वो हल्की बारिश वाला दिन था, जब हम चार जीपों में बैठकर लिपुलेक दर्रे से होते हुए, ऊंचे नीचे रास्तों पर, कभी ढलान तो कभी चढ़ाई वाली सड़क पर धीमी गति से आगे बढ़ रहे थे। सड़क काफी संकरी थी, उसके एक तरफ़ पहाड़ थे तो दूसरी तरफ़ गहरी खाई। मैं चीन के दूतावास के लोगों के साथ मानसरोवर की यात्रा पर था, मानसरोवर ... हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थान, जहां पर हर हिन्दू जीवन में एक बार जाने की तमन्ना रखता है। मैं अपनी सांसें रोके अपने जीवन की सबसे अविस्वमरणयी यात्रा कर रहा था।
चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के आली प्रिफेक्चर ने करीब चार करोड़ युआन खर्च कर (करीब 60 लाख अमेरिकी डॉलर) मानसरोवर जाने वाले तीर्थ यात्रियों के लिये सड़कों का निर्माण करवाया है। करीब एक वर्ष के कठिन परिश्रम के बाद सड़क बनाने का 80 फीसदी काम पूरा हो चुका है।
इस अवसर पर तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के आली प्रिफेक्चर के डिप्टी कमिश्नर छांग हुईमिंग ने बताया कि पिछले वर्ष के मुकाबले यात्रियों की सुविधा के लिये हमने बेहतर सुविधा मुहैया करवाई है। दो दिनों बाद 18 जत्थों में (एक जत्थे में 60 तीर्थ यात्री होते हैं) भारतीय तीर्थ यात्री यहां पर पहुंचेंगे जिसकी व्यवस्था भारत सरकार ने की है। लिपुलेक दर्रे से होते हुए वो 20 जून को चीन में प्रवेश करने के साथ अपनी मानसरोवर यात्रा का शुभारंभ करेंगे। चीन की सरकार ने उनकी आवभगत की सारी तैयारी पूरी कर ली है।
लिपुलेख दर्रा मानसरोवर जाने वाला सबसे छोटा रास्ता है, जो कैलाश मानसरोवर से सिर्फ 100 किलोमीटर दूर है। लेकिन इसके साथ ही ये सबसे दुर्गम रास्ता है क्योंकि ये रास्ता बहुत ऊंचाई पर स्थित है, यहां पर कठिन चढ़ाई है, गहरी खाई और ढलान है साथ ही इस रास्ते पर तीर्थ यात्रियों को लंबी दूरी तक पैदल भी चलना पड़ता है। तीर्थ यात्रियों को लिपुलेक दर्रे पर पहुंचने में कुछ दिन लगेंगे। सीमा पर स्थानीय तिब्बती अधिकारी उनके स्वागत की प्रतीक्षा करेंगे। इसके बाद वो पर्वत की तलहटी में जाएंगे, जहां पर वो बस से व्यापारी कस्बे पुरांग यानी ताकलाकोट जाएंगे जहां पर कस्टम विभाग वाले औपचारिकताएं पूरी करेंगे। उसके बाद तीर्थयात्री एक स्थानीय होटल में ठहरेंगे। होटल में रुकने के दूसरे या तीसरे दिन तीर्थयात्री अपनी यात्रा शुरु करेंगे, जिसके दो दिनों के बाद वो कैलाश पहुंचेंगे। इसके लिये या तो तीर्थयात्रियों को पैदल यात्रा करनी होगी या फिर याकों की सवारी करेंगे। कुछ तीर्थ यात्री एक दिन में ही कैलाश पहुंचना चाहते हैं, लेकिन यहां की कठिन भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए स्थानीय तिब्बती सरकार उन्हें दो या तीन दिनों में यात्रा करने की सलाह देते हैं। कैलाश समुद्र तल से बहुत ऊंचाई पर बसा है जहां पर ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम है। मैदान से आने वाले लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। रात के समय तीर्थ यात्री आमतौर पर पुराने मंदिर के कैम्प में ठहरते हैं जो कि मानसरोवर झील से दस मीटर की दूरी पर स्थित है। पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले में यहां पर रहने की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है। होटल के कमरे सजे धजे हैं, नई और पक्की सड़क बन चुकी है। इसके साथ ही शौचालय और गर्म पानी की व्यवस्था में भी बहुत सुधार हुआ है। होटल के सीमित साधनों के चलते दो से चार यात्री होटल का एक कमरा साझा करते हैं, और चौबीस घंटे गर्म पानी के साथ समुचित शौचालयों की व्यवस्था भी की गई है। लेकिन ये होटल की व्यवस्था पक्की नहीं है। आली प्रिफेक्चर के विदेश विभाग के निदेशक अवांग चेरिंग ने बताया कि जल्दी ही यहां पर एक नया होटल निर्माण कराया जाएगा, जिसके लिये जमीन तय कर ली गई है। 70 लाख अमेरिकी डॉलर का बजट भी तय किया गया है जिससे ज्यादा संख्या में तीर्थ यात्रियों के ठहरने की उचित व्यवस्था की जा सकेगी।
पहले तीर्थयात्री नाथू ला दर्रे से होकर मानसरोवर की यात्रा करते थे, जो कैलाश मानसरोवर से 2000 किलोमीटर दूर है। पिछले वर्ष जून में भारतीय यात्रियों के लिये नाथू ला दर्रे से एक नया रास्ता खोला गया है। 240 यात्रियों के 5 जत्थे इस नए रूट से पवित्र यात्रा कर चुके हैं। उसके बाद से ही भारत सरकार द्वारा यात्रियों के लिये दो रास्तों का निर्माण किया जा चुका है। भारत और चीन सरकार की आपसी सहमती से नाथू ला दर्रे से इस वर्ष 350 यात्रियों के 7 जत्थे मानसरोवर की यात्रा करेंगे। हालांकि ये एक लंबा रास्ता है लेकिन यहां पर अविस्वमरणीय सुंदर प्राकृतिक दृश्य हैं जिनका आनंद तीर्थ यात्री ले सकेंगे। तीर्थ यात्री यहां पर दो रातों तक ठहर सकेंगे और वो खाना खाते आराम करते तीन विराम के साथ अपने गंतव्य कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर सकेंगे। वहां पहुंचने के साथ ही उनका बाकी कार्यक्रम दूसरे तीर्थ यात्रियों के जैसा ही होगा।
विदेश विभाग के निदेशक वांग लुनमिन ने बताया कि तीर्थ यात्रियों की यात्रा, उनके होटल, खाने पीने और विश्राम की व्यवस्था से पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही चीन सरकार ने इस व्यवस्था को हरी झंडी दिखाई है। हालांकि पिछले वर्ष जो व्यवस्था की गई थी वो समय के अभाव के कारण पूरी नहीं थी। स्थानीय तिब्बती सरकार और चीन की केन्द्र सरकार भारतीय यात्रियों की तीर्थ यात्रा को बहुत महत्व देती है।
सरकारी सहायता से आने वाले तीर्थ यात्रियों की तुलना में पूरी तरह खुद के खर्च पर आए तीर्थ यात्रियों की संख्या कहीं अधिक है और वो भी इन्ही रास्तों से कैलाश मानसरोवर पहुंच रहे हैं। इनमें पहला मार्ग ल्हासा होते हुए है जो कि तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी है। वहीं दूसरा रास्ता नेपाल से होता हुआ झांगमू या चीलूंग सीमा पोस्ट आता है। दुर्भाग्य से ये रास्ता पिछले वर्ष नेपाल में आए भीषण भूकम्प के कारण बंद हो गया है लेकिन चीनी अधिकारी इस रास्ते को दोबारा खोलने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। तीसरा रास्ता भी नेपाल होते हुए आता है लेकिन ये रास्ता आली प्रिफेक्चर के पुरांग काउँटी में लिपुलेख – सीरावा सीमा पोस्ट के बहुत पास है। खुद के खर्च पर आए यात्रियों की उचित व्यवस्था के लिये भी तिब्बत स्वायत्त सरकार ने विशेष व्यवस्था की है। पहले यात्रिय़ों को नेपाल जाना होगा जहां से वो लंबी दूरी वाली बसों में यात्रा करेंगे और नेपाल के अंतिम कस्बे तक जाएंगे, फिर वो हेलीकॉप्टर से सीरावा के दूसरी तरफ़ पहुंचेंगे जहां से वो झूलने वाले पुल को पार करने के बाद चीन में प्रवेश करेंगे। छांग हुईमिंग ने आगे बताया सीरावा के राजमार्ग की स्थिति बहुत अच्छी है और वो पुरांग से सिर्फ 25 किलोमीटर की दूरी पर है और ये मानसरोवर जाने वाला छोटा रास्ता है। इस वर्ष 10 जून तक 4000 यात्री इस जगह से मानसरोवर की यात्रा कर चुके हैं। चीन सरकार यहां पर शॉपिंग मॉल, होटल, प्रदर्शनी भवन, कस्टम इमारतों समेत पूरे आधारभूत ढांचे को अगले दो वर्षों में बना लेगी। नेपाल और चीन की सरकारों ने मब्जा चांग्बो (घाघरा) नदी पर पुल बनाने पर सहमती बना ली है, जब ये पुल बन जाएगा तो यात्रियों को और आसानी होगी।
चीन दूतावास के अधिकारियों ने पूरी तरह अपने खर्च पर आए तीर्थ यात्रियों से विस्तार से बात की और पाया कि तीर्थ यात्री यात्री की तमाम व्यवस्था से पूरी तरह संतुष्ट हैं, विशेषकर खाने की व्यवस्था से सभी लोग खुश दिखे। आंध्र प्रदेश के एक तीर्थ यात्री ने बताया कि ये उनकी तीसरी कैलाश मानसरोवर की यात्रा है और पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने यात्रा की व्यवस्था में कई जबर्दस्त बदलाव देखे हैं।
ठीक उसी समय यात्रियों को लेकर एक हेलीकॉप्टर यू टर्न लेता हुआ पर्वत की ऊंचाई पर पहुंच गया और नेपाल की तरफ़ उतर गया। वहीं चीन के अधिकारी और यात्रा एजेंसियां एक नई खेप के यात्रियों का स्वागत करने के लिये तैयार खड़ी हैं जो उन्हें उनके गंतव्य के दर्शन कराने के बाद वापस सुरक्षित लाने को कृत संकल्प हैं .... यात्रियों की इस अद्भुत स्वप्न यात्रा कैलाश मानसरोवर को पूरा कराने के लिये।