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    मोदी की यात्रा में सहयोग की सम्भावनाएं
    2015-05-13 13:16:47 cri

    पिछले साल सितम्बर में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की भारत यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच सहयोग का जो माहौल बना था उसकी तार्किक परिणति अब नरेंद्र मोदी की चीन-यात्रा में देखने को मिलेगी। इस यात्रा के तत्काल बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा का नया रास्ता खुलेगा, जो प्रतीक रूप में नए रिश्तों की बुनियाद बनेगा। इस यात्रा का वृहत् सांस्कृतिक, राजनयिक, राजनीतिक और आर्थिक महत्व है जो आने वाले दिनों में वैश्विक मंच पर दिखाई देगा। पिछले साल सितंबर में दोनों देशों के बीच नाथूला वैकल्पिक मार्ग से यात्रा शुरू किए जाने को लेकर समझौते पर दस्तखत हुए थे।

    नरेंद्र मोदी की यात्रा की तैयारी के सिलसिले में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल चीन का दौरा कर चुके हैं। फरवरी में अपनी यात्रा के दौरान सुषमा स्वराज ने भारत-चीन संबंधों को मजबूत बनाने के लिए छह सूत्री मॉडल पेश किया था। इसके तहत दोनों देशों को कार्योन्मुखी रूख, व्यापक आधार वाले द्विपक्षीय रिश्ते, सामान्य, क्षेत्रीय और वैश्विक हितों को साथ लेकर चलें और सहयोग के नए क्षेत्रों का विकास, कामकाजी संपर्क के विस्तार का काम शामिल है। ताकि 'एशियाई सदी' को विकसित करने की समान कामनाओं को पूरा किया जा सके।

    नई दुनिया का निर्माण

    इनमें सबसे महत्वपूर्ण काम है उभरती अर्थ व्यवस्थाओं के रिश्तों को मजबूत करना। चीन एक दशक बाद यानी 2024 के आसपास दुनिया की नम्बर एक अर्थव्यवस्था बन जाएगा। उसके अगले एक दशक में भारत की अर्थव्यवस्था भी चीन के पीछे-पीछे तेजी से प्रगति करेगी। जरूरी है कि भारत जल्द से जल्द अपनी संवृद्धि दर को डबल डिजिट में लाए। इसके लिए भारत को पूँजी निवेश और नवीनतम तकनीक चाहिए। साथ ही अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए ऐसी नीतियां जो दक्षिण एशिया से प्रशांत क्षेत्र तक शांति और स्थिरता कायम करें।

    भारत-चीन वार्ता का दूसरा पहलू है विवादों और असहमतियों को दूर करना। इसमें सीमा को लेकर बातचीत शामिल है। इसके अलावा दक्षिण एशिया में शांति-सहयोग तथा आतंकवाद से जुड़े सवाल भी है। दक्षिण एशिया से एक ओर मध्य एशिया और दूसरी ओर दक्षिण पूर्व एशिया तथा सुदूर पूर्व तक कारोबार और सम्पर्क को बढ़ाने का काम भी इसमें शामिल है।

    पिछले साल सितम्बर में चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी चिनफिंग की यात्रा अब तक चीन से आए किसी भी नेता की सफलतम यात्रा थी। चीन में 1949 की क्रांति के बाद 1 जनवरी 1950 को भारत ने जब उसे मान्यता दी तब कम्युनिस्ट खेमे के बाहर उसे मान्यता देने वाला वह पहला देश था। दुनिया की दो प्राचीनतम सभ्यताएं अब एक नई दुनिया के निर्माण के दरवाजे पर खड़ी हैं। आर्थिक सहयोग को देखें तो दोनों के सामने सम्भावनाओं का असीम आकाश है। वैश्विक अर्थ-व्यवस्था के विस्तार में आए धीमेपन को दूर करने के सूत्र इन दोनों के सहयोग पर निर्भर करेंगे।

    विवाद के मसले

    शी चिनफिंग की यात्रा के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में कहा गया था कि अब दोनों सरकारों का ध्यान सीमा के मसलों को सुलझाने पर केंद्रित होगा। भारत-चीन सीमा-वार्ता का अठारहवां दौर मार्च के महीने में दिल्ली में हुआ है। दोनों देश चाहते हैं कि जल्द से जल्द वास्तविक नियंत्रण रेखा को परिभाषित किया जाए। उसके बाद समाधान के दूसरे चरण की ओर बढ़ा जाए।

    भारत और चीन के बीच रिश्तों में पाकिस्तान के कारण भी भ्रम पैदा होता है। नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान सम्भवतः उससे जुड़े सवाल भी उठेंगे। खासतौर से सन 2008 में मुम्बई में हुए हमले तथा अन्य आतंकवादी गतिविधियों के बाबत भारत अपनी राय चीन के सामने रखेगा। मोटे तौर पर चीन दूसरे देशों के मामले में हस्तक्षेप न करने की नीति पर चलता है, पर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वह शामिल है। चीन और पाकिस्तान के रिश्ते बहुत अच्छे हैं, पर थोड़ी सी सावधानी चीन को दोनों देशों के बीच संतुलन स्थापित करने में मदद कर सकती है।

    भारत के साथ चीन का आर्थिक सहयोग असाधारण रूप से बढ़ने वाला है। अफगानिस्तान और मध्य एशिया के आर्थिक विकास में भारत और चीन की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। दक्षिण एशिया सहयोग संगठन में भी भविष्य में चीन की भूमिका सम्भव है। यह आर्थिक भूमिका क्षेत्रीय शांति और सहयोग में भी मददगार होगी। इसमें चीन को भारतीय हितों को भी ध्यान में रखना होगा।

    अंतरराष्ट्रीय सहयोग

    राजनीतिक, सामरिक और पर्यावरणीय सवालों को लेकर अंतरराष्ट्रीय संगठनों में दोनों देशों के सहयोग और समन्वय की अच्छी सम्भावनाएं हैं। आने वाले समय में वैश्विक संगठनों के स्वरूप में भी गुणात्मक बदलाव होगा। हाल में यमन में अशांति के बाद दोनों देशों ने अपने नागरिकों को वहां से बाहर निकालने का अभियान चलाया। दोनों देशों की अर्थ-व्यवस्था का जैसे-जैसे विस्तार हो रहा है वैसे-वैसे उनके नागरिक बाहर के देशों में काम पर जाने लगे हैं। बीच-बीच में अशांति तथा आपदा के मौके भी आते हैं। दोनों इस काम में एक-दूसरे से सहयोग कर सकते हैं।

    भारत की दृष्टि से देखें तो इंफ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए हमें भारी निवेश चाहिए। चीन के साथ हमारा कारोबार असंतुलित है। इसे संतुलित बनाने की जरूरत है। भारत ने चीन के साथ अंतरिक्ष अनुसंधान और नाभिकीय ऊर्जा के असैनिक इस्तेमाल के समझौते किए हैं। सितम्बर 2014 में दोनों देशों के बीच कुल 12 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए और साझा घोषणापत्र भी जारी किया गया।

    दोनों देशों ने असैन्य परमाणु सहयोग पर वार्ता शुरू करने का फैसला किया। पाँच साल के लिए भारत और चीन के बीच व्यापारिक समझौता, औषधि निर्माण और उनसे जुड़े मसले, भारत में रेल के विकास में चीनी मदद को लेकर समझौते भी हुए। चीनी सहयोग से दो औद्योगिक पार्क बनाने, रेलवे के उच्चीकरण और शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के समझौते दूरगामी परिणाम देंगे। चीन अंतरिक्ष स्टेशन तैयार कर रहा है। भारत ने अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए चीन के साथ सहयोग करने का निर्णय किया है।

    समुद्री सिल्क मार्ग

    सन 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी की चीन यात्रा के दौरान चीन ने सिक्किम में भारत की सम्प्रभुता को स्वीकार किया था। यह एक राजनीतिक सफलता थी, साथ ही परम्परागत रास्तों को खोलने की शुरुआत भी। सन 2004 में दोनों देशों ने नाथूला और जेपला नामक दो दर्रों को खोलने का समझौता किया। इन दर्रों से होकर तिब्बत और सिक्किम के बीच सैकड़ों साल से आवागमन चलता था। नाथूला मार्ग प्राचीन सिल्क रोड या रेशम मार्ग की एक शाखा रहा है।

    बीसवीं सदी की शुरुआत में भारत और चीन के होने वाले व्यापार का 80 प्रतिशत हिस्सा नाथूला के जरिए ही होता था। ला शब्द तिब्बती भाषा में दर्रे का अर्थ रखता है। रेशम मार्ग प्राचीन और मध्यकाल में ऐतिहासिक व्यापारिक मार्गों का जाल था जिसके जरिए एशिया, यूरोप और अफ्रीका जुड़े हुए थे। इसमें सबसे प्रसिद्ध उत्तरी रेशम मार्ग है जो चीन से होकर पश्चिम की ओर पहले मध्य एशिया में और फिर यूरोप में जाता था और जिस से निकलती एक शाखा भारत की ओर जाती थी। इसका नाम चीन से आने वाले रेशम पर पड़ा। पर यह केवल सिल्क मार्ग ही नहीं था। भारत की दृष्टि से यह 'कॉटन मार्ग' भी था। इसी रास्ते से भारतीय सूत और परिधान चीन और दूसरे देशों को जाता था।

    15वीं से लेकर 18वीं सदी तक भारत और चीन का आधे वैश्विक व्यापार पर नियंत्रण था। दोनों देशों का यह प्रभुत्व 19वीं सदी में भारत को ब्रिटेन द्वारा उपनिवेश बनाए जाने तक कायम था। दोनों के बीच व्यापार का काफी बड़ा हिस्सा समुद्री रास्ते से था, पर कुछ व्यापार जमीनी रास्ते से भी होता था। दोनों देशों के बीच दक्षिण सिल्क रोड भी कभी चलती थी। म्यांमार और बांग्लादेश के रास्ते भारत को जोड़ने वाले इस रास्ते को भी फिर से शुरू करने की कोशिशें भी हो रही हैं।

    पिछले साल मालदीव, श्रीलंका और भारत की यात्रा के दौरान चीनी राष्ट्रपति ने दक्षिणी चीन सागर और हिंद महासागर को जोड़ने वाले नौवहन सिल्क रोड के विकास पर भी चर्चा की थी। शी ने खास तौर से दक्षिणी सिल्क रोड को पुनर्जीवित करने में अपनी दिलचस्पी दिखाई जिसे बीसीआईएम (बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार) कॉरिडोर के नाम से जाना जाता है।

    समान लक्ष्य विकास

    शी चिनफिंग ने दिल्ली में कहा था कि चीन और भारत दोनों देशों का सबसे बड़ा समान लक्ष्य है विकास। चीन को विश्व का कारखाना माना जाता है। जबकि भारत विश्व का कार्यालय कहा जाता है। अपने द्वार पश्चिम की ओर खोलने की चीन की नीति और पूर्व की ओर खोलने की भारत की नीति को जोड़ा जाना चाहिए। चीन और भारत को इस क्षेत्र के विकास को आगे बढ़ाने की एक्सप्रेस गाड़ी बनकर क्षेत्र के विभिन्न देशों के समान विकास को आगे बढ़ाना चाहिए, संबंधित देशों के साथ क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण का विकास करने की जरूरत है।

    शी चिनफिंग की भारत यात्रा के बाद अक्तूबर 2014 में चीन की पहल पर एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) के गठन की घोषणा की गई थी। भारत भी इसके संस्थापक सदस्यों में से एक है। वस्तुतः यह बैंक विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक के समांतर एक नई संस्था के रूप में सामने आया है। इसमें अमेरिका, कनाडा और जापान को छोड़ दुनिया के ज्यादातर देशों ने सदस्य बनने की अर्जी दी है।

    भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास में इस बैंक की भारी भूमिका होगी। भारत को अपने आधारभूत ढांचे के विकास के लिए तकरीबन एक लाख करोड़ डॉलर (1 ट्रिलियन) की जरूरत है जिसे विश्व बैंक और एडीबी पूरा नहीं कर सकते हैं। इस बैंक से भारत के लिए नए विकल्प खुलेंगे। दूसरी ओर चीनी पूँजी के निवेश के लिए दूसरे देशों के मुकाबले भारतीय अर्थ-व्यवस्था सुरक्षित और स्थिर साबित होगी। भारत, चीन, ब्राजील, रूस और दक्षिण अफ्रीका के सहयोग संगठन 'ब्रिक्स' की भूमिका भी आने वाले समय में महत्वपूर्ण होगी। रूस ने भी एआईआईबी में शामिल होने का फैसला किया है। 'ब्रिक्स' पाँचों देश इसमें शामिल हैं।

    सांस्कृतिक रिश्ते

    प्रधानमंत्री मोदी अपनी यात्रा के दौरान चीन में बसे भारतीय समुदाय के लोगों को भी संबोधित करेंगे। चीन में बसे 45000 भारतीयों को एक जगह पर संबोधित करने वाले वह पहले भारतीय नेता होंगे। इसके साथ दोनों देशों के हजारों साल पुराने रिश्तों की कडि़यां भी खुलेंगी। चीन में भारतीय इंजीनियरों, डॉक्टरों, छात्रों और व्यापारियों की संख्या बढ़ रही है। सम्भवतः मोदी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के गृह नगर शानसी जाएंगे। पिछले साल सितंबर में हुई भारत यात्रा के दौरान मोदी ने अपने गृह राज्य गुजरात में शी चिनफिंग की मेजबानी की थी। इस प्रकार का प्रतीकात्मक आदान-प्रदान हमें अतीत से जोड़ेगा और भविष्य की ओर ले जाएगा।

    (लेखक:प्रमोद जोशी।)

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