चौथी से चौदहवीं शताब्दी के बीच बनी मोगाओ की गुफ़ाएं प्राचीन और मध्यकाल के चीन और मध्य एशिया के बीच बुने हुए मिश्रित ताने बाने की कहानी को उजागर करती हैं। चौथी शताब्दी में उत्तरी सुई राजवंश से लेकर चौदहवीं शताब्दी में युवान राजवंश काल तक इनका निर्माण होता रहा था। एक हज़ार वर्ष का ये वो समय था जब तुनह्वांग व्यापार, संस्कृति, कला, धर्म का केन्द्र था।
1680 मीटर क्षेत्र में फैली इन गुफाओं में पहली गुफा का निर्माण 366 इस्वी में हुआ था। जिसे बौद्ध भिक्षुओं ने ईश्वरीय शक्ति से पूरी दुनिया से दुख तकलीफों को दूर करने के लिये बनाया था, यहां आकर बौद्ध भिक्षु एकांत में वर्षों तक तपस्या करते थे।
45 हज़ार वर्ग मीटर में फैली इन गुफ़ाओं में 492 गुफाएं हैं जिन्हें अलग अलग राजवंशों के काल में बनाया गया था। इन गुफ़ाओं में 2000 से अधिक बुद्ध और उनके काल की मूर्तियां बनी हैं वहीं गुफ़ा की दीवारों पर मिट्टी, चूने और भूसे के मिश्रण का मोटा लेप लगाने के बाद इनपर भित्तिचित्र बनाए गए जो महात्मा बुद्ध, उनके जीवन, उनके पूर्वजन्मों के साथ साथ उत्तर-पश्चिमी चीन और मध्य एशिया की जीवनशैली, अर्थतंत्र, राजनीति, संस्कृति, धर्म के साथ साथ भौगोलिक स्थिति का भी विस्तृत वर्णन करते हैं।
1990 में पुस्तकालय गुफा की खोज हुई जिसमें हज़ारों की संख्या में पांडुलिपियां मिलीं जो चीनी, तिब्बती, तुर्क, सोग्दियान, खोतान और हिब्रु भाषाओं में लिखी हुई हैं। 1987 में युनेस्को ने मोगाओ गुफाओं को विश्व धरोहर की श्रेणी में शामिल किया, उससे पहले 1961 में चीन की केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार के साथ मिलकर इसे राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा दिया था जिसके बाद इसके पुर्नरुद्धार का काम तेज़ी से शुरु हुआ, इसी वजह से आज तुनह्वांग की मोगाओ गुफाएं सुप्रसिद्ध पर्यटन का केन्द्र बनी हुई हैं जहां पर बड़ी संख्या में देसी विदेशी पर्यटक घूमने आते हैं।
पंकज श्रीवास्तव