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तुन ह्वांग का मो काओ गुफ़ा-समूह
2013-08-28 17:59:48

पश्चिमी चीन के कानसू प्रांत का तुन ह्वांग शहर अपने मो काओ गुफ़ा-समूह के लिए विश्वविख्यात है। 1600 सालों से भी अधिक समय के बाद अब इस गुफ़ा-समूह में 492 गुफाएं सुरक्षित हैं। इन गुफ़ाओं में 2000 से अधिक रंगीन मूर्तियां और 1000 से ज्यादा आदम कद के उभरवां भित्ति-चित्र दर्शकों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं। वर्ष 1987 में यूनेस्को ने इस गुफा-समूह को विश्व सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया।

सन् ईस्वीं 366 में लह त्सुन नाम के एक बौद्ध भिक्षु तुन ह्वांग आए थे। एक दिन शाम को उन्होंने समाने एक पर्वत पर सुनहरी किरणें चमकती देखीं। उनकी नजर में यह दृश्य सहस्त्र बुद्धों के घूमने जैसा था। वो इससे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने गांभीर्य के साथ पर्वत की ओर घुटनों के बल बैठकर पूजा-अर्चना की और वादा किया कि वो भीख मांगने के जरिए यहां गुफाएं खोदकर उन में बुद्ध की मूर्तियां स्थापित करवाएंगे और इस क्षेत्र को तीर्थ स्थल के रूप में बनवाएंगे।

कुछ समय बाद उनके नेतत्व में पहला गुफ़ा खोदने का काम शुरू हुआ था। इस काम के लिए भीख मांगने के दौरान उन्होंने इस पर्वत के सुनरही किरणों वाले अनोखे दृश्य का व्यापक प्रचार-प्रसार किया। इससे अन्य बहुत से बौद्ध भिक्षु भी यहां पूजा-अर्चना के लिए आ गए। उनसे प्रेरित होकर और अधिक गुफ़ाएं खोदने का काम शुरू हुआ। चाहे राजा हो या आम लोग, सभी अकेले या संयुक्त रूप से गुफाएं बनाने के काम में जुट गए। वे सब चाहते थे कि इन गुफाओं में स्थापित की जाने वाली बुद्ध की मूर्तियों के साथ उन की इच्छाएं एवं धर्म भी सदा के लिए सुरक्षित रहें।

इस गुफा-समूह में एक गुफ़ा बेहद विशिष्ट है। दूसरी गुफ़ाओं की तुलना में यह गुफा सिर्फ 2.7 मीटर चौड़ी और 2.5 मीटर ऊंची है। इस में न तो कोई सुन्दर भित्ति-चित्र और न ही कोई सूक्ष्म बुद्ध-मूर्ति सुरक्षित हैं। यह गुफ़ा इसलिए अच्छी-खासी है, क्योंकि उसमें 5000 से भी अधिक मूल्यवान बौद्ध एवं एतिहासिक ग्रंथ और सांस्कृतिक अवशेष सुरक्षित हैं।

वास्तव में इस गुफ़ा का पता संयोग से लगाया गया था। सन् 1900 में मो काओ गुफ़ा-समूह के पास रहने वाले एक ताओ पंथी ने जिनका नाम वांग युआन लु था, संयोग से एक द्वार देखा, जो ईंटों से पूरी तरह बन्द कर रखा गया था। वांग ने किसी तरह द्वार को खोला और पाया कि गुफ़ा में ढेर सारे सफेद पैकेज सुरक्षित थे। वांग को पता नहीं था कि उन्होंने दुनिया को अचंभे में डालने वाले एक द्वार को खोला। क्योंकि तब से दुनिया में एक नयी विद्या—तुनह्वांग विद्या शुरू हुई। अफसोस की बात है कि उस समय वांग बेहद गरीब थे। वो गुफ़ा में सुरक्षित सफेद पैकेजों में रखे गए बौद्ध ग्रंथों और सांस्कृतिक अवशेषों के बदले पैसे लेना चाहते थे।

ऐतिहासिक रिकार्ड के अनुसार उस समय यूरोप और अमेरिका से बड़ी तादाद में विद्वान और चीनी विद्य के विशेषज्ञ तुनह्वांग गुफ़ा-समूह के दर्शन और कुछ नया ढूंढकर बड़ा मुनाफ़ा प्राप्त करने के उद्देश्य से चीन के कानसू प्रांत आए। उनमें बेशक ब्रितिश हंगरियन स्टाइन शामिल थे। स्टाइन पुरात्वविद्. भूगोल-शास्त्री और अन्वेषणकर्ता थे। उन्होंने ब्रिटेन और भारत की सरकारों के समर्थन से क्रमशः तीन बार चीन के शिनच्यांग और कानसू दो प्रांतों का निरीक्षण-दौरा किया। वर्ष 1900 से 1908 तक कानसू प्रांत के अपने दूसरे दौरे के दौरान वो मो काओ गुफ़ा-समूह के निकट लम्बे समय तक ठहरे। इस दौरान उन्होंने गुफाओं में बहुत सारे भित्ति-चित्रों के फोटो खींचे, बहुत सस्ते में ताओपंथी वांग से ढेर सारे कीमती बौद्ध ग्रंथ, सिल्क चित्र और कसीदा वाले चीजें खरीद लिए, जो कुलमिलाकर 29 बड़े बॉक्सों में रखे गए। सूत्रों के अनुसार स्टाइन क्रमशः वर्ष 1907 और 1914 में दो बार इन गुफाओं से 10 हजार से भी अधिक मूल्यवान ऐतिहासिक एवं बौद्ध ग्रंथ और अन्य सांस्कृतिक अवशेष लूटकर ले गए। इससे चीनी संस्कृति को अकूद नुकसान हुआ।

दूसरी तरफ़ पश्चिमी विद्वानों ने चीन के इन सांस्कृतिक अवशेषों को देखकर उन का अनुसंधान करने में बड़ी रूचि लेनी शुरू की। पिछले सदी के 30 वाले देशक में उन्होंने पूर्वी विद्वानों के साथ मिलकर एक नई विद्या—तुनह्वां विद्या की स्थापना की। इस विद्या के विशेषज्ञों ने पाया कि तुनह्लांग का मो काओ गुफा-समूह प्राकृतिक थपेड़ों से क्षयी होता गया। उन्होंने अनुमान लगाया कि इन गुफाओं की क्षयण-प्रक्रिया जारी रहेगी। संबद्ध वैज्ञानिक सर्वेक्षण से पता चला है कि तुनह्वांग के मो काओ गुफ़ाओं में जो भित्ति-चित्र मिले हैं, उनके 20 प्रतिशत भाग को विभिन्न स्तर तक क्षति हुई है।

तुनह्लांग अनुसंधान प्रतिष्ठान के प्रमुख फान चिंग शी ने गत 1990 के दशक में `डिजिटल तुनह्वांग` की अवधारणा पेश की। इसका मतलब है कि डिजिटल और ऑप्टिक तकनीकों से गुफ़ाओं के आकारों, उनमें सुरक्षित भित्ति-चित्रों एवं बुद्ध की मूर्तियों, उन चित्रों एवं मूर्तियों को बनाने की सामग्रियों और सभी गुफाओं के साथ हुई प्राकृतिक एवं कृत्रिम घटनाओं के बारे में सूचनाएं इकट्ठा कर उन्हें कंप्यूटर में रखा जाएगा। अब तक मो-काओ गुफ़ा-समूह में से 52 गुफ़ाओं और 10 हजार 800 वर्गमीटर के भित्ति-चित्रों का ड़िजिटलीकरण हो गया है। योजना के अनुसार 2014 में `मो काओ पर्यटक केंद्र` का निर्माण-कार्य पूरा होगा। तब से इस केंद्र में पर्यटक `स्वप्न सा तुनह्वांग` नामक एक 3D फिल्म देख सकेंगे।


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