कुम्बुम मठ उत्तर-पश्चिमी चीन के छिंगहाई प्रांत की राजधानी शीनिंग शहर से 25 किलोमीटर दूर स्थित है, जिसकी स्थापना 14वीं शताब्दी में यानी चीन के मिंग राजवंश के काल में हुई। इस मठ का इतिहास 600 वर्ष पुराना है। चूंकि यह मठ चीन के तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के संस्थापक गुरु त्सोंगखापा का जन्मस्थान है, इसलिए यह तिब्बती बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण मठ माना जाता है। लम्बे समय में तिब्बती, मंगोलियाई, थू और हान जैसी जातियों के श्रद्धालु पूजा के लिए यहां आते हैं। यह मठ उत्तर-पश्चिमी चीन में बौद्ध धार्मिक केंद्र और तिब्बती बौद्ध धर्म का पवित्र स्थल माना जाता है।
गेलुग संप्रदाय चीन के तिब्बती बौद्ध धर्म की एक महत्वपूर्ण शाखा है। तिब्बती भाषा में गेलुग का अर्थ है शील विन्य का कड़ाई से पालन करना और गेलुग संप्रदाय इसके लिए प्रसिद्ध है। गेलुग संप्रदाय के भिक्षु आम तौर पर पीली टोपी पहनते हैं, इसी के चलते गेलुग संप्रदाय का दूसरा नाम पीला धर्म भी पड़ा है। गेलुग संप्रदाय के संस्थापक गुरु त्सोंगखापा ने 14वीं शताब्दी में तिब्बती बौद्ध धर्म में व्याप्त भ्रष्टाचार जैसी सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए धार्मिक सुधार किया। उन्होंने आह्वान किया कि भिक्षुओं को शील विन्य का कड़ाई से पालन करना चाहिए। उन्होंने मठों के प्रशासनिक प्रबंध को भी मजबूत किया।
माना जाता है कि गुरु त्सोंगखापा का जन्म कुम्बुम मठ में हुआ था। ईस्वी सन् 1379 में उनकी मां और मतानुयायियों ने उनकी इच्छा के अनुरूप उनके जन्मस्थान पर पत्थरों से एक बौद्ध पगोडा का निर्माण किया। यहां सबसे पहले पगोडा था, फिर मठ बना। कुम्बुम मठ का नाम इससे शुरू हुआ। चूंकि मठ में 16वीं शताब्दी में निर्मित हान जाति के बौद्ध धर्म भवन भी हैं, इसलिए स्थानीय हान और तिब्बती जाति के अनुयायी कुम्बुम मठ में पूजा करते हैं।
600 वर्ष पुराना यह मठ शीनिंग शहर के पास कमल वाले पहाड़ पर स्थित है, जिसका क्षेत्रफल लगभग 40 हेक्टयेर है। मठ में ऊंचे ऊंचे पुराने पेड़ और पगोडा स्थित हैं। मठ में भवन बहुत शानदार दिखते हैं। बौद्ध मूर्तियों का आकार सुन्दर है। मठ में जगह जगह घी-फूल और रंगीन भित्ति चित्र दर्शाए गए हैं। यहां विशेष रूप की त्वेशो नाम की थांगखा चित्र प्रदर्शनी भी है। घी-फूल, भित्ति चित्र और त्वेशो थांगखा चित्र तीनों चीजें कुम्बुम मठ की तीन कलात्मक विशेषताएं मानी जाती हैं। इनके अलावा, मठ में कई बौद्ध सूत्र और इतिहास, साहित्य, दर्शनशास्त्र, चिकित्सा, औषधि और कानून आदि क्षेत्रों के ग्रंथ भी उपलब्ध हैं।
यहां घी-फूल, भित्ति चित्र और त्वेशो थांगखा के बारे में जानकारी दें। घी से फूल का रूप बनाया गया विशेष फूल घी-फूल कहलाता है, जिससे बौद्धिक संस्कृति दिखाई जाती है। छिंगहाई तिब्बत पठार का मौसम बहुत ठंडा है, कम तापमान में घी से बनाया गया फूल मुश्किल पिघलता है। कुम्बुम मठ के भिक्षु विभिन्न रंगों वाले घी को घी-मिट्टी बनाकर इससे रंगीन मूर्ति बनाते हैं। इन रचनाओं के विषय में बौद्ध धर्म में कहानियां, बुद्ध मुर्तियां, ऐतिहासिक कहानियां, मशहूर व्यक्तियों की कहानियां, फूल, घास, पेड़, पशु पक्षी और भवन आदि शामिल हैं। आम तौर पर शून्य से कम तापमान वाली सर्दियों के तीन महीनों में ही घी फूल बनाया जाता है। चीनी पंचांग के अनुसार हर वर्ष के पहले माह के 15वें दिन की रात को कुम्बुम मठ में घी फूल प्रदर्शनी आयोजित की जाती है, जो चीन में पूरे तिब्बती बहुल क्षेत्र में एक शानदार समारोह बन जाता है।
कुम्बुम मठ में सुरक्षित भित्ति चित्र आम तौर पर विभिन्न भवनों की दीवारों पर चित्रित की गई हैं। प्राकृतिक खनिज रंगद्रव्य से चित्रित यह भित्ति चित्र बहुत अधिक रंग बिरंगा ही नहीं, लम्बे समय तक ताज़ा बना रहता है। भित्ति चित्र के विषय में अधिक बौद्ध धार्मिक कहानियां, ऐतिहासिक कहानियां, देवी-देवता और जाने माने व्यक्तियों की कहानियां शामिल हैं। भित्ति चित्र मठ में भिक्षुओं और श्रद्धालुओं द्वारा पूजा करने वाली चीज़ ही नहीं, वास्तु निर्माण को सजावट करने वाली कलात्मक वस्तुएं भी हैं।
त्वेशो थांगखा चित्र तिब्बती जाति की विशेष कलात्मक वस्तु है। सबसे पहले विभिन्न रंग के कपास के बने कपड़े, रेशम, साटन से बनाई गई बुद्ध की मूर्ति, फूल, पशुपक्षी, वास्तु निर्माण जैसे डिज़ाइन बनाया जाता है, इसके बाद इन डिज़ाइनों को काट कर एक ही कपड़े पर चिपका दिया जाता है। अंत में रंगीन धागे से मज़बूत बनाया जाता है। इस प्रकार का थांगखा चित्र बहुत सुन्दर ही नहीं, त्रिआयामी भी लगता है। कुम्बुम मठ के प्रमुख भवनों में आम तौर पर त्वेशो थांगखा चित्र लगाए जाते हैं। विशेष तौर पर महा सूत्र भवन में"अठारह अर्हत"विषय वाला त्वेशो थांगखा कलात्मक मूल्य का होता है, जो भिक्षुओं और श्रद्धालुओं को बहुत पसंद है।
छिंगहाई प्रांत के बौद्धिक शास्त्र कॉलेज के रूप में कुम्बुम मठ में कुल चार बौद्ध संस्थान हैं, जो प्रकारण शासन संप्रदाय, तंत्र संप्रदाय, खगोलीय पंचांग और तिब्बती चिकित्सा का अध्ययन करते हैं। इसके अलावा, मठ में बौद्ध संगीत और नृत्य सिखाने वाले संस्थान भी हैं। हर दिन तीसरे पहर साढ़े 4 बजे, कुम्बुम मठ के भिक्षु सूत्र बहस करते हैं। इस समय कुम्बुम मठ में आने वाले पर्यटकों की संख्या कम रहती है, पूरा मठ शांत वातावरण में डूब जाता है। तीन या पांच भिक्षु कुछ खड़े होते हैं और कुछ बैठते हैं। वे सूत्र भवन के आंगन में एक दूसरे से ऊंची आवाज़ में बौद्ध-सूत्र से संबंधित ज्ञान पर चर्चा कर रहे हैं। प्रश्न पूछने वाले भिक्षु खड़े होते हैं और वह बार-बार बैठे हुए भिक्षु से प्रश्न करते है। अगर जवाब देने वाला भिक्षु उत्तर नहीं दे पाता, तो आसपास बाकी भिक्षु उसपर हंसते हैं। इस प्रकार का सूत्र बहस करने से भिक्षुओं के सूत्र पढ़ने और समझने में लाभदायक होता है।
पढ़ाई के अलावा, कुम्बुम मठ में विशेष बौद्ध ग्रंथों का छापाघर भी है, जिसमें विभिन्न ग्रंथों की छपाई करके तिब्बत, कानसू, सछ्वान और भीतरी मंगोलिया जैसे स्थलों के बौद्ध संस्थानों को भेजे जाते हैं।