चीनी राज्य परिषद के प्रेस कार्यालय ने 6 सितंबर को क्षेत्रीय जातीय स्वायत्तता का सफल अभ्यास नाम का श्वेत पत्र जारी किया, जिसमें क्षेत्रीय जातीय स्वायत्तता तंत्र लागू होने से तिब्बत में हुए कायापलट परिवर्तन का परिचय दिया गया। श्वेत पत्र में कहा गया है कि आज का तिब्बत इतिहास में सबसे स्वर्णिम काल से गुजर रहा है।
श्वेत पत्र में कहा गया कि क्षेत्रीय जातीय स्वायत्तता व्यवस्था चीन की एकतापूर्ण और बहुजातीय राष्ट्रीय स्थिति और तिब्बत की वास्तविक स्थिति से मेल खाती है। तिब्बत का क्षेत्रीय जातीय स्वायत्तता के रास्ते पर चलना तिब्बती जनता की मुक्ति और अपना भाग्य तय करने का सही विकल्प है, जो तिब्बत की विभिन्न जातियों की जनता के मूल हितों के अनुरूप है।
श्वेत पत्र के शब्दों की संख्या 22 हजार है, जिसने बड़ी संख्या वाले आंकड़ों और तथ्यों से 8 पहलुओं में क्षेत्रीय जातीय स्वायत्तता लागू होने के बाद तिब्बत के बड़े बदलावों की चर्चा की।
वे 8 पहलू हैं - प्राचीन तिब्बत के अंधकार और पिछड़ापन, विकास और प्रगति के रास्ते पर चलना, राष्ट्रीय स्थिति से मेल खाने वाली राजनीतिक व्यवस्था, जनता के स्वामित्व की गारंटी, जन कल्याण को बढ़ाना, श्रेष्ठ परंपरागत संस्कृति की सुरक्षा और प्रचार, धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान और उसकी रक्षा, पारिस्थितिकी सभ्यता का निर्माण बढ़ाना।
श्वेत पत्र में कहा गया है कि वर्ष 1959 से हुए लोकतांत्रिक सुधार औऱ वर्ष 1965 में क्षेत्रीय जातीय स्वायत्तता लागू करने के बाद तिब्बत में न सिर्फ नयी समाजवादी व्यवस्था स्थापित की गयी, बल्कि ऐतिहासिक आर्थिक और सामाजिक विकास के कार्यों को भी पूरा किया गया।
श्वेत पत्र में कहा गया कि कई वर्षों में 14वें दलाई लामा तथाकथित तिब्बती स्वतंत्रता का राजनीतिक लक्ष्य पूरा करने के लिए मध्यम मार्ग का ढिंढोरा पीटते रहे। 14वें दलाई लामा गुट की कार्रवाई एकदम चीनी संविधान और राष्ट्रीय व्यवस्था के विरुद्ध है, तिबब्त की विभिन्न जातियों के बुनियादी हितों को नुकसान पहुंचा औऱ तिब्बती जनता समेत व्यापक चीनी जनता ने इसका डटकर विरोध किया।