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चीनी परंपरागत औषधियां

चीनी चिकित्सा पद्धति के मुताबिक रोगियों का इलाज करने के लिए विशेष औषधियों या दवाओं का प्रयोग किया जाता है । चीनी परंपरागत दवाओं में मुख्य तौर पर प्राकृतिक दवा तथा इन पर आधारित उत्पादित वस्तुएं शामिल हैं । चीनी परंपरागत दवा का आविष्कार व प्रयोग करने का कई हजार वर्षों का इतिहास है । पर चीनी परंपरागत दवा को यह नाम बहुत बाद में दिया गया । पश्चिमी चिकित्सा पद्धति का चीन में प्रवेष होने के बाद ही दोनों चिकित्सा पद्धतियों में फर्क करने के लिए इसे परंपरागत चीनी दवा नाम दिया गया ।

परंपरागत चीनी दवा का संक्षिप्त इतिहास

चीन के इतिहास में इस बात का उल्लेख मिलता है कि प्राचीन काल में महान राजा शेंनूंग ने रंगबिरंगी जड़ी बूटियां खायीं और उन्हें एक दिन सत्तर जहरीली बूटियां मिली थीं । इस बात से प्राचीन काल में ही चीनी जनता द्वारा रोगों का मुकाबला करते समय दवा का पता लगाने तथा अनुभव एकत्र करने के इतिहास का पता चलता है । और इससे यह भी जाहिर है कि परंपरागत चीनी दवा का स्रोत मनुष्य का उत्पादन ही रहा है ।

प्राचीन काल के श्या, शां और चाओ (ईसा पूर्व 22वीं शताब्दी से ईसा पूर्व 256 तक) के काल में चीन में दवा से मिश्रित शराब तथा द्रव बनाया जाने लगा था । पश्चिमी चाओ (ईसा पूर्व 11वीं शताब्दी से ईसा पूर्व 771 तक) के काल में प्रकाशित महान कविता संग्रह कविता एक ऐसी पुरानी पुस्तक है जिसमें दवा का लेखन किया गया था । चीनी परंपरागत चिकित्सा के पद्धति के सब से पुराने ग्रंथ अन्दरूनी ग्रंथ में यह लिखा था कि सर्दी लगने वाले का गर्मी से इलाज दिया जाता है और गर्मी होने वाले का सर्दी से इलाज दिया जाता है । और पांच किस्मों के स्वादिष्ट भोजन के जरिये मनुष्य की अन्दरूनी आंतों के रोगों का इलाज किया जाता है । इससब से चीनी चिकित्सा परंपरागत पद्धति की सैद्धांतिक नींव डाली गई थी ।

परंपरागत दवा पुस्तक राजा शेंनूंग की बूटियां प्राचील काल के छीन और हान काल (ईसा पर्व 221 से 220 तक) में अनेक चिकित्सकों द्वारा पुराने अनुभवों के आधार पर लिखी गयी थी जिस में उसी काल की दवाओं से संबंधित सूचनाओं को इक्कठा किया गया था । पुस्तक में कुल 365 किस्म की दवाइयों की सूची दर्ज़ की गयी थीं जिन का इस्तेमाल आज तक किया जा रहा है । इस पुस्तक के प्रकाशन से परंपरागत चीनी दवा पद्धति की स्थापना हुई ।

चीन के थांग राजवंश (ईसा सदी 618 से 907 तक) के काल में आर्थिक समृद्धि के कारण परंपरागत चीनी दवा पद्धति का भी उल्लेखनीय विकास हुआ । थांग राजवंश में विश्व में सर्वप्रथम दवा पुस्तक थांग की बूटियां का संपादन किया गया था । इस पुस्तक में कुल 850 किस्म की दवाइयों की सूचना दर्ज़ की गयीं और बहुत सी दवाओं के प्रासंगिक चित्र भी बनाये गये । इस पुस्तक के प्रकाशन से परंपरागत चीनी दवा पद्धति का प्रारंभिक पैमाना तय किया गया ।

चीन के मींग राजवंश(ईसा सदी 1368 से 1644 तक) के महान चिकित्सक ली शीचेन ने 27 सालों में अपना मील पत्थर जैसी पुस्तक जड़ी बूटियों का संग्रह समाप्त किया जिसमें कुल 1892 किस्म की दवाइयों की सूची दर्ज़ की गयी थी , जो परंपरागत चीनी दवा दर्ज़ करने के क्षेत्र में सब से महान रचना मानी जाती है ।

वर्ष 1949 में चीन लोक गणराज्य की स्थापना के बाद जन सरकार के समर्थन से परंपरागत चीनी दवाओं का रसायनिक तथा आयुवैज्ञानिक परीक्षण किया गया है । और दवाओं के स्रोत तथा दवाओं की सच्चाई का पता लगाने तथा इन की आयुवैज्ञानिक भूमिका बताने के लिए वैज्ञानिक नींव तय की गयीं । देश भर में किये गये दवा स्रोतों के अनुसंधान के आधार पर वर्ष 1961 में राष्ट्रीय व स्थानीय परंपरागत चीनी दवा संग्रह संपादित किया गया । वर्ष 1977 में प्रकाशित परंपरागत चीनी दवा शब्दकोष में कुल 5767 किस्म की दवाइयों की सूची दर्ज़ की गयी है । साथ ही विभिन्न किस्मों की परंपरागत चीनी दवा के बारे में विशेषकर जड़ी बूटियों के बारे में पुस्तकें, विभिन्न प्रकार के पत्र व पत्रिकाएं भी प्रकाशित हुईं और परंपरागत चीनी दवाओं के अनुसंधान के लिए अनेक प्रतिष्ठान औरै उत्पादन संस्थाएं भी निर्मित हुईं ।

परंपरागत चीनी दवाओं का संसाधन

चीन का क्षेत्रफल विशाल है जिसमें जटिल प्राकृतिक स्थितियां व मौसम और इसी वजह से चीन में प्रकृति संपन्न ऐसा वातावरण मौजूद है जो जड़ी बूटियों की पैदावार के लिए अनुकूल है । आज तक चीन में कुल आठ हजार किस्म की परंपरागत दवाइयों का विकास हो चुका है जिनमें लगभग 600 किस्म की ऐसी दवाईयां हैं जिन का विश्व भर में सब से अधिक निर्यात होता है । परंपरागत चीनी दवा अब सीमा पारकर विश्व के 80 से अधिक देशों व क्षेत्रों तक पहुंचती है , विश्व में परंपरागत चीनी दवा का खूबनाम है।

परंपरागत चीनी दवा का उत्पादन व प्रोसेसिंग

जड़ी बूटियों का संग्रह करना परंपरागत चीनी दवा के उत्पादन का महत्वपूर्ण भाग है । प्राचीन काल से ही चिकित्सकों ने इस बात पर महत्व दिया था कि जड़ी बूटियों का संग्रह समय पर किया जाए । क्योंकि अलग अलग समय पर उन की गुणवत्ता भी अलग अलग रहती है , इसलिए समय पर जड़ी बूटियों का संग्रह करने से परंपरागत चीनी दवा की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने तथा दवाओं में से जहरीले तत्वों को दूर करने का बहुत महत्व होता है । आम तौर पर यह कहा जाता है कि जड़ी बूटियों का संग्रह इन के फूल आने के समय किया जाना चाहिये । पर कुछ जड़ी बूटियों के फूल से ही परंपरागत दवा बनायी जाती है और कुछ के बीज़ से जड़ से और छिलके या छाल से भी दवा बनायी जाती है । इसलिए इन जड़ी बूटियों का संग्रह उन के पैदा होने के सही समय पर किया जाना चाहिये । लेकिन कुछ परंपरागत चीनी दवा पशुओं से निर्मित होती है, इसलिए ऐसे पशुओं को भी इन के पैदा होने के सही मौसम पर पकड़ा जाना चाहिये । कुछ परंपरागत चीनी दवा खनिज पदार्थों से बनती है जिन्हें किसी भी समय हासिल किया जा सकता है ।

जड़ी-बूटियों का संग्रह होने के बाद इन की प्रोसेसिंग भी की जाती है जिनमें मुख्य तौर पर जड़ी बूटियों को पानी में धोने , काटने , कुकर में पकाने , आग पर व आग के पास सुखाने तथा पानी में उबालने आदि के उपाय शामिल हैं । प्रोसेसिंग की गयी जड़ी बूटियों को अस्पताल के दवाखाने या दवा के कारखाने में प्रस्तुत किया जा सकता है । लेकिन प्रोसेसिंग की गयी परंपरागत चीनी दवाओं को सूखी स्थिति में बनाये रखने के लिए इन्हें धूप में या दूसरी माध्यम से सुखाया जाता है । कुछ परंपरागत चीनी दवाओं का सरंक्षण करने में दवा को निम्न तापमान में रखने तथा दवा की रोशनी से बचाने की जरूरत पड़ती है । इन्हें रासायनिक पदार्थों से भी बचाना पड़ता है ताकि इन दवाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके ।

परंपरागत चीनी दवा का प्रयोग

परंपरागत चीनी दवा के प्रयोग का भी लम्बा इतिहास है , जिसकी चीनी राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है और आज भी चीनी जनता स्वास्थ्य के लिए इस दवा का इस्तेमाल करती है । परंपरागत चीनी दवा की पद्धति में चीनी संस्कृति की विशेषता जाहिर होती है । अधिकांश परंपरागत चीनी दवा सीधे प्रकृति से हासिल की जाती है जो कम हानिकारक होती है । प्रकृति से प्राप्त इन दवाओं में आम तौर पर अनेक गुण होते हैं जो अनेक रोगों के इलाज के लिए रामबाण औषधि साबित होते हैं । चीनी चिकित्सक आम तौर पर अनेक किस्म की परंपरागत दवाओं का संयुक्त रूप से प्रयोग करते हैं , इसतरह जटिल रोगों का इलाज भी किया जा सकता है और दवाओं का संयुक्त रूप से प्रयोग करने से दवा की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है और इन के हानिकारक तत्व भी कम हो जाते हैं ।

परंपरागत चीनी दवा का प्रयोग भी चीनी परंपरागत चिकित्सा पद्धति तथा रोगों के इलाज करने के परीणाम पर आधारित है । परंपरागत चीनी दवा से रोगों का इलाज करने का परीणाम इन दवाओं की गुणवत्ता से निकलता है । परंपरागत चीनी दवा की अपनी विशेषताएं हैं । परंपरागत चीनी दवा के प्रयोग में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इन दवाओं का संयुक्त रूप से प्रयोग करने की निपुणता हासिल की जानी चाहिये । इस का यह मतलब है कि रोगों और दवाओं की अपनी अपनी विशेषताओं के मुताबिक कई किस्म की दवाओं का मिश्रण किया जाता है । लेकिन परंपरागत चीनी दवा के प्रयोग में भी मनाही मौजूद रहती है जैसे कुछ दवाओं का दूसरी दवाओं के साथ सेवन नहीं किया जाता है , गर्भवती महिला के लिए भी कुछ मनाही होती है और कुछ विशेष भोजन की तथा कुछ विशेष रोगों में कुछ विशेष दवाओं का सेवन करने की भी मनाही होती है । परंपरागत चीनी दवा का प्रयोग करने की मात्रा भी नियमित होती है । इसमें बच्चों , मध्यम आयु के लोग , बूढ़े आदि सब प्रकार के रोगियों के लिए प्रति दिन में दवा खाने की मात्रा तथा हरेक मिश्रित दवा में विभिन्न किस्म की दवाइयों की मात्रा सब नियमित होती है । नियम यही है कि दवा का प्रयोग करने की मात्रा दवा की गुणवत्ता , मिश्रित होने की स्थिति तथा रोगी की आयु , शारीरिक स्थिति तथा मौसम आदि अनेक तत्वों के मुताबिक तय की जाती है ।

परंपरागत चीनी दवा का विकास

परंपरागत चीनी दवा के भावी विकास की यही दिशा है कि जड़ी बूटियों का उत्पादन करने के दौरान श्रेष्ठ बीज़ों के चुनाव को महत्व दिया जाएगा । श्रेष्ठ बीज़ों का विकास करने में जीन तकनीक आदि अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा । साथ ही बहुउपयोगी जड़ी बूटियों तथा 20 से अधिक विदेशों से आयातित जड़ी बूटियों की पैदावार को महत्व दिया जाएगा और श्रेष्ठ बीज़ों की गुणवत्ता की कमजोरी की रोकथाम की जाएगी और नये प्राकृतिक दवा संसाधनों का अनुसंधान व विकास पूरी लगन के साथ किया जाएगा ।

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