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    छाडंथाडं पठार की ज्वालामुखियां
    2014-12-29 18:23:20 cri

    उत्तरी तिब्बत में छाडंथाडं पठार और उसके उत्तरी भाग में स्थित खुनलुन पर्वतमाला का प्रदेश चीन के अन्तर्देशीय नवजीव कल्पीय ज्वालामुखी क्षेत्रों में से एक है। इसके ज्वालामुखीय चट्टान-क्षेत्रों में बामोछोजोम, योनगबो झील, चिनजोइन झील और छांगबाछेन बहुत मशहूर हैं। मई 1951 में इस क्षेत्र के पश्चिम के कारडास ज्वालामुखी समूह में जोरदार विस्फोट हुआ।

    ज्वालामुखी के विस्फोट एक अनोखे दृश्य का सृजन करते हैं। कुछ अवस्थाओं में गर्जनकारी विस्फोट से गरम और चमकदार लावे व शिलाएं ऊपर वायुमंडल में उड़ने लगती हैं और धरती कांपने लगती है। अन्य अवस्थाओं में लावे स्तरभ्रंश दरारों से निकल कर भूमि का सतह पर स्थिरता से बहने लगते हैं और निचली घाटियों या दर्रों में फैल जाते हैं। भूतत्व-शास्त्री ठंडे लावे का वर्णन करने के लिए "लावे की बाढ़"या"लावे के फर्श"आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं।

    कुछ ज्वालामुखीय चट्टानें, जो छाडंथाडं पठार को कालीन की तरह ढक देती हैं, अपक्षप के कारण मेजनुमा, मंचनुमा और कूबड़नुमा बन गई हैं, अन्य कुछ इक्के-दुक्के स्तूप या गोलाकार चट्टानें बन गई हैं। बामोछोजोम में अनोखे पत्थरीले जंगल और बेजोड़ खूबसूरत स्तम्भ पाए जाते हैं।

    चीनी विज्ञान अकादमी के अधीन छिडंहाए-तिब्बत पठार वैज्ञानिक सर्वेक्षण-दल द्वारा छाडंथाडं पठार के ज्वालामुखीय क्षेत्र पर किए गए प्रारंभिक भूतत्वीय सर्वेक्षण से यह पता चला कि कई सौ किलोमीटर तक फैली ज्वालामुखीय चट्टानें मुख्य रूप से उत्तरी छाडंथाडं पठार में बिखरी हैं। यह छिडंहाए-तिब्बत पठार की मुख्य भूतत्वीय विशेषताओं में से एक है। पठार की रचना के कारणों का पता लगाने तथा उसके भूतत्वीय इतिहास को पुनःस्थापित करने के लिए छाडंथाडं की ज्वालामुखीय चट्टानों का अनुसन्धान महत्वपूर्ण है।

    आम तौर पर वारेसकन हरकत से यानी 20 करोड़ साल पहले पुराजीव और मध्यजीव युग के बीच पृथ्वी की ऊपरी परतों में हुई हरकत के समय से, छाडंथाडं पठार की भूपर्पटी रचना राबर स्थिर रही और लावे निकलने की क्रिया कमजोर। मगर नवजीव कल्प में प्रवेश करने के बाद छाडंथाडं पठार तेजी से ऊपर उठ आया और वहां की भूपर्पटी-हरकत में असाधारण तौर पर वृद्धि हुई। इसका सीधा संबंध उत्तर दक्षिणी दबाव के कारण पैदा हुई नई रचना संबंधी हरकत से था।

    अगर भारी हिमालय पर्वतीय हरकत की तुलना पृथ्वी के एक सुन्दर महाकाव्य से की जाए, तो छाडंथाडं पठार की ज्वालामुखीय क्रिया इस महाकाव्य का एक नया सर्ग होगा।

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