म होने की तारीख शायद ही कोई जानता हो। यह हमेशा गुलजार रहता है। मैं बीते 27 वर्षों से यह मेला रोज देख रहा हूं। मुझे यहां कई लोग मिले। कुछ लोगों से बिछड़ने के आंसू आज भी मेरी आंखों में छुपे हैं। यहां कई लोग मेरी उम्मीद से बहुत ज्यादा अच्छे मिले तो कुछ थोड़े कम बुरे। कुछ लोगों को मैं कभी नहीं भूल सकता।

    अनिलः वे आगे लिखते हैं कि आज मैं उन चुनिंदा लोगों की सूची पेश कर रहा हूं जिन्होंने साल 2010 में जयपुर आने के बाद मेरी सबसे ज्यादा मदद की। उनके नाम और चेहरे मेरी याददाश्त में अब तक पूरी तरह महफूज हैं। अगर मैं इस 'मेले' का कुछ साल और हिस्सा बना रहा तो पूरी संभावना है कि मैं इन्हें आगे भी याद रखूंगा। इसके अलावा मैं उन लोगों की भी सूची जारी कर रहा हूं जिनका कोई काम मुझे अच्छा लगा या जिसे मैं पसंद करता हूं। साथ ही देश के राजनेताओं के बारे में भी थोड़ा जिक्र करूंगा। यह टाइम या फोर्ब्स मैग्जीन का आकलन नहीं है और न ही किसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी की ऐसी सूची जो इन लोगों में यह बता सके कि कौन शीर्ष पर है और कौन सबसे नीचे! तो जरा गौर से सुनिए, क्योंकि आप भी तो इसी मेले का एक हिस्सा हैं

    - गांव से जयपुर आने के ठीक बाद मेरी सबसे ज्यादा मदद करने वाला व्यक्ति : राधाकृष्ण सामरिया

    - जिन्होंने सिर्फ डेढ़ दिन में मुझे हिंदी की टाइपिंग सिखाई : श्री महेश पारीक

    - वह लेखक/लेखिका, जिनकी रचना मैं हमेशा पढ़ना चाहूंगा : श्री गोपाल शर्मा - महानगर टाइम्स, सुश्री गीता यादव - अहा! जिंदगी

    - जिन्होंने कम्प्यूटर सीखने में मेरी बहुत मदद की : सुश्री पूर्णिमा पांडेय

    - अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करना मैंने जिनसे सीखा : श्रीमती मोनिका जोशी

    - मुश्किलों में भी खुश रहने वाला इंसान : श्रीमती कोषा गुरुंग

    - जिन्होंने मुझे ईमेल करना सिखाया : सुश्री पूजा शर्मा

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल पांडे और वनिता को आज्ञा दीजिए, नमस्कार।

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