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    2014 8 जुलाई: साईहानपा राष्ट्रीय वन और उद्यान की यात्रा
    2014-07-09 14:45:03 cri
    आज मेरी खेबई यात्रा का दूसरा दिन था, आज के दिन मैंने अपने बाकी साथियों के साथ साईहानपा राष्ट्रीय वन और उद्यान देखने गए, ये अनुभव मेरे जीवन का सबसे अविस्वमरणीय अनुभव रहा, यहां पहुंचने के बाद मैंने पहली बार देखा कि आसमान इतना गज़ब का नीला भी हो सकता है, आज आसमान में छोटे बड़े बादल के टुकड़े भी तैर रहे थे, ये बादल एकदम रुई के फाहे जैसे लग रहे थे, इससे आसमान के गहरे नीले रंग में सफ़ेदी का मिश्रण बहुत मनोरम लग रहा था,

    साईहानपा के वन में कुछ जगहों पर मैंने बड़ी बड़ी झील भी देखी, जिसमें सैलानी नावों में सैर कर रहे थे। झील का नीला पानी, हरे रंग के जंगल और ऊपर नीले आसमान में छोटे बड़े सफ़ेद बादल के तैरते टुकड़े धरती पर स्वर्ग की अनुभूति करा रहे थे। मेरे साथ जितने लोग भी इस मनोरम दृश्य को देख रहे थे वो बहुत खुश हो रहे थे, मेरे दो मित्र यूरोपीय देश इटली और हंगरी से थे उन्होंने भी कहा कि इतना नीला और स्वच्छ आसमान उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। हालांकि राजधानी बीजिंग में मैंने नीला आसमान कई बार देखा है लेकिन यहां पर साफ सुथरे वातावरण में जहां पर प्रदूषण बिल्कुल भी नहीं था ऐसे में नीला आसमान बहुत साफ लग रहा था। वातावरण में ठंडी और स्वच्छ हवा चल रही थी जिसकी गति अच्छी खासी थी, सांस लेने में भी बहुत अच्छा लग रहा था, शहरों में विषैले धुंए और धूल के कण वायुमंडल में तैरते रहते हैं, जिससे कई बार सांस लेने में परेशानी भी महसूस होती है लेकिन यहां पर ठंडी और स्वच्छ वायु पूरे शरीर को मानो तरो ताज़ा कर रही थी।

    अपनी इस यात्रा के दौरान हम साईहानपा म्यूज़ियम में भी गए जहां पर चीनी गाईड हमें मंदारिन भाषा में साईहानपा जंगलों और उद्यान के महत्व के बारे में बता रही थी जिसे मेरी सहयोगी चिंगचिंग यानी मीरा हिन्दी में अनुवाद कर मुझे बता रही थी, ये जानकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि 1962 में यहां के पहाड़ों पर एक भी पेड़ नहीं था, म्यूज़ियम में लगी श्वेत-श्याम फोटो में भी ये बात दिखाई गई है कि सभी पहाड़ियां और टीले बिना हरियाली के थे, लेकिन लोगों और प्रशासन की कड़ी मेहनत का ही ये परिणाम है कि आज हमें यहां के हर इंच पर हरियाली दिखाई देती है, मुझे ये जानकर भी आश्चर्य हुआ कि राजधानी बीजिंग से कई लोगों ने स्वेच्छा से इस क्षेत्र में वृक्षारोपण के काम में मदद दी और अपना पूरा जीवन साईहानपा वन और उद्यान को हरा भरा बनाने में झोंक दिया। एक भारतीय होने के नाते मुझे ऐसा लगता है कि अगर हम लोग भी देश के वनीकरण में ऐसा ही योगदान दें तो हमारा देश भी हरियाली से भरपूर होगा, 1994 तक साईहानपा के क्षेत्र में रहने की व्यवस्था बहुत ही खराब थी, यहां पर जो लोग झोंपड़ियां बनाते थे उसे वो आधा ज़मीन के ऊपर और आधा ज़मीन के अंदर बनाते थे जिससे वो यहां की भीषण हाड़ कंपा देने वाली ठंड से बच सकें, लेकिन आज यहां बहुत बेहतर स्तर के आवासीय परिसर बनाए गए हैं जहां पर अच्छी खासी तादाद में लोग रहते हैं। साईहानपा क्षेत्र को हरा भरा बनाने के बाद आस पास का वातावरण भी सुधरा है, यहां पर पहले जो भीषण सर्दी पड़ती थी उसमें कमी आई है साथ ही यहां पर गर्मी में भी कमी आई है, झीलों के होने से यहां यहां पर वायु भी स्वच्छ हुई है, अगर हम कुल मिलाकर देखें तो पर्यावरण के लिहाज से साईहानपा के वन और उद्यान के क्षेत्र के आसपास में बहुत सुधार हुआ है, और निश्चित ही ये एक ऐसी शुरुआत है जो मानव कल्याण की बेहतरी की तरफ़ जाती है।

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