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इस वर्ष मार्च में मलेशिया एयरलाइंस का एम एच 370 यात्री विमान लापता हुआ। विमान की तलाशी में मलेशिया ने भारतीय सेना से पूछा था कि क्या भारतीय पक्ष को इस विमान का सिग्नल मिला था, क्यों कि भारत के अंडमान निकोबर द्वीप समूह पर रडार स्टेशन हैं। लेकिन अंडमान निकोबर मुख्यालय के चीफ़ ऑफ स्टाफ ने बताया कि हमारे सैन्य रेडार बंद हैं, क्योंकि जरूरत पड़ने पर हम रेडार का संचालन शुरू करते हैं। उधर भारतीय रक्षा मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि वे फ्रांस से आयातित बहुत पुराने रेडार का प्रयोग करते हैं। इस तरह के रेडार की बिजली खपत बहुत ज्यादा है। उधर भारतीय वायु सेना में भी बार बार दुर्घटनाएं होती हैं। इसके अलावा भारतीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एसयू-30 लडाकू विमान के तकनीकी मेटेनेंस के खर्च पर भारत और रूस के बीच अब भी विवाद चल रहा है। इससे लगभग भारत के आधे एसयू-30 लड़ाकू विमान उड़ान नहीं भर सकते।
एंकर, बिजली की बचत के लिए रेड़ार नहीं चलता ,विदेशी विशेषज्ञ के बिना लडाकू विमान उडान नहीं भर सकते। हमारे लिए ऐसे बातों की कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन भारतीय सेना में ये अपवाद नहीं है। भारतीय रक्षा निर्माण में क्या हुआ है इसके लिये, अब हम सीआरआई के भारत मामले के विशेषज्ञ नियो वेइतुंग से बात करेंगे। वेइतुंग जी, आप के विचार में भारत के सैन्य निर्माण में क्या समस्याएं हैं। क्या भारतीय सेना को रेडार चलाने के लिये भी बिजली के दाम के बारे में सोचना पड़ता है।
नियो वेइतुंग (भारत मामले के विशेषज्ञ ,सीआरआई),भारतीय सैन्य अधिकारी ने जो बात बताई, उसका असली अर्थ है कि वो रेडार अत्यंत पुराना हो गया है, आज के समय के हिसाब से अब इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता है। इस उदाहरण से भारतीय सैन्य निर्माण में एक बहुत बड़ा सवाल उजागर किया गया है यानी भारतीय सेना में बहुत से उपकरणों की किल्लत है और कई इतने पुराने हैं कि उन्हें नए उपकरणों से बदले जाने की सख्त ज़रूरत है। भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमान का सुरक्षा का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है। कभी कभी दुर्घटनाएं भी होती हैं। इसका एक मुख्य कारण है कि प्रशिक्षण के लिये विमान कम हैं और अच्छे भी नहीं हैं। भारतीय वायु सेना ने यह बात भी सरकार के सामने उठायी थी। भारतीय सैन्य निर्माण में और एक बड़ी समस्या है कि खुद से हथियार और साजो सामान बनाने की क्षमता कमजोर है। यह भारत के लिए एक बड़ी समस्या है, क्योंकि इससे वह दूसरों के हाथों नियंत्रित किया जा सकता है।
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अभी हम ने देखा है कि भारत में फ्रांसीसी रेडार है ,रूसी लडाकू विमान है और अमेरिकी परिवहन विमान भी है। इसे आप कैसे देखते हैं।
भारत विदेशी हथियार और साजो सामान पर काफी हद तक निर्भर रहता है। इससे पता चलता है कि भारतीय सैन्य उद्योग का विकास धीमा है और खुद हथियार बनाने की क्षमता कम है, जो अपने सेना के तेज विकास की मांग पूरी नहीं कर सकते। भारतीय सैनिक पक्ष ने पहले कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं अपनी संस्थाओं को सौंपा थीं। लेकिन परिणाम संतोषजनक नहीं है। इस स्थिति में भारत को अंतर्राष्ट्रीय हथियार बाजार में बड़ी रकम देकर खरीदारी करनी पड़ती है।
एंकर, आपके विचार में भारत की प्रतिरक्षा में मौजूद सवालों का मूल कारण क्या है।
सबसे पहले सैन्य क्षेत्र में भारत की महत्वाकांक्षा और लक्ष्य अपने विकास की वास्तविक स्थिति से मेल नहीं खाती। पिछले कुछ वर्षों में भारत का तेज आर्थिक विकास हुआ है। वह ब्रिक्स देशों का सदस्य है और उभर रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। उसका प्रर्दशन विश्व भर का ध्यान अपनी तरफ़ खींच रहा है। लेकिन पहले भारत के विकास का स्तर काफी नीचा था औऱ आधार इतना मजबूत नहीं है। इसलिए अब तक भारत एक अपेक्षाकृत गरीब देश है और प्रति व्यक्ति जीडीपी विश्व रैंकिंग में काफी पीछे है। अपेक्षाकृत कमजोर आर्थिक स्थिति जरूर काफी हद तक उसके सैन्य विकास को नियंत्रित करती है। इसके अलावा भारत की प्रतिरक्षा निर्माण में मौजूद भ्रष्टाचार समेत कुछ गभीर मामले भी मुख्य कारण हैं।