इडंश्येन काउन्टी का काष्ठ-पगोडा चीन के उत्तरी शानशी प्रान्त की इडंश्येन काउन्टी के एक बौद्ध-मंदिर में स्थित है, जो"शाक्य"पगोडा भी कहलाता है। इस का निर्माण ल्याओ राजवंश के छिडंनिडं शासन-काल के दूसरे वर्ष(1056 ई.) में शुरू हुआ। इस पगोडा की ऊंचाई 67.31 मीटर है, यह चीन में मौजूद सब से पुराना और ऊंचा काष्ठ-पगोडा है।
इस पगोडा का आकार अष्टकोणीय है, ल्याओ राजवंश में बहुत से पगोडा इसी ढंग से निर्मित हुए। इस पगोडा में कुल पांच मंजिलें और छै छज्जे हैं, जिस की पेंदी का व्यास 30 मीटर है। यह पगोडा चार मीटर ऊंचे प्रस्तर-आधार पर खड़ा है। पगोडा बनाने में एक भी कील का इस्तेमाल नहीं किया गया, बल्कि धरनों, खम्भों और चूलों में छेदकर उन्हें आपस में जोड़ा गया। यह पगोडा बहुत मजबूत और संपूर्ण काष्ठ से बनी एक इमारत है। इस पर एक 14 मीटर ऊंचा लौह-शिखर भी है। पगोडा के निचले भाग में 11 मीटर ऊंची एक शाक्य मुनि की मूर्ति बैठी मुद्रा में स्थापित है। पगोडा के अन्दर काष्ठ सीढ़ियां भी हैं, हरेक मंजिल में बरामदा और जंगला है। पर्यटक यहां का विहगम-दृश्य देखकर आन्द विभोर हो उठते हैं। यह पगोडा बहुत ऊंचा और आलीशान है। इस में चीन की विशेष वास्तुकला की झलक दिखाई पड़ती है। यह चीन की प्राचीन वास्तुकला पर आधारित एक अनोखी इमारत है।
पिछले 900 वर्षों के दौरान काष्ठ-पगोडा ने तूफान, वज्र और सात बार के भारी भूकम्पों का सामना किया। खासकर य्वान राजवंश के थ्येनशुन शासन-काल(1328 ई.) में लगातार सात दिनों तक भारी भूकम्प आते रहे। लेकिन इस काष्ठ पगोडा पर कुछ भी असर न पड़ा।
1921 में शानशी प्रान्त के युद्ध-सरदारों के बीच लगातार युद्ध छिड़े तथा अनेक बार गोलों के प्रहारों के बावजूद यह पगोडा ज्यों का त्यों खड़ा रहा।