शे जाति के विवाह समारोह की एक अनोखी क्लासिकी विशेषता है। दुलहा छिडं राजवंश(1644-1911) की शैली का रेशमी कपड़ा पहनता है और दुलहन "अमरपक्षी मुकुट" पहनती है।
"अमरपक्षी मुकुट" को "रजत मुकुट" भी कहते हैं। विवाह समारोह में दुलहन "अमरपक्षी मुकुट" पहनती हैं। यदि वह ऐसा न करे तो लोग उसपर हंसते हैं। शे जाति के इतिहास के अनुसार उनके पूर्वज काओशिन कबीले से आए थे और क्वाडंतुडं प्रांत के छाओचओ के "अमरपक्षी" पर्वत में रहते थे। कथा है कि कबीले के एक राजकुमार ने अन्य कबीलों को परास्त करने में योगदान किया और काओशिन सम्राट ने उसका विवाह अपनी बेटी से कराया। उस समय से राजकुमारी को "अमरपक्षी" की उपाधि मिली। आज तक शे जाति "अमरपक्षी" को टोटम मानकर उसका आदर भी करती है।
विवाह से पहले दुलहन की मां अपनी बेटी के "अमरपक्षी बाल" बनाती है, इससे यह प्रकट होता है कि लड़की महिला बन गयी है। बेटी यह बहाना करती है कि वह अनिच्छा से दुलहन बन रही है, पर अंत में वह एक "अमरपक्षी" बन जाती है।
पालकी चढ़ने से पहले लड़की अपनी आंखें बन्द कर चापस्टिक से मछली, मांस और चावल तीन चीज़ें पकड़ती है। फिर वह चावल जमीन पर फेंकती है, यह इसका प्रतीक है कि वह विवाह के बाद मेहनत व किफायत से घर का काज संभालेगी।
जब पालकी दुलहे के घर पहुंचती है, तब दुलहन रिश्तेदारों की मदद से बाहर निकलती है और घर के अंदर जाती है। इसके बाद दुलहा लाल पट्टी बांधे विवाह के विशेष कपड़े पहनकर हॉल के अंदर जाता है। दुलहा-दुलहन के पहुंचने के बाद विवाह समारोह आरंभ होता है।
विवाह के दौरान दुलहन परंपरागत रीति-रिवाज के अनुसार मेहमानों को मीठी चाय पिलाती है, मेहमान चाय पीने के बाद खाली प्याले में लाल कागज में लपेटा हुआ पैसा डालते हैं। भोज के बाद गीत प्रतियोगिता होती है। प्रतियोगिता के लिए श्रेष्ठ गायक-गायिकाओं को चुना जाता है। युवाओं के लिए यह अपनी प्रतिभा दिखाने और प्रेम करने का अवसर होता है। इस तरह अगले वर्ष में दूसरी दुलहन "अमरपक्षी मुकुट" लगाएगी।