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    तिब्बत में मनाई जा रही हैं भू-दास मुक्ति दिवस की खुशियां
    2015-03-27 16:50:59 cri

    56 साल पूर्व तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार किया गया था। इससे तिब्बत में सामंती भू-दास व्यवस्था का अंत कर दिया गया, इससे दस लाख भू-दासों को मुक्ति मिली थी। लम्बे अरसे से सामंती कुलीन वर्ग के शोषण तले दस लाख दलित भू-दास सामंती व्यवस्था के शिकंजे से छुटकारा पाकर आजाद हो गए और वे अब स्वतंत्र हो चुके थे। वर्ष 2009 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की जन प्रतिनिधि सभा के दूसरे अधिवेशन में मतदान से निर्णय लिया गया कि हर वर्ष 28 मार्च को दस लाख भू-दासों की मुक्ति की खुशी में भू-दास मुक्ति दिवस मनाया जाएगा। 28 मार्च 2015 को तिब्बती लोगों के दस लाख भू-दासों की मुक्ति दिवस मनाने का सातवां वर्ष है। तिब्बत में विभिन्न जातियों के लोगों ने अपने अपने तरीके से इस दिवस की खुशियां मनाईं। तिब्बती नागरिकों की नज़र में पिछले 56 वर्षों में तिब्बत में जमीन आसमान का परिवर्तन आया है।

    72 वर्षीय सोलांग पाचू ल्हासा के छङक्वान जिले में रहते हैं। 1959 में लोकतांत्रिक सुधार होने से पहले वे 16 वर्षों तक पुराने तिब्बत में रहते थे। उन्होंने कहा कि पुराने ज़माने में आज के जैसा सुखमय जीवन बिताना दिवास्वप्न था। सोलांग पाचू ने याद करते हुए कहा कि पहले उनके गांव में 50 से अधिक लोग रहते थे, वे सभी भू-स्वामी की सेवा करते थे। उस समय उनके पास न तो पेट भरने के लिये न तो खाना था और न ही उनके पास पर्याप्त कपड़े थे। उस समय भू-दास का जीवन बिलकुल पशु की तरह था।

    28 मार्च 1959 को तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार किया गया। तभी राजनीतिक और धार्मिक मिश्रण वाली सामंती भू-दास व्यवस्था खत्म की गई। सोलांग पाचू का जागीरदार के शोषण वाला जीवन खत्म हुआ। वर्तमान में अपने जीवन की चर्चा पर उन्होंने कहा:

    "अब हमारे गांव में जमीन आसमान का परिवर्तन आया है। गांव की स्थाई जनसंख्या 36000 है। यहां हान जाति और तिब्बती जाति के लोग सामंजस्यपूर्ण तौर पर एक साथ रहते हैं। गांव में बेरोज़गारी नहीं है और न ही गरीब परिवार हैं। इस गांव की आय प्रति ग्रामवासी औसतन 16 हज़ार युआन है।"

    32 वर्षीय चिनमेई त्सेतान विदेश से स्वदेश लौटे तिब्बती बंधु हैं, जो ल्हासा में सबसे लोकप्रिय वाणिज्यिक केंद्र बाखोर सड़क पर एक दुकान के मालिक हैं। उनकी नज़र में स्थानीय नागरिकों का आधुनिक जीवन सामान्य बात है। यह तिब्बत में हुए भारी परिवर्तन का द्योतक है। उनका कहना है:

    "पिछले दसेक वर्षों में उच्च स्तरीय मार्ग, हवाई अड्डे, रेलवे सेवा, केबल सेवा और 4जी दूरसंचार के नेटवर्क जैसे आधुनिक उपकरण क्रमशः तिब्बत की प्राचीन जमीन पर लाए गए हैं। लेकिन आजकल स्थानीय लोगों को इसपर कोई आश्चर्य नहीं होता। मुझे लगता है कि यह धरती पर एक करिश्मा है।"

    71 वर्षीय लुनचू छ्वुच्वे ल्हासा में सेरा मठ के भिक्षु हैं। कुछ दिनों पहले उन्होंने मठ के करीब 30 भिक्षुओं के साथ ल्हासा में शहरी परियोजना निर्माण प्रदर्शनी को देखा। जिसमें पुराने और वर्तमान काल में ल्हासा के शहरी निर्माण के बारे में दिखाया गया था। लुनचू छ्वुच्वे को ल्हासा में आए भारी परिवर्तन को देखकर आश्चर्य लगता है। पांच साल की उम्र में घर में गरीबी के कारण उनके माता पिता ने उन्हें मठ में भेजा। उस समय लुनचू छ्वुच्वे कभी कल्पना नहीं कर सकते थे कि वृद्धावस्था में वे मठ के वृद्ध सदन में प्रतिभूति वाले जीवन का उपभोग कर सकेंगे। सेरा मठ में वृद्ध सदन की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा:

    "वृद्ध सदन में कुल 40 से अधिक वृद्ध भिक्षु रहते हैं। हर 3 या 5 महीने में हर एक व्यक्ति को 300 से 1000 युआन की सब्सिडी राशि दी जाती है। यहां हम अच्छी तरह अपने धार्मिक विश्वास का पालन कर सकते हैं। यहां पर साधारण जीवन अच्छा है और चिकित्सीय गारंटी भी दी जाती है।"

    तिब्बत में तिब्बती बौद्ध धर्म, स्थानीय बोन धर्म, इस्लाम धर्म और कैथोलिक धर्म साथ-साथ मौजूद हैं। चीन की केंद्र सरकार और तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सरकार नागरिकों के स्वतंत्र धार्मिक विश्वास का सम्मान करती है। विभिन्न प्रकार के धर्मों को तिब्बत में समानता के साथ सम्मान और संरक्षण दिया जाता है।

    ल्हासा शहर में इस्लाम धर्म की मस्जिद के ईमाम अली ने इस वर्ष 28 मार्च को दस लाख भू-दासों की मुक्ति दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित संगोष्ठी में कहा कि देश में विभिन्न जातियों के लिए धार्मिक नीति अच्छी तरह लागू की जा रही है। मुसलमानों की धार्मिक मांग को भी पूरा किया जाता है। उन्होंने कहा:

    "अब हमारे मस्जिद में एक बहु जातीय विशेषता वाला भवन उपलब्ध है। जिससे विभिन्न जातियों की धार्मिक सांस्कृतिक सामंजस्य के बारे में पता चलता है।"

    मध्य चीन के आन्ह्वेई प्रांत से आए युवा योंग चीछ्यांग ल्हासा के पहले प्राइमरी स्कूल में चौथी कक्षा के अध्यापक हैं। छह साल पहले वे तिब्बत आए थे। उनकी नज़र में 28 मार्च को समृति दिवस ही नहीं, विकास को प्रेरणा देने का दिन भी है। उन्होंने कहा कि अपनी स्थापना के शुरुआती दिनों में इस स्कूल में सिर्फ़ ईंटों से बने कुछ कमरे थे। उस समय स्कूल में सिर्फ़ 600 से अधिक छात्र पढ़ते थे। लेकिन आज स्कूल में नई - नई इमारतें और विविधतापूर्ण शैक्षिक उपकरण उपलब्ध हैं। सरकार साल दर साल शिक्षा राशि देती है। स्कूल में विभिन्न जातियों के 2 हज़ार से ज्यादा विद्यार्थी बहुत खुशी के साथ यहां पर पढ़ाई करते हैं। अध्यपक योंग चीछ्यांग ने कहा:

    "पहले लोग कहते थे कि गरीब परिवार के बच्चे शिक्षा नहीं पा सकते। लेकिन आज विद्यार्थी चाहे गरीब परिवार से हों, या अमीर परिवार से, वे एक साथ एक ही क्लासरूम में पढ़ते हैं और वे खुशी खुशी पले-बढ़े हैं।"

    मित्रों, इस वर्ष मार्च के महीने में अभी अभी समाप्त चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा की स्थाई समिति और चीनी राष्ट्रीय जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की राष्ट्रीय समिति के पूर्णाधिवेशनों में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के अध्यक्ष लोसांग ग्याल्ट्सेन ने कहा कि वर्तमान में तिब्बती लोगों के सुखमय जीवन को बनाए रखने के लिए 70 प्रतिशत वाले सरकारी वित्त का प्रयोग जन जीवन को सुधारने में किया गया है। साथ ही जन जीवन से जुड़ी 30 से अधिक सहायता और समर्थन वाली नीतियों का कार्यान्वयन किया गया। तिब्बत में शिक्षा के क्षेत्र में "तीन नि:शुल्क वाली नीति"यानी तिब्बती विद्यार्थियों को मुफ्त भोजन, मुफ्त आवास और मुफ्त पढ़ाई वाली नीति अपनायी गई है। किंडरगार्टेन से हाई स्कूल तक 15 वर्षों की नि:शुल्क शिक्षा साकार हो गया और विभिन्न सामाजिक बीमा में 26 लाख लोगों की भादीगारी हो चुकी है। इसके साथ ही कृषि और पशुपालन क्षेत्रों में भी मुफ्त चिकित्सा व्यवस्था को अपनाया गया है।

    (श्याओ थांग)

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