चीनी विदेश मंत्रालय ने 2 अगस्त को "चीन-भारत सीमा के सिक्किम भाग पर भारतीय सेना के चीनी प्रादेशिक भूमि में प्रवेश का तथ्य और चीन का रुख" नामक दस्तावेज जारी किया। इसकी चर्चा में चीनी समाज व विज्ञान अकादमी के एशिया प्रशांत संस्थान के दक्षिण एशियाई विभाग के प्रधान येई हाईलिन ने कहा कि 1890 में चीन और ब्रिटेन के बीच संपन्न "भारत व तिब्बत के बीच सीमा सवाल पर संधि" में चीन के तहत तिब्बत क्षेत्र तथा सिक्किम के बीच सीमा को रेखांकित किया गया था। इस बार भारत की कार्यवाई ने संधि का उल्लंघन किया है।
चीनी अंतर्राष्ट्रीय सवाल के अनुसंधान संस्था के उप प्रधान रोंग यिंग ने कहा कि भारत का मकसद विवाद पैदा करना है। तूंगलांग क्षेत्र में विवाद नहीं हुआ था, लेकिन भारत ने अपनी सीमा पार कार्यवाई के लिए बहाना बनाया। निसंदेह तूंगलांग चीन की प्रादेशिक भूमि है, जहां कोई विवाद नहीं होता है। भारत पक्ष ने भूटान की रक्षा करने के बहाने से यह कार्यवाई की। यह बिलकुल निराधार है।
हाल में चीन ने उच्च संयम रखने की रवैया अपनायी और चीन राजनयिक माध्यमों से इस समस्या का हल करने की कोशिश कर रहा है। चीन हमेशा शांति वार्ता के जरिए इस सवाल का हल करने का पक्ष लेता रहता है और चीन इस सिद्धांत के मुताबिक सीमांत समस्या का हल भी करता है। चीन आशा करता है कि भारतीय पक्ष भी इस सिद्धांत का पालन करेगा, नहीं तो चीन-भारत संबंधों को नुकसान पहुंचेगा। भारत को चीन के संयम रखने को सही ठंग से समझना चाहिए और गलत सामरिक निर्णय नहीं लेना चाहिए।
रोंग यिंग ने कहा कि भारतीय सेना को निःशर्त वापस हटाना चाहिए। साथ ही भारत को चीन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष कुछ भी कहना चाहिए। भारत को इस गैरकानूनी सीमा पार कार्यवाई की पूरी जांच करनी चाहिए। यदि भारत पक्ष चीन के रुख की सक्रिय प्रतिक्रिया नहीं देता तो स्थिति में अनिश्चितता के तत्व बढ़ते रहेंगे।
(श्याओयांग)