शी के बाद अब मोदी की बारी है। चीनी राष्ट्रपति ने भारतीय प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात जाकर द्विपक्षीय रिश्तों को नया आयाम दिया था। अब मोदी चीनी राष्ट्रपति के गृह राज्य शान्सी जाएंगे। गुजरात में तैयार द्विपक्षीय रिश्तों को शान्सी पहुंचकर आगे बढ़ाएंगे। मोदी की यात्रा पर दुनिया की नजर रहेगी। क्योंकि यह कूटनीतिक, राजनीतिक लिहाज से ही नहीं पूंजी निवेश की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। दोनों देशों के उद्योगपतियों की इस यात्रा से बड़ी उम्मीद जुड़ी हैं। मोदी चीनी कंपनियों को भारत में आने का न्यौता देंगे तो चीन में भारतीय कंपनियों के निवेश के लिए भी संभावना आसान करेंगे।
भारत और चीन के शीर्ष नेताओं के बीच मई में मुलाकात होने वाली है। पिछले साल सितंबर में जब चीनी राष्ट्रपति भारत दौरे पर गए थे, उस वक्त भारत में उनका जोरदार स्वागत हुआ था। उम्मीद है कि चीनी नेता भी उनका गर्मजोशी से खैरमकदम करेंगे।
मोदी की यात्रा से पहले भारतीय पत्रकारों के दल भी चीन दौरे पर आ चुके हैं। वे शान्सी प्रांत की राजधानी शी आन भी गए। इस तरह मोदी की यात्रा को सफल बनाने के लिए कोशिश जारी है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज आदि ने भी मोदी के दौरे के लिए बेहतर माहौल तैयार किया है।
एशिया की प्राचीन सभ्यता वाले दो देशों के संबंधों की चर्चा अक्सर होती रही है। दोनों की अर्थव्यवस्था भी तेजी से आगे बढ़ रही है। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की अर्थव्यवस्था के 7 से 8 फीसदी के बीच रहने का अनुमान लगाया है। जो चीन के लिए भी अच्छा संकेत है, इससे चीनी कंपनियां भारत में निवेश बढ़ाने पर जोर देंगी। भारत को आधारभूत ढांचे में व्यापक बदलाव करने की आवश्यकता है। लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर का फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व रखने वाला चीन इसमें भारत की मदद कर सकता है। मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट स्मार्ट सिटी बनाने में चीन भारत के काम आ सकता है। वहीं रेलवे सिस्टम में सुधार की भारी गुंजाइश के बीच अपने अनुभव का लाभ भारत को दे सकता है। इस संबंध में मोदी की यात्रा के वक्त समझौते की संभावना है। मेक इन इंडिया प्लान में भी चीन भारत को सहयोग कर सकता है।
मोदी के चीन दौरे के समय सीमा मुद्दे पर भी चर्चा होगी। जानकार कहते रहे हैं कि सीमा मसले का हल बातचीत के जरिए ही संभव है। इस दिशा में दोनों ओर से पिछले कुछ वर्षों में प्रयास भी तेज हुए हैं। भारत और चीन की सेनाओं के बीच बेहतर संवाद कायम हुआ है, जो सीमा पर शांति बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वैसे चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे के बाद कहा गया था कि दोनों पक्ष सीमा विवाद के हल की दिशा में काम करेंगे। मार्च में भारत और चीन के बीच सीमा वार्ता दिल्ली में हुई थी। मोदी जब चीन पहुंचेंगे तो बात आगे बढ़ सकती है।
चीनी नेता भी भारत के साथ रिश्तों की अहमियत को समझते हैं, यही वजह है कि वे बार-बार सीमा पर यथास्थिति और शांति बनाए रखने पर जोर देते हैं।
शी चिन फिंग की भारत यात्रा में दोनों के बीच रेलवे विकास, इंफ्रास्ट्रक्चर आदि कई अहम करार हुए थे। जब मोदी चीन की धरती पर कदम रखेंगे तो इससे आगे जाकर समझौते होंगे। मोदी का वैसे भी चीन से नाता कोई नया नहीं है, वह गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए कई बार चीन आ चुके हैं। चीनी कंपनियों की गुजरात में व्यापक मौजूदगी इस बात का सबूत है कि चीन को मोदी रास आते हैं। विशेषकर जब बात बिजनेस की हो। कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पहली चीन यात्रा में मोदी निवेशकों को लुभाने का पूरा प्रयास करेंगे। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद चीन सरकार ने उनकी छवि को बहुत ही सकारात्मक ढंग से पेश किया था। चीन मानता है कि मोदी भारत को विकास की पटरी पर दौड़ाने की क्षमता रखते हैं।
वैसे 2015 में चीन-भारत राजनयिक संबंध स्थापना की 65वीं जयंती भी है। इसके चलते दोनों देशों की सरकारें सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने पर बल दे रही हैं। साथ ही पर्यटकों को आकर्षित करने की कोशिश भी है।
दुनिया की दो सबसे बड़ी आबादी वाले देशों के बेहतर संबंध न केवल एशिया बल्कि समूची दुनिया के लिए अहम है। क्षेत्रीय समस्याओं के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर दोनों सहयोग कर रहे हैं। जिसमें जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद प्रमुख है। भारत आतंकवाद का शिकार है, जबकि चीन भी हाल के वर्षों में आतंकी गतिविधियों से परेशान रहा है। दोनों पक्ष एक-दूसरे से इस दिशा में भी सहयोग करने की अपेक्षा रखते हैं। मोदी और शी चिनफिंग की भेंट के दौरान इस पर विचार-विमर्श हो सकता है। वहीं व्यापारिक रिश्तों को मजबूती देने पर भी जोर दिया जाएगा। इसके साथ ही चीन चाहेगा कि भारत में उसे निवेश के और अधिक मौके मिलें। चीन भारत के रेलवे प्रोजेक्ट्स पर विशेष रुचि दिखा रहा है। उसे उम्मीद है कि मोदी की यात्रा के दौरान इस बाबत महत्वपूर्ण समझौते होंगे।
चीन पिछले कुछ वर्षों से समुद्री सिल्क मार्ग वाले देशों के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए काम कर रहा है, इसमें उसे भारत का भी सहयोग चाहिए।
वहीं बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार (बीसीआईएम) काॅरिडोर पर भी चीन भारत को अपने साथ लेकर चलना चाहता है। इसके साथ ही चीन एशियाई आधारभूत संस्थापन निवेश बैंक यानी एआईआईबी की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध है। भारत पहले ही इस बैंक का सदस्य बन चुका है, आने वाले समय में भारत को तेजी से विकास करने और निर्माण परियोजनाओं के लिए आर्थिक मदद की दरकार होगी। जो इसके माध्यम से भी मिल सकती है।
भारत और चीन के बारे में कहा जाता है, कि पड़ोसी होते हुए भी यहां के लोग एक-दूसरे के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं रखते हैं। पर हाल के वर्षों में पीपुल-टू-पीपुल कांटैक्ट को बढ़ावा दिया गया है।
भारत और चीन को एक-दूसरे पर भरोसा करते हुए रिश्तों को आगे बढ़ाना होगा। क्योंकि सीमा मसले के अलावा भी दोनों के बीच संबंध बेहतर करने की काफी गुंजाइश है। इसमें व्यापार बड़ी भूमिका निभा सकता है। मोदी और शी जब चीन में मिलेंगे तो उनके जहन में यह बात जरूर होगी।
(लेखक:अनिल आजाद पांडेय)