इक्कीसवी सदी में वैश्विक स्थिति में कोई भी बदलाव क्यों न आए, चीन और भारत का उत्थान अवश्य ही अहम अंतर्राष्ट्रीय घटना होगा। दोनों हजारों साल पुरानी सभ्यता वाले प्राचीन देश हैं और बड़े विकासशील देश भी हैं। और साथ ही नवोदित आर्थिक समुदाय के दो सबसे बड़े प्रतिनिधियों के रूप में दोनों देशों के संबंधों का विकास न सिर्फ दोनों देशों की जनता के भविष्य और कल्याण से जुड़ता है, बल्कि वैश्विक आर्थिक संरचना और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक सत्ता के ढांचे का पुनर्निर्माण भी करेगा। चीन भारत के संबंध विश्व में सबसे अहम द्विपक्षीय संबंधों में से एक हैं। जल्द ही संबंधों को तब और मजबूती मिलेगी, जब दोनों देशों के प्रमुख नेता मुलाकात करेंगे। अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय ज्वलंत मुद्दों पर चीन और भारत के बीच व्यापक सहमतियां मौजूद हैं। इसलिए विश्वास करने की पूरी वजह है, चीन में होने वाली भेंट में जरूर उपलब्धियां हासिल होंगी।
लेकिन यह भी देखने में आ रहा है कि वर्तमान में चीन-भारत संबंध, विशेष रूप से व्यापारिक व आर्थिक संबंध भारी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। ये चुनौतियां मुख्य तौर पर विश्व की आर्थिक अनिश्चितता में हैं। मिसाल के लिए अमेरिका की मौद्रिक नीति की अनिश्चितता, यूरोप की अस्पष्ट आर्थिक स्थिति, जापान के आर्थिक विकास का अप्रत्याशित भविष्य, नवोदित आर्थिक समुदायों में स्पष्ट विभाजन आदि। इसके साथ-साथ वैश्विक आर्थिक वृद्धि असंतुलन की स्थिति में है। एशिया, दक्षिण अफ्रीका आदि नवोदित और विकासशील आर्थिक समुदायों की आर्थिक गति तेज है। जबकि अमेरिका आर्थिक वृद्धि की बहाली तेज करने की कोशिश में जुटा है और जापान व यूरोप की कमजोर आर्थिक वृद्धि जारी है।
इसी पृष्ठभूमि में चीन-भारत संबंधों की मजबूती और आर्थिक व व्यापारिक विकास बढ़ाना एकमात्र विकल्प नजर आता है। दोनों देशों को एशियाई सदी का समान निर्माण करते हुए वर्तमान वैश्विक अर्थ व्यवस्था को तोड़कर अपनी शक्ति और सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है। और नवोदित बाजार के हितों के अनुरूप नयी वैश्विक अर्थ व्यवस्था स्थापित करनी होगी।
प्राचीन समय से ही चीन व भारत एक दूसरे से बहुत कुछ सीखते रहे हैं। पहली शताब्दी ईस्वी से चीन व भारत ने व्यापक और घनिष्ठ ऐतिहासिक व सांस्कृतिक संपर्क शुरू किया था। खासतौर पर बौद्ध धर्म के भारत से चीन में फैलने के साथ-साथ दोनों देशों के बीच संस्कृति, कला, धर्म, दर्शनशास्त्र, चिकित्सा, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में आदान-प्रदान और सहयोग विश्व भर में पहुंचा। प्राचीन रेशम मार्ग दोनों देशों के बीच आर्थिक-व्यापारिक संपर्क व सांस्कृतिक आदान-प्रदान का गवाह माना जाता है।
वर्तमान में एक पट्टी एक मार्ग यानी रेशम मार्ग आर्थिक पट्टी और 21वीं सदी समुद्री रेशम मार्ग, बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक कॉरिडोर की कल्पना ने चीन-भारत संबंधों के विकास ने नया अध्याय जोड़ा है। एशियाई अर्थव्यवस्था के दो इंजन के रूप में चीनी ऊर्जा और भारतीय बुद्धि के मिश्रण से विकास की भारी संभावना है।
चीन व भारत का आर्थिक ढांचा एक-दूसरे के पूरक है, जिसमें सहयोग की व्यापक संभावना और विकास की बड़ी गुंजाइश है। सारांश में बुनियादी सुविधाओं का निर्माण, निर्माण क्षेत्र का विकास, विशेष रूप से वैश्वीकरण की प्रक्रिया में चीन का अनुभव भारत के लिए सीखने लायक है। गत् तीन दशकों में सुधार व खुलेपन के बाद चीन में वैश्वीकरण का स्तर ऊंचा है। चीन दुनिया में सबसे बड़ा व्यापारिक देश बन चुका है। साथ ही भारत का आर्थिक विकास तेज है, सॉफ्टवेयर उद्योग बहुत विकसित है और फार्मा सेक्टर में उपलब्धियां भी उत्कृष्ट हैं। भारत ने अपने प्रतिस्पर्धी उद्योगों का पश्चिमी देशों में सफल प्रचार किया, चीन को इससे सीखने की जरूरत है।
चीन व भारत के आर्थिक व व्यापारिक सहयोग के कुछ आधार हैं। चीन भारत का पहला बड़ा व्यापारिक साझेदार बन चुका है। जबकि भारत बहुत समय पहले से चीन का दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। दस साल पहले, चीन व भारत का कुल व्यापार सिर्फ 1 अरब डॉलर था, जो वर्तमान में लगभग 70 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। दोनों देशों के व्यापार के खरब डॉलर से ज्यादा होने की संभावना जताई जा रही है। रेल, हवाई अड्डा, बिजली घर, बंदरगाह, पुल आदि बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के क्षेत्रों, सॉफ्टवेयर, फार्मास्यूटिकल आदि भारत की विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में विकास की व्यापक संभावना है। वहीं आईएमएफ, विश्व बैंक, ब्रिक्स बैंक और एशियाई आधारभूत संस्थापन निवेश बैंक (एआईआईबी) आदि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय क्षेत्रों में चीन और भारत के विकास असीमित संभावना है।
सीमा विवाद के अलावा कुछ दूसरे मुद्दों पर भी दोनों देशों के बीच मतभेद मौजूद हैं। हालांकि जब दोनों देश पंचशील सिद्धांत की भावना के आधार पर आपसी विश्वास व सहमतियों को बढ़ाएंगे। पारस्परिक लाभ वाले सहयोग संबंधों का सक्रिय विकास करेंगे और एक दूसरे के हितों व चिंताओं पर ध्यान देंगे, तो चीन-भारत संबंधों का भविष्य जरूर बेहतर होगा।
(लेखक सोंग हाईश्याओ:क्वांगतुंग अंतर्राष्ट्रीय रणनीति अनुसंधान संस्था में प्रोफेसर हैं।)