रिपोर्ट के अनुसार, ज़ारिफ़ ने उस दिन अमेरिकी मीडिया को दिए एक इन्टरव्यू में कहा कि पुनः वार्ता करने का विचार बहुत खतरनाक है, क्योंकि वार्ता की जा चुकी है। आज का समझौता संपन्न होना मुश्किल था। पुनः वार्ता करके एक नया समझौता संपन्न करना बिलकुल असंभव है।
ज़ारिफ़ ने प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व कर 13 जुलाई को अमेरिका पहुंचे। मौजूदा यात्रा में अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन के साथ बातचीत करने या न करने पर ज़ारिफ़ ने खारिज करते हुए कहा कि मैंने इस प्रकार की मुलाकात की मांग नहीं की और मैं ऐसा करूंगा भी नहीं । जारिफ़ ने कहा कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात करने का विरोध नहीं करते, लेकिन पूर्वशर्त है कि इससे ईरान के परमाणु मुद्दे से जुड़े सर्वांगीण समझौते के कार्यान्वयन के लिए मददगार सिद्ध होगा।
ज़ारिफ़ ने यह भी कहा कि अमेरिका के व्यवहार से सारी दुनिया को एक ऐसा संकेत दे रहा है कि अमेरिका अविश्वनीय है। उसके साथ संपन्न कोई भी समझौता बेकार है।
जानकारी के अनुसार अमेरिकी वित्त मंत्री और विदेश मंत्री ने 18 जुलाई को बयान जारी कर 18 ईरानी व्यक्ति और वास्तविक समुदायों पर प्रतिबंध लगाया, वजह है कि उन्होंने ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल योजना और सीमा-पार अपराध का समर्थन किया। ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी ने 19 जुलाई को कहा कि अमेरिका का ऐसा व्यवहार ईरानी परमाणु मुद्दे के सर्वांगीण समझौते का उल्लंघन है, ईरान इसका जवाब देगा।
गौरतलब है कि जुलाई 2015 में ईरान ने ईरानी परमाणु मुद्दे से संबंधित छह देशों यानी अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन और जर्मनी के साथ ईरानी परमाणु मुद्दे से जुड़े सर्वांगीर्ण समझौते को संपन्न किया, जिसके अनुसार ईरान अपनी परमाणु योजना को सिमित करेगा, जबकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाएगा।
(श्याओ थांग)