ली ली के अनुसार भारतीय पक्ष को इस घटना की पूरी जिम्मेदारी उठानी चाहिए। निसंदेह तूंग लांग क्षेत्र चीन की प्रादेशिक भूमि रहा है और चीन इस क्षेत्र का कारगर प्रशासन भी करता है। जबकि भारत पक्ष ने इसे भूतान की प्रादेशिक भूमि कहा, जो बिलकुल निराधार है। इस बार भारतीय सेना ने सीमा पार कर चीन में दाखिल हुआ। वास्तव में यह आक्रमण की कार्यवाई ही है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय कानून और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी नियमों का उल्लंघन किया है। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पाँच सिद्धांत के संस्थापक देशों में से एक होने के नाते स्वतंत्रता के बाद भारत ने पड़ोसी छोटे देशों का समान सत्कार नहीं किया है और भूटान को अपना संरक्षित देश माना है। भूटान की स्वतंत्र प्रभुसत्ता है। भारत के लम्बे अरसे के दबाव डालने से चीन-भूटान सीमांत वार्ता में औपचारिक समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया जा सका। चीन-भूटान का राजनयिक संबंधों की स्थापना भी नहीं हो पायी है।
ली ली के मुताबिक इस घटना के हल के लिए भारत को कुंजीभूत भूमिका अदा करनी चाहिए। चीन चीन-भारत संबंध की परिस्थिति और दोनों देशों की जनता के कल्याण को बड़ा महत्व देता है। आशा है कि दोनों देश हाथ मिलाकर सहयोग और समान विकास कर सकेंगे। साथ ही चीन ने भारत से अपनी प्रादेशिक भूमि की रक्षा करने के चीन के निर्णय को सही समझने की चेतावनी भी दी, ताकि भारत गलत रास्ते में आगे बढ़ने से रूक सके।
(श्याओयांग)