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धुर उत्तर-पश्चिमी छोर पर
2015-04-13 16:26:52 cri

खनास झील

पोलचिन नदी खनास झील से निकलने के बाद खनास गांव के किनारे से गुजरती है। मैंने पहली बार इतनी सुन्दर व साफ नदी देखी। नदी का पानी अत्यंत नीला था और नदी की सतह पर लहरें सूरज की रोशनी में चमक रही थीं, मानो अनगिनत हरितमणियां नदी में गिर रही हों। यह देखकर मुझे इतनी खुशी हुईं कि मैं अपने कैमरे का बटन दबाता रहा और इच्छा हुई कि इस नदी में तैरने के लिए फौरन ही कूद पड़ूं।

रात में मैं नारनह्वा नाम की एक महिला के घर में ठहरा, जिसकी शादी हाल ही में हुई थी। वह पाएहापा गांव की रहने वाली थी। इस क्षेत्र के निवासियों का शादी-व्याह इन दोनों ही गांवों तक सीमित है, इसलिए इन गांवों में ऐसे ही सगे-संबंधी बसे हुए हैं।

अंधेरी रात में ही मैंने दूध की चाय, नान, मक्खन और दूध से बने अन्य व्यंजन खाए। चूंकि पाएहापा से घोड़े पर तीन-चार घंटे का रास्ता तय करके यहां आया था, इसलिए मुझे थकान व भूख महसूस हो रही थी। मैंने चाय व नान से अपना पेट भरा। मगर मालकिन ने विशेष तौर पर मेरे लिए एक भेंड़ काटी और जातीय तरीके से भूना हुआ मांस मुझे खिलाया। पाएहापा और खनास में बसे मंगोल और कजाख जाति के लोग बड़े मेहमाननवाज है।

जब मैं घोड़े पर सवार होकर खनास गांव को छोड़ रहा था तो उस समय यह छोटा सा गांव कोहरों की चादर में लिपटा हुआ था और वहां एक विचित्र रहस्य फैला हुआ था।

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