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    मैत्री चोटी की तलहटी में
    2014-03-10 15:12:10 cri

     

    चीन के उत्तर पश्चिमी कोने पर अल्ताई पर्वतमाला की सबसे ऊंची मैत्री चोटी खड़ी है। इसकी ऊंचाई 4374 मीटर है। यह चीन और मंगोल गणराज्य की सीमा का अंतिम छोर हैं और चीन, मंगोल गणराज्य व सोवियत संघ तीनों देशों की सीमाओं का मिलन स्थल भी है।

    नक्शे पर राष्ट्रीय सीमा रेखा की एक टेढ़ी-मेढ़ी छोटी सी लकीर खींची हुई है, मगर वास्तविक स्थल पर यह सीमा रेखा कहीं ऊंचे पर्वतों, कहीं रेगिस्तान से गुजरती है और कहीं नदी की धारा को दो भागों में बांटती है।

    मानचूली के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित चीन, मंगोल गणराज्य और सोवियत संघ तीनों देशों की मिली-जुली सीमाओं से बढ़ने के बाद मैं निरंतर मोटर साइकिल पर चीन और मंगोल गणराज्य की सीमा पर चलता रहा। शिनच्याडं वेवुर स्वायत प्रदेश में दाखिल होने के बाद चीन-मंगोल गणराज्य की सीमा समाप्त हो गई।

    इडंशिन झील

    सितंबर महीने के मध्य में मैं पालीखुन से रवाना होकर उत्तर की ओर बढ़ा और थ्येनशान पर्वतमाला की एक शाखा और अनन्त गोबी रेगिस्तान को पार करके लाओये मंदिर के पास स्थित सीमा चौकी पर पहुंचा।

    इस सीमा चौकी के नजदीक नरकटों से भरा एक विशाल तालाब है। चीन मंगोल गणराज्य की सीमा पर खड़े सीमा स्तंभ नम्बर 142 द्वारा यह तालाब दो भागों में बंटा हुआ है। यहां मैंने देखा कि नरकटों के फूल हवा में झूम रहे हैं और हरे भरे नरकटों के घने छुरमुट में सीमा स्तंभ नम्बर 142 छिपा हुआ है। सुबह जब मैं नरकटों के तालाब के किनारे टहलने गया तो वहां मुझे सीमा स्तंभ से 15 मीटर की दूरी पर एक छोटी सी झील नजर आई और झील के तट पर कुछ सीमा रक्षक कांटे से मछलियों का शिकार कर रहे थे। उन से मालूम हुआ कि यह झील सीमा रक्षकों ने खुद ही खोदी है। चूंकि इस झील के तल में चश्मा है, इसलिए झील का पानी पूरे साल नहीं सूखता।

    सीमा रक्षकों ने बताया कि इस राष्ट्रीय सीमा रेखा पर तरह तरह की प्राकृतिक स्थितियां मौजूद हैं और उन में ही हमें रहना होता है। हमारे लिए एकमात्र रास्ता उन प्राकृतिक स्थितियों के अनुकूल रहना और उन में अपने रहने की स्थिति को सुधारना है।

    सीमा चौकी के नेता ने मुझे बतायाः सीमा रक्षकों ने इस झील का नाम इडंशिन रखा। झील का पानी खारा है और पीने के लायक नहीं है। मगर झील में हमने 5000 न्ही मछलियां छोड़ी हैं। कहने की जरूरत नहीं कि पानी से लबालब भरी इस झील ने गोबी रेगिस्तान की रूखी जिन्दगी में काफी रंग लाया है।

     

    सीमा रक्षकों को अभिरुचियां

    इस सीमा चौकी के मकान के अहाते में जिन्दादिल खरगोश इधर उधर उछलते कूदते नजर आए। मैने सुना कि इन खरगोशों की नस्ले सीमा रक्षकों ने खुद अपनी जन्मभूमि से लाई हैं। यहां मुझे बत्तखों की जोरदार आवाज भी सुनाई दी और इन बत्तखों के बच्चे भी सीमा रक्षक अपने घरों से ले आए थे। यहीं नहीं, मैंने आकाश में उड़ते हुए कबूतर भी देखे और वे भी पालतू थे।

    सचमुच यह बात मेरी समझ में नहीं आई कि इस सीमा चौकी में जहां प्राकृतिक जलवायु इतनी खराब है, कैसे खरगोश, बत्तख और कबूतर पाले जा सकते हैं और वे भी इतनी तेज गति से पले-बढ़े हैं। जब भी कोई सीमा रक्षक छुट्टी बिताकर घर से लौटता है तो वह अपने साथ साग-सब्जियों व फूलों के बीज जरूर लाता है। कभी-कभी वे अपनी जन्मभूमि से अंजलि भर मिट्टी भी साथ लाते हैं।

    ये सीमा रक्षक सछ्वान, हनान, शेनशी व हपेइ प्रांतों अथवा शिनच्याडं प्रदेश से आए हैं।

    रेतीले बेर के पेड़

    सीमा चौकी के प्रथम नेता चाडं चिडंइ ने सीमा रक्षकों को लेकर यहां पेड़ लगाना शुरू किया। इस काम में कोई 17 वर्ष लगे, तब जाकर आज रेतीले बेर के पेड़ों का जंगल खड़ा हो पाया है।

    इस बार मैं रेतीले बेर के पेड़ के नीचे खड़ा हो गया और उसके मीठे मीठे फल का स्वाद चखने लगा। उस दिन मुझे सचमुच वनारोपण का लाभ महसूस हुआ। जब मैं वहां से रवाना होने वाला था तो सीमा रक्षकों ने रेतीले बेर का एक थैला मुझे थमा दिया। रास्ते में मीठे बेर खाने की मेरी इच्छा पूरी हुई।

    सब्जी की क्यारियां

    यहां सीमा रेखा हुहुडंदले पर्वत के शिखर को पार करती हुई आगे चली जाती है और इस विशाल पर्वत के मध्य में सानछाखो नामक स्थान पर सीमा चौकी स्थापित है। इसकी ऊंचाई समुद्र सतह से 1700 मीटर है। पर्वत पर पत्थर व पीले रेत फैले हुए हैं और मिट्टी की बहुत कमी है।

    यहां के सीमा रक्षकों ने सब्जी उगाने के लिए गाड़ी व बस्ते से मिट्टी ला-लाकर कुल 39 छोटी-छोटी क्यारियां तैयार की हैं। अब यहां खाने को ताज़ा सब्जियां मिलती हैं और 100 किलोमीटर दूर सानथाडंहू नामक स्थान से मंगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

    संयोग से पिछले साल जुलाई में मंगोल गणराज्य की तरफ से एक जोरदार पहाड़ी बाढ़ आई, बाढ़ की लहर 3 मीटर से ज्यादा ऊंची थी और यह बाढ़ इन 39 क्यारियों की मिट्टी बहा ले गई। जब मैं यहां पहुंचा तो मैंने देखा कि पथरीले पुलिन पर सब्जी की नयी क्यारियां फिर से तैयार हो गई हैं। सीमा रक्षकों ने मुझे बताया कि ये क्यारियां खून पसीने से सींची गई हैं।

    यहां की दूसरी सीमा चौकी की दीवार पर एक सूची टंगी थी, जिस पर लिखा थाः अप्रैल में प्राप्त फसलेः अजवाइन 17 किलो, पालक 161.5 किलो, गोभी 54 किलो और मई में प्राप्त फसलेः मूली 70 किलो, ककड़ी 95 किलो और सेम 30.5 किलो।

    पुलकन नदी और मैत्री चोटी

    पुलकन नदी का उद्गम स्थान अल्ताई पर्वतमाला में मंगोल गणराज्य की सीमा में स्थित है। यह नदी ताकसकेन सीमा चौकी के नजदीक चीन की सीमा में दाखिल होती है। इस नदी में खूब दरियाई ऊदबिलाव पाए जाते हैं।

    सौभाग्य से मैंने यहां इन नन्हे प्रिय जीवों के फोटो लिए। इस जीव की बड़ी और चपटी पूंछ पर शल्क और शरीर पर घने बाल होते हैं। इसका फर बड़ा कीमती है। इस के शरीर से सुगंधी निकली जा सकती है और यह विश्व बाजार में चार बड़े सुगंधी पदार्थों में एक मानी जाती है। आज दरियाई ऊदबिलाव को प्रथम दरजे के सुरक्षित जानवरों की सूची में रखा गया है।

    पुलकन नदी के दोनों तटों पर दुबारा उगे जंगल फैले हुए हैं और सीमाओं पर उजाड़ होने के कारण यह ऊदबिलावों के पलने-बढ़ने का आदर्श स्थान है। यहां के ऊदबिलाव बड़े मजे से चीन और मंगोल गणराज्य की सीमाओं में आ-जा सकते हैं और इन के लिए कोई पाबंदी नहीं है।

    यहां चोटी बिल्कुल मेरे सामने खड़ी थी। जब मैं पेइचिंग में था तो इस चोटी पर चढ़ने की मेरी योजना थी, मगर यहां आकर पता चला कि उस पर चढ़ने का कोई रास्ता नहीं है।

    फिर भी मेरा मन नहीं मान रहा था, मैं निरंतर आगे बढ़ता गया और मैत्री चोटी के लगभग 100 किलोमीटर नजदीक पहुंच गया। वहां मैं इतप्रभ सा अल्ताई पर्वत माला की अनगिनत चोटियों की टकटकी बांधकर देखता रहा।

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