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    ब्रिक्स देशों के अगले स्वर्णिम दशक के लिए सहयोग और समान प्रयास करें
    2017-08-19 17:56:07 cri

    ब्रिक्स देशों के नेताओं की 9वीं शिखर वार्ता आगामी 3 से 5 सितंबर को दक्षिण चीन के फ़ूच्यान प्रांत के श्यामन शहर में आयोजित होगी। वर्तमान अध्यक्ष देश के रूप में चीन ने "ब्रिक्स साझेदार संबंध गहराए, और उज्ज्वल भविष्य की रचना करें" शीर्षक सिलसिलेवार कार्यक्रमों का आयोजन किया। 17 से 18 अगस्त को फूच्यान के छ्वानचो शहर में आयोजित "ब्रिक्स देशों की शासन संबंधी संगोष्ठी" इनमें से एक है। इस संगोष्ठी में ब्राज़िल, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रिका, इथियोपिया और मैक्सिको जैसे विकासशील देशों के विद्वान और विशेषज्ञ एकत्र हुए और ब्रिक्स के ढांचे के तले विकासशील देशों के बीच सहयोग और विकास पर गहन रूप से विचार-विमर्श किया। 

    इधर के 10 सालों में भूमंडलीय वित्तीय संकट की वजह से विश्व के विभिन्न देशों के विकास के सामने चुनौतियां मौजूद हैं। विकसित देशों की आर्थिक वृद्धि धीमी होने की पृष्ठभूमि में चीन और भारत के विकास की तेज़ वृद्धि बनी रही। दोनों देशों की राष्ट्रीय स्थिति मिलती-जुलती है। इसके साथ ही दोनों देश विकासशील देशों में मज़बूत शक्ति भी मानी जाती है। देश की शासन के क्षेत्र में चीन और भारत के बीच एक दूसरे से सीखने योग्य है। मौजूदा संगोष्ठी दोनों देशों के विद्वानों और विशेषज्ञों के बीच विचारों का आदान-प्रदान का मंच बन गया है।

    जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंध कॉलेज के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह ने कहा कि संगोष्ठी में उन्होंने चीनी विद्वानों के साथ चीन की शासन के पहलु में चीनी विद्वानों के साथ विचार-विमर्श किया, जिससे उन्हें बड़ा लाभ मिला। स्वर्ण सिंह ने कहा:

    "देश की शासन के क्षेत्र में चीन ने दुनिया के सामने एक अच्छी मिसाल कायम की है। आर्थिक तेज वृद्धि के अलावा, स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबी उन्नमुलन जैसे पहलुओं में चीन ने बड़ी कामयाबियां हासिल कीं है। मौजूदा संगोष्ठी में चीन ने अपनी शासन का अनुभव दूसरों के साथ साझा किया, जिससे अन्य विकासशील देश सीख सकेंगे।"

    राष्ट्रीय स्थिति मिलती-जुलती होने की वजह से चीन और भारत कई क्षेत्रों में एक दूसरे से सीख सकते हैं। आर्थिक क्षेत्र में दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व एशिया अनुसंधान और सामाजिक विज्ञान कॉलेज के प्रधान श्रीमती चक्रवर्ती के विचार में चीन और भारत के बीच व्यापक सहयोग का आधार ही नहीं, समान विकास को आगे बढ़ाने की वस्तुगत और रणनीतिक मांग भी मौजूद है। दोनों पक्षों को मतभेदों को दरकिनार कर समानताओं की खोज करनी चाहिए, ताकि समान विकास को आगे बढ़ाया जा सके। श्रीमती चक्रवर्ती ने कहा:

    "चीन और भारत की अपनी-अपनी श्रेष्ठताएं हैं। भारत का सॉफ्टवियर उद्योग और चीन का हार्डवियर उद्योग दोनों ही विकसित हैं। हमें एक दूसरे पर विश्वास करते हुए आपस में निवेश बढ़ाने को मज़बूत करना चाहिए, ताकि दोनों देशों के बीच एक दूसरे के पूरक बन सके।"

    चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग द्वारा प्रस्तुत "खुलेपन, समावेश, सहयोग और समान जीत" वाली ब्रिक्स भावना के मार्गदर्शन में ब्रिक्स देशों ने व्यवस्था के निर्माण, आपसी अंतरसंबंधी और आपसी संपर्क के क्षेत्र में फलदायक उपलब्धियां हासिल कीं। ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग शुद्ध आर्थिक निवेश पार कर महत्वपूर्ण प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बन रहा है, इसके साथ ही वह वित्तीय संकट के मुकाबले, विश्व आर्थिक वृद्धि को आगे बढ़ाने, अंतरराष्ट्रीय संबंध में लोकतंत्रीकरण की महत्वपूर्ण शक्ति भी बन गयी है। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्वी एशिया अनुसंधान और सामाजिक विज्ञान कॉलेज के प्रधान श्रीमती चक्रवर्ती के विचार में पाँच ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग का और उज्ज्वल भविष्य होगा। उनका कहना है:

    "किसी भी देश, चाहे नागरिक हो या सरकार ही क्यों न हो, शिक्षा प्राप्त करने वालों को मालूम है कि पाँच ब्रिक्स देशों के साझेदार संबंध से सारी दुनिया को लाभ मिलेगा। इसके साथ ही पाँच देश एक दूसरे से सीख सकते हैं। मुझे पक्का विश्वास है कि ब्रिक्स व्यवस्था के विकास का उज्ज्वल भविष्य होगा।"

      चक्रवर्ती के विचार का चीनी राष्ट्रीय विकास बैंक के प्रथम अर्थशास्त्री ल्यू योंग ने बिलकुल माना। उन्होंने कहा कि पाँच ब्रिक्स देशों के सामने आर्थिक वृद्धि दर धीमी होना, औद्योगिक अतिरिक्त मूल्य कम होना और मौद्रिक उतार-चढ़ाव बड़ा होना आदि सवाल मौजूद हैं। लेकिन अगर पाँच देशों ने समान प्रयास किया, जो ब्रिक्स देशों का अगला स्वर्णिम दशक और सुनहरा होगा। उन्होंने कहा:

    "ब्रिक्स देशों को एक दूसरे से सीखना चाहिए। आर्थिक ढांचे में परिवर्तन करते हुए वृद्धि के नए पहलु की खोज करनी चाहिए। ब्रिक्स देशों को वैश्विक मूल्य चैन के मध्यम व निचले स्तर से मध्यम-उच्च स्तर तक पहुंचना चाहिए। निवेश सहयोग और व्यवस्था के सहयोग को आगे बढ़ाते हुए निवेश की सुविधा को मज़बूत करनी चाहिए। वित्तीय सहयोग को मज़बूत करते हुए मुद्रा की विनिमय दर की जोखिम को कम करना चाहिए। हमारे समान प्रयास के माध्यम से ब्रिक्स का अगला स्वर्णिम दशक और अच्छा होगा।"

    ब्रिक्स देशों का अगला स्वर्णिम दशक आने वाला है, यह संगोष्ठी में भाग लेने वाले विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों की समान व्यापक आम सहमति है। भारतीय संसद की स्थायी प्रतिरक्षा कमेटी के सदस्य, भारतीय संसद के भारत-चीन मैत्री दल के अध्यक्ष तरुण विजय ने ब्रिक्स के नए अर्थ की व्याख्या की। उन्होंने कहा:

    "ब्रिक्स में B का मतलब बिल्ड द ब्रडरहुड है (build the brotherhood) यानी देशों व देशों के बीच भाईचारे की भावना स्थापित की जाए। R का मतलब रिटर्न टू लाइफ (return or life) यानी जीवन में वापस लौटें। I का मतलब इनर पीस (inner peace) यानी आंतरिक शांति। C का मतलब कल्चर एंड सिविलाइजेशन (culture and civilization) यानी संस्कृति और सभ्यता का प्रतिबिंब, जबकि S का मतलब सर्व द मैनकाइंड (serve the mankind) यानी मानव समाज की सेवा करना है।"

    तरुण विजय के ये विचार चीन की मानव जाति को प्राथमिकता देने की प्रशासन व्यवस्था की विचारधारा से मेल खाते हैं। सिर्फ मनुष्य की अच्छी तरह सेवा करने से ही हमारा जीवन और बेहतर हो सकेगा, हमारी दुनिया और सुन्दर बनेगी।

    पेइचिंग "बेल्ट एंड रोड" निवेश कोष की प्रबंधन कंपनी के बोर्ड अध्यक्ष लिन हंगयू ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा:

    "राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने 'साझा भाग्य समुदाय' वाली विचारधारा पेश की, जिससे विश्व के विभिन्न देशों को महत्वपूर्ण वैचारिक प्रेरणा मिली। मेरा सुझाव है कि 'साझा भाग्य समुदाय' से संबंधित सांस्कृतिक कोष की स्थापना की जाएगी। चीन के 'जनता के लिए दुनिया' वाले वैश्विक विचार और 'साझा भाग्य समुदाय' वाली संस्कृति का निर्माण किया जाए। ब्रिक्स इंजन वाले 'नए किस्म का वैश्विकरण' में नई मानसिक प्रेरणा शक्ति संचार की जाए, ताकि मानव जाति की नई सभ्यता और प्रगति की आदर्श मिसाल कायम की जाए।"

    चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा था कि पांच ब्रिक्स देश हाथ की पाँच उंगलियां जैसी हैं। हथेली की उंगलियां कोई लम्बी होती है, तो कोई छोटी है। लेकिन बंद करने के बाद एक मुट्ठी बन जाती है। मौजूदा ब्रिक्स देशों की शासन संबंधी संगोष्ठी में भाग लेने वाले विभिन्न देशों के विद्वानों और विशेषज्ञों की आम राय है कि विकासशील देश आपस में सहयोग कर समान रूप से आगे बढ़ सकेंगे, फिर और बड़ा विकास प्राप्त कर सकेंगे। उन्हें विश्वास है कि ब्रिक्स देशों के नेताओं की श्यामन शिखर वार्ता से ब्रिक्स सहयोग अधिक स्थिर होगा और अगला स्वर्णिम दशक जरूर आएगा।

    (श्याओ थांग)

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