चीनी मार्शल आर्ट के लिए प्रसिद्ध हनान प्रांत की तडंफडं काउन्टी में स्थित शाओलिन मंदिर के पश्चिम में ईट-पत्थरों से बना पगोडा समूह हैं। प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षुओं के शव को सुरक्षित रखने के लिए निर्मित ये पगोडा बौद्ध भिक्षुओं की अंत्येष्टि की भारतीय धार्मिक विधि के प्रभाव में बनाए गए हैं।
इस तरह का प्राचीनतम पगोडा हनान प्रांत की आनथाडं काउन्टी के लिडंछ्वेन मंदिर में स्थित है, जिसका निर्माण 563 ई. में भिक्षु ताओ फिडं की अस्थियों को रखने के लिए किया गया था। शाओलिन मंदिर उत्तरी वेइ राजवंश के थाएह शासन काल में निर्मित किया गया, पर उस समय के समाधि पगोडा अब नहीं बचे हैं। अब तक विद्यमान पगोडाओं में सबसे पुराना थाडं राजवंश(618-907) में निर्मित भिक्षु का वान का समाधि पगोडा है। इसका निर्माण 791 ई. में हुआ था।
यहां स्थित 227 समाधि पगोडाओं में से 211 ईंटों से और 16 पत्थरों से बनाये गये हैं। एक मंजिले या बहुमंजिले और एक ओरी या बहुओरी वाले ये पगोडा भिन्न भिन्न आकार के हैं। चौकोर, समकोणीय, गोल, अष्टकोणीय पगोडाओं की अलंकृत खिड़कियां व दरवाजे हैं। प्राचीन चीनी वास्तु कला तथा बौद्ध धर्म के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से ये अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
इनमें से दो पगोडा उल्लेखनीय हैं। एक है 1339 में निर्मित "च्वीआन समाधि पगोडा", जिसका समाधि लेख जापान के चडंफा मंदिर के महंत शाओय्वान ने लिखा, जो उस समय चीन में अध्ययन करते थे। दूसरा वह है, जो एक भारतीय भिक्षु के लिए 1564 में बनाया गया।