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    चीनी वास्तुशिल्प की विशेष शैली व उसकी प्राचीन परम्परा
    2014-10-14 16:59:41 cri

     

    पुरातत्वीय सामग्रियों से यह सिद्ध हुआ है कि 8 हजार वर्ष पूर्व ही चीन में जमीन के ऊपर मकानों का निर्माण होने लगा था। बाद के हजारों वर्षों में स्थायी और सुन्दर वास्तु शैली का विकास हुआ, जिसकी अपनी विशेष पहचान है।

    वास्तु निर्माण के आरंभिक दौर में मनुष्य ने अधिकांशतः काष्ठ का प्रयोग किया। काष्ठ के बाद वास्तु निर्माण में ईट-पत्थरों का प्रचलन हुआ। पर चीन में वास्तु निर्माण में काष्ठ का प्रयोग अधिक लोकप्रिय हुआ। काष्ठ युक्त वास्तु निर्माण की विशिष्ट शैली विकसित हुई। यहां तक कि अनेक ईट-पत्थरों व धातु सामग्रियों से युक्त वास्तु निर्माण की शैली काष्ठ युक्त वास्तु निर्माण जैसी है। इसका एक कारण यह है कि प्राचीन कारीगर किसी अन्य सामग्री के बजाए वास्तु निर्माण में काष्ठ का समुचित व सुंदर प्रयोग करने में अधिक कुशल और पूर्ण थे।

    चीनी वास्तु निर्माण के अलंकरण में भी उपयोगिता व व्यावहारिकता छिपी हुई है। उदाहरण के लिए मौसम व धरती की नमी से काष्ठ को सड़ने से बचाने के लिए उसकी सतह पर वार्निश का लेप लगाया जाता है और काष्ठ संरचना ऊंची नींव पर खड़ी की जाती हैं तथा झुकी हुई छत का निर्माण किया जाता है।

    चूंकि लकड़ी में आग आसानी से लगती है, इसलिए प्राचीन चीनी कारीगर वास्तुओं का आकार सीमित रखते थे और दो वास्तुओं के बीच निश्चित दूरी रखते थे। हालांकि यह आग लगने की आशंका का समाधान तो नहीं था, पर इससे निम्नतर क्षति होती थी। मिडं व छिडं राजवंशों के काल में पेइचिंग शाही निषिद्ध नगर में आग लगने की जानकारी मिलती है, पर सुनियोजित निर्माण के कारण इनमें से कोई भी अनर्थकारी सिद्ध न हुआ।

    वास्तु को अतिरिक्त मजबूती प्रदान करने के लिए चीनी कारीगारों ने खम्भों व धरनों का काष्ठ ढांचा तैयार करने की पद्धति विकसित की थी। ऐसा काष्ठ ढांचा आंधी और भूकंप को झेल सकता है। काष्ठ ढांचे के प्रयोग ने आधुनिक वास्तु निर्माण को कई तरह से प्रभावित किया है। प्राचीन चीन और संभवतः विश्व के सबसे बड़े वास्तु आफाड़ शाही भवन का निर्माण एक बड़े महल के हिस्से के रूप में दो हजार वर्ष पूर्व छिन राजवंश में हुआ। 180000 वर्गमीटर फर्श क्षेत्रफल का यह भवन 6 लाख वर्गमीटर क्षेत्रफल के आधार-मंच पर निर्मित है। सन् 516 में हनान प्रान्त के लोयाडं शहर के युडंनिडं मंदिर में निर्मित 137 मीटर ऊंची मीनार विश्व की प्राचीन ऊंची इमारतों में से एक थी, जिसकी तुलना मिस्र के पिरामिड व फ्रांस के स्त्नासबर्ग के कैथेड्रल के साथ की जा सकती है। उपरोक्त सभी वास्तु अपनी क्षीणता के कारण नहीं, बल्कि आग लगने से भस्म हुए। नौ सौ वर्ष पहले शानशी प्रान्त की इडंश्येन काउन्टी में निर्मित 67.3 मीटर ऊंचा काष्ठ पगोडा विश्व की सबसे ऊंची व पुरानी काष्ठ इमारत है। उसकी दोहरी परतों वाली संरचना आधुनिक इमारतों जैसी है।

    दो हजार वर्ष पूर्व काष्ठ युक्त वास्तु निर्माण में चीनी कारीगरों ने दक्षता हासिल कर ली थी। एक हजार वर्ष पहले उत्तरी सुडं राजवंश काल में चीन के विभिन्न क्षेत्रों के वास्तुकार एकच्तिर हुए और अपने विविध अनुभवों को संग्रहित कर वास्तुशिल्प के निश्चित सूत्र तय किए, इससे वास्तुनिर्माण की शैली और संरचना मानकीकृत हुई।

    वास्तुनिर्माण के संचित अनुभवों से प्राचीन काल में वास्तु समूहों का वृहद स्तर पर जल्दी और किफायती निर्माण हो सका। उदाहरण के तौर पर छिन राजवंश के प्रथम राजा छिन शी ह्वाडं ने अपने शासनकाल के 11 वर्षों में आफाडं महल, लीशान समाधि, लम्बी दीवार तथा राजमार्ग आदि बड़ी-बड़ी परियोजनाएं पूरी करवाई। हान राजवंश में छाडंलो महल, जो राजधानी छाडंआन(वर्तमान शीआन नगर) के एक चौथाई भाग के बराबर था, केवल दो साल के अन्दर ही निर्मित किया गया और मिडं राजवंश में राजधानी पेइचिंग, जिसमें शाही निषिद्ध नगर भी सम्मिलित था, का पुनर्निर्माण करने में कुल मिलाकर 16 वर्ष लगे थे। इसके विपरीत दूसरे देशों में पिरामिड के जमाने से ही तमाम मशहूर वास्तुओं के दो निर्माण हुए थे, उनमें दर्जनों या सौ से अधिक वर्ष लगे थे। मिसाल के तौर पर फारस के सौ खंभों वाले महल के निर्माण में 58 वर्ष, रोम के सैंट पीटर वृहद गिरजाघर के निर्माण में 120 वर्ष और लंदन के सैंट पाल गिरजाघर के निर्माण में 35 वर्ष लगे थे।

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