चौथे चीन-दक्षिण एशिया एक्सपो में भारतीय भवन में कुल 96 मंडप स्थापित हुए, जिनसे"मेक इन इंडिया"की छवि दिखाई जा रही है। औद्योगिक व्यक्तियों के विचार में "मेक इन इंडिया"का लागत की श्रेष्ठता पर निर्भर होकर तेज़ गति से विकास हो रहा है, जबकि"मेड इन चाइना"की गुणवत्ता भी लगातार बढ़ रही है। दोनों अपनी-अपनी विशेषता दिखाते हुए सहयोग और विकास वाले समान जीत के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं।
"एक चीनी मज़दूर को एक दिन में दिया जाने वाला मूल्य सौ युआन होता है, जबकि एक भारतीय श्रमिक के लिए ये केवल 30 युआन है।"एक्सपो में भाग लेने आए एक भारतीय व्यापारी ने ऐसी बात कही। यह सच है कि कम लागत"मेक इन इंडिया"की सबसे बड़ी श्रेष्ठता है।
इसके अलावा,"मेक इन इंडिया"की दो विशेषताएं और भी हैं। पहला, इतिहास की वजह से भारत में अंग्रेज़ी की व्यापकता बड़ी है। भारतीय लोगों के विचार और जीवन आदत अंग्रेज़ी वाले देशों से मिलती जुलती हैं। इस तरह अंग्रेज़ी वाले देशों के बीच व्यापार करने में सुविधा मिलती है। दूसरा, भारत में सॉफ्टवेयर आउटसोर्सिंग विश्व में प्रगतिशील है, जो"मेक इन इंडिया"को सॉफ्ट समर्थन करता है।
वहीं एक चीनी उद्यमी ने कहा कि"हाल के वर्षों में भारत समेत दक्षिण एशियाई और दक्षिण-पूर्वी एशियाई विनिर्माण का तेज़ विकास हुआ है। कीमत के क्षेत्र में चीनी उद्यमों पर बड़ा असर हुआ है। लेकिन यूरोप में हमें कई ऑर्डर-फ़ार्म मिले हैं।"उन्होंने कहा कि चीनी उद्यमो ने अपने ढांचे में परिवर्तित करने को गति दी है।"मेड इन चाइना"की गुणवत्ता लगातार उन्नत होगी।
बताया जाता है कि भारत में बुनियादी संस्थापनों की आम स्थिति अभी प्रगति कर रही है। खास कर औद्योगिक निर्माण का स्तर ऊंचा नहीं है। इस तरह"मेक इन इंडिया"चीन में वाणिज्यिक अवसर ढूंढ रहा है।"मेक इन इंडिया"और "मेड इन चाइना"के बीच सहयोग मज़बूत किया जा रहा है, दोनों के बीच एक दूसरे की आपूर्ति है।"भारत को अपनी श्रेष्ठता दिखाते हुए चीन के साथ समान विकास खोजना चाहिए।" भारतीय वाणिज्य संघ के एक अधिकारी ने यह कहा। (श्याओ थांग)